लेख-विशेष

केंद्र अगर ट्रेनों और स्टेशनों पर मेडिकल बॉक्स लगा देता तो हजारों सांसें आज सहारा पा रहीं होती

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन सिलिंडर की भारी किल्लत है. ऑक्सीजन सिलिंडर की कालाबाजारी हो रही है. जिस अनुपात में कोरोना वायरस संक्रमित मरीज बढ़े हैं, उसमें रातोंरात इतने ऑक्सीजन सिलिंडर कहां से आएं, यह सवाल लगातार बना हुआ है. लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि अगर केंद्र सरकार ने एम्स के विशेषज्ञों की सिफारिश को लागू कर दिया होता तो आज कई हजार लोगों की सांसों को सहारा मिल रहा होता.

दरअसल, साल 2017 सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के डॉक्टरों की एक समिति बनाई थी. सात सदस्यीय इस समिति के अध्यक्ष एम्स में आपातकालीन मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. प्रवीण अग्रवाल थे. इस समिति ने साल 2018 में सभी यात्री ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर एक मेडिकल बॉक्स लगाने की सिफारिश की थी. इस मेडिकल बॉक्स में प्राथमिक उपचार के लिए स्ट्रेचर, जरूरी दवाइयों और अन्य उपकरणों के साथ ऑक्सीजन के दो-दो रियूजेबल सिलिंडर भी रखे जाने थे. इसके लिए रेलवे बोर्ड ने अप्रैल 2018 में अपने महाप्रबंधकों को पत्र भी लिखा था. लेकिन इस बारे में जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ. इसका सबूत संसद में रेल मंत्री पीयूष की ओर से दिए गए जवाब हैं.

सांसदों ने ट्रेनों और रेलवे स्टेशन पर मेडिकल बॉक्स या चिकित्सा सुविधा देने के बारे में संसद में लगातार सवाल पूछे. इसमें पक्ष-विपक्ष दोनों सांसद शामिल थे. लेकिन हैरानी की बात है कि रेल मंत्रालय ने इस बारे में नवंबर 2019 (तारांकित प्रश्न-54) में संसद में जो जवाब दिया, लगभग सवा साल बाद फरवरी 2021 (अतारांकित प्रश्न संख्या- 309) में भी हूबहू वही जवाब दोहरा दिया. दोनों जवाब में एक भी शब्द का हेर-फेर नहीं किया. यहां तक कि 24 मार्च 2021 को सांसद विजय कुमार के सवाल पर दिए जवाब में भी लगभग पुरानी बातें ही दोहराई गईं.

अगर काम हुआ तो सरकार का जवाब क्यों नहीं बदला

इन सभी जवाबों में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में गठित विशेषज्ञों की समिति द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार, सभी रेलवे स्टेशनों और यात्री गाड़ियों में जीवनरक्षक दवाइयों, उपकरणों और ऑक्सीजन सिलिंडर इत्यादि वाले मेडिकल बॉक्स मुहैया कराने के आदेश जारी किए गए हैं.’ (चित्र-1 और 2 अंत में) अगर केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय ने इस दिशा में रत्ती भर भी काम किया होता तो वह संसद में 2019 से लेकर 2021 तक एक ही जवाब क्यों दोहराती?

(In compliance of orders of Hon’ble Supreme Court and as recommended by Committee of experts constituted at All India Institute of Medical Sciences (AIIMS), instructions have been issued to provide a Medical Box containing life saving medicines, equipments, oxygen cylinder etc. at all Railway stations and passenger carrying trains. Front line staff i.e. Train Ticket Examiner, Train Guards/ Superintendents, Station Master etc. are trained in rendering First Aid. Regular refresher courses are conducted for such staff. List of near-by hospitals and doctors along with their contact numbers is available at all Railway Stations. Ambulance services of Railways, State Government/ Private Hospitals and ambulance service providers are utilized to transport the injured/sick passengers to the hospitals/doctor’s clinics.)

तो कितने ऑक्सीजन सिलिंडर मिल जाते?

एम्स की विशेषज्ञ समिति ने हर एक मेडिकल बॉक्स के साथ दो ऑक्सीजन सिलिंडर और चार ऑक्सीजन मास्क (दो बड़ों के लिए और दो बच्चों के लिए) रखने की सिफारिश की थी. इंडियन रेलवे के फैक्ट एंड फीगर्स 2016-17 के मुताबिक, देश में रेलवे स्टेशनों की संख्या 7,349 है, जबकि यात्री ट्रेनों की संख्या 13,523 है. इन सब पर अगर एक-एक मेडिकल बॉक्स लग जाते तो कुल 20,872 मेडिकल बॉक्स होते. इनमें दो-दो रियूजेबल ऑक्सीजन सिलिंडर का मतलब है कि आज रेलवे के पास 41 हजार 744 ऑक्सीजन सिलिंडर होते. इन सिलिंडरों से कम से कम इतने ही ऑक्सीजन सप्लाई वाले बेड बनाए जा सकते थे, जो इस मुश्किल वक्त में टूटती सांसों के लिए बड़ा सहारा बन जाते.

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एम्स की समिति ने और क्या-क्या सिफारिशें की थी

एम्स की विशेषज्ञ समिति ने सभी ट्रेनों और रेलवे स्टेशन पर लगाए जाने वाले मेडिकल बॉक्स में कुल 88 आइटम शामिल करने की सिफारिश की थी. इसमें दवाएं और उपकरण शामिल हैं. इसके साथ यह भी कहा था कि इनकी समय-समय पर जांच हो और डेट एक्सपायरी होने के बाद इन्हें बदला जाए. इसके अलावा समिति ने ट्रेन और स्टेशन के स्टाफ को नियुक्ति के समय प्राथमिक उपचार देने के लिए प्रशिक्षित करने और तीन साल पर दोबारा प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया था. इसके अलावा रेलवे स्टाफ को ट्रेन में यात्रा करने वाले डॉक्टर या नजदीकी स्टेशन पर उपलब्ध डॉक्टर की सेवाएं लेने और तीन साल पर इस मेडिकल बॉक्स की उपयोगिता की समीक्षा करने की भी सिफारिश की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर बनाई थी समिति

सुप्रीम कोर्ट में जयपुर-कोटा ट्रेन पर सफर के दौरान एक रेलवे स्टाफ की मौत को लेकर एक जनहित याचिका लगाई गई थी. इसी याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने एम्स के विशेषज्ञों की समिति बनाती थी. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में लगातार सरकार को हिदायत देता रहा है. जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सा सुविधा के अभाव में ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर होने वाली मौतों पर सख्त टिप्पणी की थी. द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा था, ‘आपके (रेलवे) पास प्राथमिक उपचार की बुनियादी सुविधा नहीं है? आप इस बारे में हमें नहीं बता रहे हैं. अगर यह (चिकित्सा सुविधा) वहां पर नहीं है तो यह बहुत ही भयावह है.’

सुप्रीम कोर्ट ने विजयवाड़ा में रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरने के बाद एक व्यक्ति की मौत के मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी. इससे पहले इस मामले की सुनवाई करते हुए नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेशल कमीशन (एनसीडीआरसी) ने माना था कि उस व्यक्ति की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. इसमें उपभोक्ता फोरम ने रेलवे बोर्ड को उस व्यक्ति की विधवा को 10 लाख रुपये का हर्जाना देने का फैसला सुनाया था. रेलवे बोर्ड ने इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

गौरतलब है कि 2018 में ही रेल मंत्रालय ने लोक सभा में माना था कि बीते तीन सालों में ट्रेन में सवार होने के बाद 1600 यात्रियों की मौत हुई है.

 

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ऋषि कुमार सिंह

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