कानून-कचहरी

यूपी में कथित लव जिहाद को रोकने वाले अध्यादेश ने एक महीने में क्या असर डाला?

मुजफ्फरनगर के रहने वाले नदीम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका लगाई कि उनके खिलाफ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504, 506, 120बी और यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन ऑर्डिनेंस-2020 (कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून) की धारा 3/5 के तहत झूठे तथ्यों के आधार पर मामला दर्ज किया है. उन्होंने अदालत से इस मामले को खारिज करने की अपील की है. इस मामले में शिकायतकर्ता का आरोप है कि नदीम उसकी पत्नी को बहला-फुसलाकर शादी के मकसद से उसका धर्म परिवर्तन कराना चाहता है. वहीं, सोनू उर्फ सादिक पर आरोप हैं कि वह अपने पड़ोसी गांव की एक नाबालिक लड़की को बहला-फुसलाकर, पिज्जा खिलाकर शादी के मकसद से उसका धर्म परिवर्तन कराना चाहता है. ये बानगी हैं उन मामलों की, जो 28 नवंबर को यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन ऑर्डिनेंस-2020 लागू होने के बाद इसके तहत दर्ज किए गए हैं.

एक महीने में कितने मामले, कितनी गिरफ्तारी

उत्तर प्रदेश में पुलिस ने यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन ऑर्डिनेंस 2020 के तहत बीते एक महीने में कुल 14 मामले दर्ज किए हैं. इन मामलों में 51 लोगों को नामजद और 49 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से 13 मामलों में हिंदू महिलाओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराने या कोशिश करने का आरोप है. द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इन 14 मामलों में से केवल दो मामलों में ही महिलाओं ने खुद शिकायत की है, जबकि 12 मामलों में रिश्तेदार शामिल हैं. इनमें से दो मामले तो ऐसे हैं, जिसमें दक्षिणपंथी हिंदू संगठन के कार्यकर्ता शामिल हैं.

पुलिस की भूमिका पर सवाल

इस अध्यादेश के तहत दर्ज मामलों को देखने से साफ हो जाता है कि उन सभी मामलों में जहां पर हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष के बीच कोई प्रेम संबंध पाया जाता है, पुलिस उनमें इस अध्यादेश की धाराओं का इस्तेमाल करके उसे एक अलग ही रुख दे रही है. यूपी सरकार ने 28 नवंबर, 2020 को यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन ऑर्डिनेंस-2020 लागू किया. इसके माध्यम से जबरन धर्म परिवर्तन को एक गैर जमानती अपराध बनाया गया है. इसके लिए 10 साल तक की सजा हो सकती है. इसके अन्य प्रावधान इस प्रकार हैं –
• अगर कोई धर्म परिवर्तन झूठ, धोखा, लालच या प्रलोभन देकर, जबरदस्ती, विवाह द्वारा या किसी और तरह का दबाव देकर कराया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा

• अगर किसी नाबालिग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो धर्म परिवर्तन कराने वालों के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान है

• अगर कोई महिला धर्म परिवर्तन केवल विवाह करने के मकसद से करती है तो ऐसा विवाह पूरी तरह से अवैध और गैर-कानूनी माना जाएगा

• अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिलाधिकारी को शेड्यूल वन में दिए गए फॉर्म के जरिए सूचित करना होगा कि वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से बिना किसी जोर-जबरदस्ती या प्रलोभन के अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है. इस सूचना पर जिलाधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी मामले की जांच करेगा और धर्म परिवर्तन के असल मकसद और कारण को एक रिपोर्ट के माध्यम से जिलाधिकारी को सौंपेगा, जिसके बाद जिलाधिकारी ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए इजाजत देने पर फैसला करेगा.

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• अध्यादेश में इस बात का भी प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति को भी एक महीने पहले इस बात की सूचना जिलाधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी को तय फॉर्म के माध्यम से देनी होगी. ऐसा न करने पर उसे कम से कम छह महीने और अधिकतम तीन साल तक सश्रम कारावास हो सकता है

• अध्यादेश सामूहिक धर्म परिवर्तन को भी अपराध बनाता है

• अध्यादेश प्रावधान करता है कि धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति को ही साबित करना होगा कि धर्म परिवर्तन मिथ्या या बलपूर्वक या लालच या धोखे या विवाह के जरिए नहीं कराया गया है

अध्यादेश को अदालत में चुनौती

हालांकि, इस अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की जा चुकी है. इनमें कहा गया है कि यह अध्यादेश दो आधारों पर असंवैधानिक है. पहला यह कि कानून बनाने की जिम्मेदारी विधानसभा की होती है. लेकिन सरकार ने विधानसभा में बिना चर्चा कराए और विधान परिषद को दरकिनार करके यह अध्यादेश लाई है जो कि संविधान के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है.

संविधान का आपातकालीन अनुच्छेद-213 राज्य सरकारों को राज्यपाल के माध्यम से अध्यादेश लाने की शक्ति देता है. लेकिन यह भी प्रावधान करता है कि जब राज्य की विधानसभा और जिस राज्य में विधान परिषद है वहां पर विधान परिषद, दोनों या उनमें से किसी का भी अधिवेशन न चल रहा हो और राज्य के राज्यपाल इस बात से आश्वस्त हों कि परिस्थितियां इतनी गंभीर हो चुकी हैं कि उससे निपटने के लिए तत्काल कानून बनाना जरूरी है तो ऐसी परिस्थिति में अध्यादेश लाया जा सकता है. लेकिन यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन ऑर्डिनेंस-2020 के मामले में ऐसी कोई स्थिति दिखाई नहीं देती है.

सरकार की नीयत पर सवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इस अध्यादेश को लेकर सरकार की नीयत साफ नहीं है, सरकार केवल अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए यह अध्यादेश लेकर आई है और इसे अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए पुलिस द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, प्रदेश सरकार अपने बचाव में इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही दो फैसलों का हवाला दे रही है. ये दोनों फैसले नूरजहां बेगम बनाम स्टेट ऑफ यूपी,16 दिसंबर 2014 और प्रियांशी उर्फ कुमारी समरीन बनाम स्टेट ऑफ यूपी, 23 सितंबर 2020 को आए हैं. इसमें कहा गया था कि अगर धर्म परिवर्तन केवल विवाह के मकसद से किया जाता है तो ऐसे विवाह को अवैध और गैर-कानूनी माना जाएगा. सरकार का कहना है कि प्रदेश में जबरन या विवाह के प्रलोभन में धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, जिसे रोकना सरकार की प्राथमिकता में आता है. हालांकि, उसके पास इस बात को साबित करने के लिए ठोस सबूत मौजूद नहीं है.

लव जिहाद की एसआईटी जांच

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सितंबर 2020 में कानपुर की आठ सदस्यीय एसआईटी ने 14 अंतर-धार्मिक शादियों की जांच और पाया कि इनमें से आठ मामलों में हिंदू लड़कियों ने अपनी मर्जी से मुस्लिम लड़कों से शादी की थी, जबकि छह मामलों में एसआईटी अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुची है. इतना ही नहीं, खुद केंद्र सरकार संसद में कह चुकी है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एएनआई) ने अपनी जांच में ‘लव जिहाद’ (धर्म परिवर्तन कराने के मकसद से शादी) का एक भी मामला सही नहीं पाया है.

मूल अधिकार में दखल का आरोप

हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगाई गई याचिकाओं में इस अध्यादेश के जरिए व्यक्ति के निजता के अधिकार के हनन का भी आरोप लगाया गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में व्यक्ति के निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है. अपने कई निर्णयों में यह भी माना है कि कोई भी व्यक्ति जो बालिग है, वह अपने मर्जी से किसी से भी विवाह करने के लिए स्वतंत्र है, इस पर कोई भी रोक नहीं लगा सकता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी अपने निर्णयों में इस बात को मान्यता दी है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे पुरुष हो या महिला, अपने मन से अपना साथी चुनने के लिए स्वतंत्र है, अगर उसके माता-पिता उसकी शादी से संतुष्ट नहीं हैं तो उनसे अपने रिश्ते तोड़ सकते हैं, लेकिन अपनी मर्जी के अनुसार जीवनसाथी चुनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं.

जबरन धर्म परिवर्तन रोकने का तर्क

इस पर प्रदेश सरकार का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद-25 व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता देता है और यह भी अधिकार देता है कि व्यक्ति अपनी मर्जी से धर्म का परिवर्तन कर सके. इसलिए सरकार इस अध्यादेश के जरिए केवल ऐसे धर्म परिवर्तन को रोक रही है, जो कि किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध और मिथ्या तत्वों के आधार पर या विवाह के प्रलोभन में जबरन कराए जा रहे हैं. सरकार का मानना है कि यह अध्यादेश प्रदेश में शादी के लिए होने वाले धर्म परिवर्तन को रोकेगा, जो कि लव जिहाद का रूप ले रहे हैं.

7 जनवरी तो तय होगा अध्यादेश का भविष्य

जबरन होने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए आजादी से पहले कई राजघरानों जैसे रायगढ़ व उदयपुर ने कानून बनाए थे. आजादी के बाद मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश जैसे कई राज्यों ने फ्रीडम आफ रिलिजन एक्ट पारित किए हैं. इसी तरह यूपी का यह अध्यादेश भी दो धर्मों के बीच के विवाह संबंधों पर कोई रोक नहीं लगाता है. लेकिन इसे जैसे लागू किया जा रहा है, पुलिस जिन मामलों में इसका इस्तेमाल कर रही है और जैसे दक्षिण पंथी तत्वों की गैर-आधिकारिक भागीदारी सामने आ रही है, वह न केवल सरकार की नीयत, बल्कि इस अध्यादेश के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 7 जनवरी को सुनवाई करेगा और इसी दिन इस अध्यादेश के तहत गिरफ्तार नदीम और सादिक जैसे दर्जनों लोगों के भाग्य का फैसला हो जाएगा.

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आरात्रिका सिंह

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