भारतीय समाज को बेटियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने, कन्या भ्रूण हत्या रोकने और शिक्षा में बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम लागू किया जा रहा है. लेकिन यह कार्यक्रम बजट खर्च न हो पाने की समस्या से जूझ रही है. संसद के मानसून सत्र के दौरान सांसद असादुद्दीन ओवैसी और सैय्यद ईमत्याज जलील ने लोक सभा में यह सवाल उठाया. उन्होंने पूछा था कि (1) तेलंगाना और महाराष्ट्र के कितने जिलों को इस योजना में शामिल किया गया है? (2) अगर हां, तो इसका ब्यौरा क्या है? (3) इस योजना के तहत सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के लिए क्या लक्ष्य तय किए गए हैं और अब तक कितना लक्ष्य हासिल हो पाया है? (4) बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ योजना के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अब तक कुल कितनी राशि आवंटित की गई है और कितनी खर्च हो पाई है? (5) क्या सरकार ने इस योजना को लाने के बाद इसकी सफलता का कोई आलकन किया है? (6) अगर हाँ तो उसका ब्यौरा क्या है, योजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सरकार आगे क्या कदम उठाने वाली है?
योजना का बजट नहीं खर्च हो रहा
इसके जवाब में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि बाल लिंग अनुपात में गिरावट रोकने और बेटियों की शिक्षा के लिए अऩुकूल माहौल बनाने के लिए शुरू की गई यह योजना पश्चिम बंगाल को छोड़कर पूरे देश में लागू है. लेकिन जिन राज्यों में इसे लागू किया जा रहा है, वहां बजट न खर्च हो पाने की समस्या है. आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इसके लिए 2018-19 और 2019-20 में 17.98-17.98 करो रुपये आवंटित किए गए, लेकिन प्रदेश सरकार 2018-19 में सिर्फ 3.96 करोड़ और 2019-20 में 9.13 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई. बिल्कुल ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश का रहा. इस योजना के तहत 2018-19 में कुल 104 करोड़ 99 लाख रुपये और 2019-20 में 123 करोड़ 84 लाख रुपये आवंटित किए गए, लेकिन दोनों ही वित्त वर्ष में आधी रकम भी खर्च नहीं हो पाई. (देखें- टेबल-1)
कई राज्यों में लिंगानुपात घट गया
सरकार ने बताया कि इस योजना में पहले की जो राशि खर्च नहीं पाती है, उसे अगले साल के बजट में जोड़ दिया जाता है. हालांकि, 2020-21 के लिए कुल बजट को देखें तो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम का आवंटन घट कर 91 करोड़ 77 लाख रुपये हो गया है. इन सबके बीच चिंताजनक पहलू यह है कि 2014-15 और 2019-20 के बीच बिहार, कर्नाटक, लक्षदीप, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में बालक-बलिका लिंगानुपात बढ़ने के बजाय घट गया.
योजना का पैसा दूसरे कामों में खर्च करने का आरोप
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना पर बजट खर्च न कर पाने के अलावा इसे दूसरे मदों में खर्च करने के आरोप भी लग रहे हैं. मानसून सत्र के दौरान लोक सभा सांसद जी.एम. सिद्देश्वर ने यह सवाल उठाया था. अपने अतारांकित प्रश्न में उन्होंने पूछा था कि (1) क्या बीते दो सालों में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ (बीबीबीपी) कार्यक्रम के लिए आवंटित धनराशि को उद्घाटन व दूसरे कार्यों में खर्च किया गया है, अगर हां तो इसका ब्यौरा क्या है? (2) सरकार द्वारा योजना को ज्यादा उत्पादक यानी सफल बनाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? (3) सरकार ने इसका लाभ पात्र लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए हैं?
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के तहत कोई नगद मदद नहीं
Advertisement. Scroll to continue reading. हालांकि, पहले सवाल का जवाब केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने ‘नहीं’ में दिया. यानी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत आवंटित राशि को दूसरे मदों में खर्च नहीं किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि बीबीबीपी स्कीम का मकसद बेटियों को महत्व देने के लिए लोगों को संवेदनशील बनाना और प्रोत्साहित करना है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने यह भी स्पष्ट किया कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत किसी भी तरह की नगद सहायता या प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है.
ठगी का औजार बन रहा है जनजागरुकता कार्यक्रम
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना को प्रधानमंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत (हरियाणा) में शुरू किया था. लेकिन जनजागरूकता फैलाने वाली यह योजना खुद जालसाजी के लिए इस्तेमाल होने की शिकायतों का सामना कर रही है. लोगों को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत दो लाख रुपये दिलाने के नाम पर ठगी का शिकार बनाया गया है. इंटरनेट पर कई ऐसी वेबसाइट मौजूद हैं जो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के बारे में भ्रामक जानकारी दे रही हैं. यह न केवल सरकार की सक्रियता, बल्कि योजनाओं के निगरानी तंत्र पर भी सवाल खड़े कर रहा है.