लोक सभा

इंटरव्यू में SC और OBC उम्मीदवारों से भेदभाव पर केंद्र ने संसद में कुछ बोला क्यों नहीं?

सरकारी नौकरियों के लिए चयन प्रक्रिया के दौरान जाति के नाम पर भेदभाव का मुद्दा चर्चा में है. संसद के बजट सत्र के दौरान सांसद कौशल किशोर, अर्जुन लाल मीणा और पी. पी. चौधरी ने लोकसभा में इस पर सरकार से जवाब मांगा. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ने इस पर ध्यान दिया है कि भर्ती में बाद के चरणों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के सदस्यों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है? यदि हां तो इस भेदभाव को दूर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?

क्या सरकार ने दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (डिक्की) की रिपोर्ट पर विचार किया है कि उम्मीदवारों की धर्म व सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी सिविल सेवाओं और अन्य केंद्रीय व राज्य स्तर की परीक्षाओं में साक्षात्कार के समय उजागर नहीं करनी चाहिए? यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है?

सांसदों ने यह भी पूछा कि क्या एससी और ओबीसी वर्ग के कल्याण के लिए बजटीय आवंटन के उपयोग और लागू करने में कोई प्रणालीगत समस्या आ रही है? यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है? एससी और ओबीसी समुदाय के कल्याण के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन और प्रगति व वित्तीय आवंटन के उपयोग की निगरानी के लिए तंत्र का ब्यौरा क्या है?

सांसदों की इन सवालों का जवाब सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने दिया. अपने जवाब में उन्होंने वह सारी योजनाएं और कदमों का हवाला दिया, जो सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी के सामाजिक कल्याण के लिए उठाए हैं. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान एससी और ओबीसी उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होने की बात उसकी जानकारी में है या नहीं. उन्होंने दलित इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की (इससे जुड़ी) रिपोर्ट का मसौदा 12 फरवरी 2021 को ईमेल से मिलने की जानकारी जरूर दी. डिक्की रिपोर्ट मिलने के बावजूद इस मामले में सरकार का कुछ जवाब न देना अपने आप में सवाल है.

हालांकि, केंद्रीय राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने दावा किया कि सरकार ने अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए सेवाओं में प्रारंभिक भर्ती के समय ही नहीं, नियुक्तियों के दौरान भी कई उपाय किए गए हैं. उन्होंने बताया कि एससी वर्ग के कल्याण के लिए आवंटित राशि को किसी अन्य कार्यों के लिए खर्च नहीं किया जा सकता है.

दलित चेंबर ऑफ कॉमर्स (डिक्की) ने अपनी एक रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि साक्षात्कार के दौरान एससी एसटी और ओबीसी के अभ्यर्थियों के उपनाम को छुपा लेना चाहिए. उसके ऐसा कहने की वजह साफ है कि चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार के समय ही अभ्यर्थियों के नाम पता चलते हैं, जिससे उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है. हालांकि, जिस तरह से संसद में सरकार ने इस बात कुछ साफ बोलने से इनकार किया है, उससे यह नहीं लगता है कि वह इस समस्या को स्थायी तौर पर सुलझाने के लिए गंभीर है.

सवाल केवल नौकरियों की प्रक्रिया के दौरान वंचित वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों के साथ भेदभाव का नहीं है, बल्कि आरक्षण को सही से लागू करने का भी है. संसद में खुद केंद्र सरकार ने बताया है कि कैसे देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्ग के सैकड़ों पद (बैकलॉग) खाली हैं, जबकि अनारक्षित वर्ग के सभी पद भरे हैं. अगर भेदभाव नहीं है तो यह कैसे संभव है कि जिस भर्ती प्रक्रिया के जरिए सामान्य पदों के लिए योग्य उम्मीदवार मिल रहे हैं, उसी भर्ती प्रक्रिया के तहत आरक्षित वर्ग की सीटें नहीं भर पा रही हैं?

इसके अलावा सरकार ने जिस तरह से बैंकों और लोक उद्यमों के निजीकरण करने की योजना बनाई है, उससे इनमें मिलने वाली नौकरियों में आरक्षण अपने आप खतरे में आ गया है. संसद में सांसदों ने कई बार निजीकरण को आरक्षण पर हमला बताते हुए सरकार से जवाब मांगा है. कुछ सांसदों ने तो निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू करने की मांग भी उठाई है. लेकिन सरकार ने इस पर कोई आश्वासन नहीं दिया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

डेस्क संसदनामा

संसदीय लोकतंत्र की बुनियादी बातों और विचारों का मंच

Recent Posts

नियम 255 के तहत तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्य राज्य सभा से निलंबित

बुलेटिन के मुताबिक, "राज्य सभा के ये सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समक्ष आ गये,…

3 years ago

‘सरकार ने विश्वासघात किया है’

19 जुलाई से मानसून सत्र आरंभ हुआ था, लेकिन अब तक दोनों सदनों की कार्यवाही…

3 years ago

पेगासस प्रोजेक्ट जासूसी कांड पर संसद में हंगामा बढ़ने के आसार, विपक्ष ने चर्चा के लिए दिए नोटिस

पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) जासूसी कांग पर चर्चा के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद…

3 years ago

संसद के मानसून सत्र का पहला दिन, विपक्ष ने उठाए जनता से जुड़े अहम मुद्दे

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्षी दलों ने महंगाई और केंद्र के तीनों…

3 years ago

सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा, ‘देखिए, आपके डीआईजी कह रहे हैं कि…

3 years ago

बशीर अहमद की रिहाई और संसद में सरकार के जवाब बताते हैं कि क्यों यूएपीए को दमन का हथियार कहना गलत नहीं है?

संसद में सरकार के जवाब के मुताबिक, 2015 में 1128 लोग गिरफ्तार हुए, जबकि दोषी…

3 years ago