देश में दूध में होने वाली मिलावट का मुद्दा शुक्रवार को संसद के उच्च सदन यानी राज्य सभा में शून्य काल में उठा. गुजरात से सांसद जुगल सिंह माथुर जी लोखंडवाला ने कहा, ‘आज की तारीख में भारत के अंदर करीब-करीब 1,700 करोड़ लीटर दूध होता है। उसके अंदर आप देख रहे हैं कि पूरे भारत के अंदर करीब-करीब 64 करोड़ लीटर दूध मिलावट का आता है.’ उन्होंने कहा, ‘हम लोग सुबह जो दूध पीते हैं, हमारे बच्चे रोज दूध पीते हैं, या हमारे बुजुर्ग जो दूध पीते हैं, उसमें कहीं न कहीं मिलावट होती है.’ सांसद ने यह भी कहा कि मिलावटी दूध से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है, जिससे वे रोगों के संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं.
मिलावटखोरों के लिए सख्त सजा की मांग
सांसद जुगल सिंह माथुर जी लोखंडवाला ने आगे कहा, ‘कैंसर वगैरह जैसी बीमारियां लोगों को हो रही हैं. उन बीमारियों से भी हम लोगों को छुटकारा मिलना चाहिए, क्योंकि हम लोग हर रोज दूध पीते हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि मिलावटी दूध पीने से काफी लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां हुई हैं. सांसद जुगल सिंह माथुर जी लोखंडवाला ने कहा, ‘दूध में मिलावट करने वालों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.’
अन्य सांसदों ने भी किया समर्थन
सांसद जुगल सिंह माथुर जी लोखंडवाला के उठाए गए लोक महत्व से इस विषय का अन्य सांसदों ने भी समर्थन किया. इससे संबद्ध करने वाले सांसदों में अमीय याज्ञनिक (गुजरात), भास्कर राव नेकांति (ओडिशा), डॉ. सस्मित पात्रा (ओडिशा), डॉ. अमर पटनायक (ओडिशा), राजकुमार वर्मा (राजस्थान) और संपतिया उइके (मध्य प्रदेश) नाम शामिल रहे.
संसदीय समिति भी कर चुकी है सिफारिश
दूध में पानी की मिलावट नहीं, लेकिन नकली दूध या केमिकल्स की मिलावट को घातक माना जाता है. हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की सांसद राम गोपाल यादव की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने भी मिलावट से जुड़ी सजा को सख्त बनाने की सिफारिश की है. 2021-22 की अनुदान मांगों पर 126वीं रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि जानबूझकर होने वाली मिलावट से अगर कोई खाद्य सामग्री असुरक्षित होती है तो ऐसे मामले में सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए.
दूध में कितनी मिलावट होती है
Advertisement. Scroll to continue reading. द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, कंज्यूमर गाइडेंस सोसाइटी ऑफ इंडिया (Consumer Guidance Society of India) (CGSI) ने बीते साल दूध में मिलावट होने का अध्ययन किया था. इसके मुताबिक, केवल 15 फीसदी पैकेज्ड मिल्क पैकेज ही एफएसएसएआई (Food Safety and Standard Authority of India) (FSSAI) के मानकों पर खरे उतरे थे, जबकि खुले दूध में 22 फीसदी नमूने मानको पर सही पाए गए. महाराष्ट्र में 79 फीसदी ब्रांडेड और खुले दूध के सैंपल मानकों पर फेल हो गए थे.