कैसे ईवीएम अपराधियों के लिए राजनीति के दरवाजे बंद करने में काम आ सकती है?
हमारे संविधान की मूल संरचना ‘कानून का शासन’ की अवधारणा है. देश को संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चलाने के लिए कानून के शासन का पालन करना अनिवार्य होता है. हालांकि, अक्सर आपराधिक रिकॉर्ड वाले राजनेता चुनाव जीत जाते हैं और यहां तक कि सरकार का हिस्सा भी बन जाते हैं. ऐसे लोग कानून के शासन के पूरे विचार को नष्ट कर डालते हैं.
कानून-निर्माता बनने के बाद कानून तोड़ने वाले यह सुनिश्चित करते हैं कि केवल उन कानूनों और नीतियों को बनाया जाए जो उनके हित में हो. इस प्रकार कह सकते हैं कि राजनीति का अपराधीकरण होना हमारे देश की लोकतांत्रिक नींव के लिए बहुत बडा ख़तरा है.
राजनीति का अपराधीकरण स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रकृति के खिलाफ है. आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेता चुनाव की प्रक्रिया को प्रदूषित करते हैं. भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों के बावजूद भी कोई भी राजनीतिक दल अपनी ओर से आपराधिक तत्वों को टिकट न देने की दिशा में क़दम नहीं उठा रहा है.
यही वजह है कि पिछले तीन आम चुनावों में राजनीति में अपराधियों की संख्या में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में लोक सभा चुनाव में 7928 उम्मीदवारों में से 1500 (19%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे.
2014 में लोकसभा चुनाव में विश्लेषण किए गए 8205 उम्मीदवारों में से 1404 (17%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे. 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्लेषण किए गए 7810 उम्मीदवारों में से 1158 (15%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे.
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2019 में चुनाव लड़ने वाले 1070 (13%) उम्मीदवारों ने बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध सम्बंधित गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे.
2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्लेषण किए गए 8205 उम्मीदवारों में से 908 (11%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे.
2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्लेषण किए गए 7810 उम्मीदवारों में से 608 (8%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे. लोकसभा 2019 के चुनावों में 56 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ सजायाफ्ता मामलों की घोषणा की थी.
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एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि लोकसभा चुनावों में 265 (49%) निर्वाचन क्षेत्रों में घोषित आपराधिक मामलों वाले 3 या अधिक उम्मीदवार थे.
लोकसभा चुनाव 2014 में 245 (45%) निर्वाचन क्षेत्रों में घोषित आपराधिक मामलों वाले 3 या अधिक उम्मीदवार थे. लोकसभा चुनाव 2009 में 196 (36%) निर्वाचन क्षेत्रों में घोषित आपराधिक मामलों वाले 3 या अधिक उम्मीदवार थे.
चुनाव में उम्मीदवार को नामांकन पत्र के साथ फॉर्म 26 के जरिए एक हलफनामा दाखिल करना होता है. इसमें संपत्ति, देनदारियों, शैक्षिक योग्यता, आपराधिक पूर्ववृत्त (सजा और सभी लंबित मामलों) और सार्वजनिक बकाया, यदि कोई हो, की जानकारी होती है.
इसके अलावा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर उम्मीदवारों के आपराधिक पूर्ववृत्त की जानकारी प्रकाशित करें.
इसके साथ यह भी बताएं कि इन सभी उम्मीदवारों को चुने जाने की क्या वजह थी और यह कारण “जीतने की क्षमता” नहीं होने चाहिए. चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को भी चुनावों से पहले कम से कम तीन बार अखबारों और टेलीविजन में आपराधिक पूर्ववृत्त के बारे में जानकारी प्रकाशित करने के लिए निर्देश दिया गया है.
हालांकि विभिन्न सर्वेक्षण रिपोर्टों से पता चलता है कि उच्च निरक्षरता दर, कई मतदाताओं तक संचार माध्यमों की पहुंच में कमी और अनभिज्ञता जैसे कारकों की वजह से ये उपाय सभी मतदाताओं को उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि से अवगत कराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 के दौरान 7 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में साक्षरता दर 77.7% थी और भारत की 22.3% आबादी अभी भी निरक्षर है.
नवंबर 2020 में जारी टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रदर्शन संकेतक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 718.74 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिसमें केवल 54.29% आबादी शामिल है यानी देश की 45.71% आबादी अभी भी इंटरनेट का उपयोग नहीं करती है. इसलिए चुनावों से पहले अखबारों और टेलीविजन के माध्यम से तीन बार चुनाव लड़ने वाले आपराधिक प्रत्याशियों के आपराधिक पृष्ठिभूमि के प्रचार की पहुंच सीमित ही है.
इसके अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा 2018 में किये गये ‘गवर्नेंस इश्यूज़ एंड वोटिंग बिहेवियर’ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, 97.86% मतदाताओं को लगता था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार संसद या राज्य विधानसभा में नहीं होने चाहिए, केवल 35.20% मतदाता जानते थे कि वे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
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आपराधिक प्रत्याशियों को मतदान करने के सम्बंध में 36.67% मतदाताओं का कहना था कि लोग ऐसे उम्मीदवारों को वोट देते हैं क्योंकि वे उसके आपराधिक रिकॉर्ड से अनजान होते हैं.
प्रत्येक मतदाता के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) तक पहुंच होती है. इसलिए इसका इस्तेमाल मतदाताओं को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के बारे में जागरूक करने के प्रभावी साधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत निर्वाचन आयोग ईवीएम की बैलेटिंग इकाइयों में इस्तेमाल होने वाले मतपत्रों को लोकसभा चुनावों के लिए सफेद रंग में और विधानसभा चुनावों के लिए गुलाबी रंग में छापा जाता है.
यदि स्वयं के खिलाफ घोषित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों के पैनल (नाम, फोटो और चुनाव चिह्न) मतपत्रों पर लाल रंग में मुद्रित किये जाते है तो मतदाता ऐसे उम्मीदवारों की पहचान सकते हैं और इस तरह एक सूचित विकल्प चुन सकते है.
लाल रंग चेतावनी का पारंपरिक रंग है. ऐसे उम्मीदवारों के पैनल को लाल रंग में मुद्रित करने से निरक्षर वयस्कों और अन्य ऐसे मतदाता को मदद मिलेगी, जिन्हें उम्मीदवारों के आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी पाने में दिक्कत आती है. अगर चुनाव आयोग ऐसा करता है कि मतदाता सावधानीपूर्वक निर्णय ले पाएंगे. यह राजनीतिक दलों को चुनाव में दागी उम्मीदवारों को उतारने से हतोत्साहित होंगे.
प्रत्येक मतदान केंद्र के बाहर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची प्रमुखता से प्रदर्शित की जाती है. चुनाव आयोग को इसके साथ ही उम्मीदवारों के हलफनामों के सारांश संस्करण की एक प्रति भी प्रदर्शित करनी चाहिए. इससे मतदाताओं को मतदान केंद्र में प्रवेश करने से पहले चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के पूर्ववृत्त की जांच करने में मदद मिलेगी.
डॉ. अक्षय बाजड, शासन-प्रशासन और राजनीतिक विज्ञान पर शोधपरक अकादमिक लेखक हैं. आपसे ईमेल akshaybajad111@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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