किसानों को उनकी कृषि उपज के लिए बेहतर बाजार दिलाने का दावा करते हुए केंद्र सरकार ई-नाम (e-NAM) यानी इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट का जिक्र करना नहीं भूलती है. अब इसमें बीते साल पारित विवादग्रस्त तीनों कृषि कानून भी शामिल हो गए हैं. लेकिन एक चौंकाने वाली जानकारी यह है कि एनडीए शासित बिहार ई-नाम (e-NAM) पोर्टल में शामिल ही नहीं है.
संसद में सरकार ने क्या कहा
राज्य सभा में सांसद विवेक ठाकुर ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय से जानकारी मांगी कि (1) क्या राष्ट्रीय कृषि बाजार की वेबसाइट/पोर्टल पर ई-नाम (e-NAM) पंजीकरण फॉर्म में बिहार राज्य शामिल है? (2) यदि हां तो ब्यौरा क्या है? (3) यदि नहीं तो क्या कारण हैं? राज्य सभा में इसका जवाब केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिया. उन्होंने बताया, ‘बिहार राष्ट्रीय कृषि मंडी पोर्टल पर सूचीबद्ध नहीं है.’ केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आगे कहा, ‘संबंधित राज्य और संघ शासित प्रदेश को ई-नाम योजना दिशा-निर्देश का पालन करते हुए ई-नाम पोर्टल के साथ अपनी मंडियों को जोड़ने के लिए विस्तृत योजना रिपोर्ट (डीपीआर) के रूप में प्रस्ताव देना पड़ता था. पहले से निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मिले प्रस्तावों के आधार पर (ई-नाम से) 1000 मंडियों को जोड़ा गया है. हालांकि, लक्षित संख्या के तहत बिहार में ई-नाम (e-NAM) को लागू करने के लिए बिहार सरकार से कोई डीपीआर नहीं मिला था. ’ गौरतलब है कि बिहार के अलावा कर्नाटक और पूर्वोत्तर राज्य भी ई-नाम पोर्टल से नहीं जुड़े हैं.
ई-नाम को लेकर सरकारी दावा
राज्य सभा में एक अन्य अतारांकित प्रश्न के जवाब में खुद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ई-नाम की खूबियां और किसानों को होने वाले फायदे गिनाए हैं. इस जबाब के मुताबिक, राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है, जो मौजूदा एपीएमसी मंडियों को कृषि जिंसों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए जोड़ता है. केंद्रीय कृषि मंत्री ने यह भी बताया कि ई-नाम पोर्टल पर लगभग 1.68 करोड़ किसान पंजीकृत हैं और ई-नाम के माध्यम से 1.14 लाख करोड़ रुपये के मूल्य का व्यापार किया गया है. ई-नाम योजना को कृषि बाजार में लाने वाली पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा ध्यान में रखते हुए 1000 और मंडियों को ई-नाम के साथ एकीकृत किया जाएगा.
बिहार इस सुविधा से वंचित क्यों
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बयान से साफ है कि ई-नाम का मकसद एपीएमसी मंडियों को जोड़ना है. लेकिन बिहार सरकार कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम को 2006 में खत्म कर चुका है. यानी वहां पर अब एपीएमसी मंडियां नहीं हैं. तो क्या इस वजह से प्रदेश सरकार ई-नाम के लिए कोई डीपीआर नहीं भेज रही? इस बारे में संसदनामा ने बिहार किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष धीरेंद्र सिंह टुडू से बात की. उन्होंने बताया कि बिहार में सरकारी मंडियां नहीं है, बल्कि निजी मंडियां लगती हैं, जहां किसानों और व्यापारियों दोनों को टैक्स देना पड़ता है. धीरेंद्र सिंह टुडू ने आगे कहा कि प्रदेश में लगातार 10 साल से एनडीए की सरकार होने के बावजूद मंडी और कृषि क्षेत्र को नजरअंदाज किया जा रहा है, सरकारी (एपीएमसी) मंडियां न होने से किसानों को सही कीमत मिल पाती है और वे बिचौलियों की लूट के शिकार होते हैं.
नए कानून से एपीएमसी मंडी पर खतरा?
Advertisement. Scroll to continue reading. केंद्र सरकार ने जो तीन कृषि कानून बनाए हैं, उनमें एक कानून एपीएमसी एक्ट को उसके मंडी परिसर तक सीमित करता है और इसके बाहर कृषि उपजों की कर मुक्त (टैक्स फ्री) खरीद-फरोख्त की छूट देता है. इसके मुकाबले एपीएमसी मंडियों में व्यापारियों से टैक्स लिया जाता है. अगर मंडिया टैक्स छोड़ती हैं तो मंडी के बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए राज्य सरकार पर आश्रित हो जाएंगी, जिससे संभव है कि उनका आर्थिक ढांचा लड़खड़ा जाएगा. अगर एपीएमसी मंडियों में टैक्स वसूली जारी रहती है तो जाहिर है कि लाभ के लिए व्यापारी मंडी परिसर के बाहर खरीद को तवज्जो देंगे. इससे एपीएमसी मंडी में कारोबार अपने आप सिमट जाएगा. यह भी एपीएमसी मंडियों के भविष्य के लिए खतरा है. बिहार में मंडी व्यवस्था इसी बात का उदाहरण है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा चुका है. फिर भी किसान कुछ वक्त के लिए खतरे को टला मान रहे हैं.