डिप्रेशन यानी मानसिक अवसाद के साथ दूसरे मानसिक रोगों की समस्या बढ़ रही है. संसद के बजट सत्र में लोक सभा में अतारांकित प्रश्न के माध्यम से प्रो. अच्युतानंद सावंत ने बुजुर्ग आबादी के मानसिक स्वास्थ्य का तो सांसद खगेन मुर्मू ने मानसिक रोगों की महामारी का सवाल उठाया.
डिप्रेशन व मानसिक रोगों पर लोक सभा में सवाल
प्रो. अच्युतानंद सावंत ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से पूछा-
(1) क्या सरकार को यह जानकारी है कि नए लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (Longitudinal Ageing Study in India) (LASI) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बुजुर्ग आबादी का एक बड़ा प्रतिशत गंभीर अवसाद (Major Depression) और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य (deteriorating mental health) का शिकार है?
(2) यदि, हां तो उसका ब्यौरा क्या है
(3) क्या सरकार बुजुर्ग आबादी (elderly population) को उनके मानसिक स्वास्थ्य (mental health) के बेहतर प्रबंधन के लिए मदद करने के बारे में कोई कदम उठाने पर विचार कर रही है? यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है?
(4) देश में मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते मामलों (rising mental health) देखते हुए ज्यादा योग्य पेशेवर (qualified professionals) की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं, उसका ब्यौरा क्या है?
(5) क्या सरकार मानसिक स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को मेडिकल इंश्योरेंस (medical insurance) के दायरे में रखने पर विचार कर रही है, ताकि मरीजों पर आर्थिक दबाव को कम किया जा सके? यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है?
Advertisement. Scroll to continue reading. बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य पर मंत्री का जवाब
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोक सभा सांसद प्रो. अच्युतानंद सावंत के अतारांकित प्रश्न का जवाब दिया. उन्होंने बताया कि लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (LASI) के अनुसार, भारत में बुजुर्गों का एक महत्वपूर्ण अनुपात गंभीर अवसाद का शिकार है.
केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि एलएएसआई की रिपोर्ट में अवसाद के लक्षणों का पता लगाने के लिए सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजिकल स्टडीज डिप्रेशन स्केल (Centre for Epidemiological Studies Depression) (सीईएस-डी) स्केल और गंभीर अवसाद को जांचने के लिए कंपोजिट इंटरनेशनल डायग्नोस्टिक इंटरव्यू-शॉर्ट फॉर्म (Composite International Diagnostic Interview-Short Form (CIDI-SF) (सीआईडीआई-एसएफ) स्केल का इस्तेमाल किया गया था.
इसी रिपोर्ट के मुताबिक, सीईएस-डी स्केल पर भारत की 45 साल या इससे ज्यादा आयु की 28 फीसदी आबादी में अवसाद के लक्षण (depressive symptoms) पाए गए. 45-59 साल की 26 फीसदी, जबकि 60 साल या इससे ज्यादा की 30 फीसदी आबादी में अवसाद के लक्षण मिले.
बुजुर्ग आबादी में गंभीर अवसाद कितना
लासी ने सीआईडीआई-एसएफ स्केल के आधार पर गंभीर अवसाद (major depression) का आकलन किया. इसमें पाया गया है कि भारत की 45 साल या इससे ऊपर की आयु की उम्र की फीसदी आबादी गंभीर अवसाद (major depression) का शिकार है.
60 साल या इससे ऊपर की उम्र की आबादी में गंभीर अवसाद के मामले 8.3 फीसदी पाए गए, जो अवसाद के बारे में खुद जानकारी देने वाले मामलों (0.8 फीसदी) का 10 गुना है. यह बताता है कि भारत में अवसाद के इलाज न हो पाने वाले मामले कितने ज्यादा हैं.
एक-तिहाई बुजुर्ग डिप्रेशन के शिकार
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि सीईएस-डी और सीआईडीआई-एसएफ की तुलना करने पर 60 साल या इससे ऊपर की उम्र की लगभग एक तिहाई आबादी में गंभीर अवसाद होने की बात सामने आई है. वहीं, 60 साल या इससे ऊपर की उम्र के 12 लोगों में एक व्यक्ति में गंभीर अवसाद (major depression) के लक्षण हैं.
Advertisement. Scroll to continue reading. गांवों की हालत ज्यादा खराब
गंभीर अवसाद की शिकार 60 साल या इससे ऊपर की बुजुर्ग आबादी में महिलाओं की संख्या नौ फीसदी है, जबकि पुरुषों की सात फीसदी है. इसी तरह, यह संख्या शहरों में छह फीसदी और गांवों में नौ फीसदी है. यानी शहरों के मुकाबले गांवों की बुजुर्ग आबादी में गंभीर अवसाद के लक्षण ज्यादा हैं. वहीं, 10 फीसदी विधवा आबादी और 13 फीसदी अकेले रहने वाले लोग गंभीर अवसाद के शिकार हैं. यह संख्या अनुसूचित जाति के बुजुर्गों में 10 फीसदी और रोजगार खोने वाली आबादी में 11 फीसदी पाई गई है.
100 में से 11 वयस्क मानसिक रोगों के शिकार
लोक सभा सांसद खगेन मुर्मू को दिए गए जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि 2016 में बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (निम्हांस) (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences) (NIMHANS) ने नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे (National Mental Health Survey) किया था. इसके मुताबिक, 18 साल से ज्यादा आयु की 10.6 फीसदी वयस्क आबादी मनोरोगों (mental disorders) की शिकार है. वहीं, मनोरोगों के इलाज में अंतर 70 फीसदी से 92 फीसदी के बीच है.
डिप्रेशन व दूसरे मनोरोगों को रोकने के लिए उठाए गए कदम
केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि मानसिक रोगों से निपटने के लिए भारत सरकार नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम (एनएमएचपी) को लागू कर रही है. इसके तहत सभी 692 जिलों में जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (District Mental Health Programme) को लागू करने के लिए सहायता दी जा रही है.
उन्होंने बताया कि एनएमएचपी के तहत पेशेवरों को तैयार करने का कार्यक्रम लागू किया जा रहा है. इसके तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (Centres of Excellence) स्थापित करने और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञता में पीजी डिपार्टमेंट्स (Post Graduate (PG) Departments) को स्थापित या मजबूत करने के लिए कदम उठाए गए हैं.
अब तक मानसिक स्वास्थ्य के चार क्षेत्रों- साइकेट्री (Psychiatry), क्लीनिकल साइक्लोजी (Clinical Psychology), साइकेट्रिक नर्सिंग (Psychiatric Nursing) और साइकेट्रिक सोशल वर्क (Psychiatric Social Work) में 25 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और 47 पीजी डिपार्टमेंट्स स्थापित या मजबूत किए गए हैं.
मेडिकल इंश्योरेंस में मानसिक रोगों का इलाज शामिल
Advertisement. Scroll to continue reading. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने बताया कि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट-2017 (Mental Healthcare Act, 2017) की धारा-21(4) के तहत सभी बीमाकर्ता मानसिक रोगों के इलाज के लिए उसी तरह से इंतजाम करेंगे, जैसे दूसरे रोगों में करते हैं. उन्होंने बताया कि भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India) (IRDAI) ने 16 अगस्त 2018 को सभी बीमा कंपनियों को मेंटल हेल्थकेयर एक्ट-2017 की धारा-21(4) को लागू करने का निर्देश दिया है.