राज्य सभा

‘जब हम ही न महके फिर साहब, तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या’

राज्य सभा में बजट सत्र के अंतिम दिन अंतिम दिन राज्य सभा में पेश नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट बिल-2021 (The National Bank For Financing Infrastructure and Development Bill- 2021) पर सांसद मनोज कुमार झा (Manoj Kumar Jha) ने अपनी पार्टी की तरफ से पक्ष रखा. उन्होंने एनबीएफआईडी बिल-2021 के प्रावधान नंबर पांच पर सवाल उठाया, जो प्रस्तावित वित्तीय संस्था में 26 फ़ीसदी सरकारी हिस्सेदारी और 74 फ़ीसदी निजी भागीदारी से जुड़ा है.

उन्होंने कहा, ‘यह बड़े गर्व का विषय है कि 26 परसेंट हमारे पास रहेगा और 74 परसेंट कहीं और रहेगा. अब मुझे वित्त मंत्री महोदया से जानना होगा कि दुनिया में ऐसे कितने देश हैं, जो नियंत्रणकारी हिस्सेदारी में निजी क्षेत्र को इस स्तर की भागीदारी देते हैं?’

ये कैसी आत्मनिर्भरता है?

राज्य सभा सांसद मनोज कुमार झा ने आत्मनिर्भरता के बीच विदेशी और निजी पूंजी पर बढ़ती निर्भरता का सवाल उठाया. उन्होंने कहा, ‘आजकल आत्मनिर्भरता का बड़ा जिक्र होता है. लेकिन मैं सोचता हूं कि यह कौन सी आत्मनिर्भरता का मॉडल है, हमें बचपन से जो पढ़ा और सीखा है, कम से कम यह उसमें तो नहीं आता है.’ सांसद मनोज कुमार झा ने आगे कहा, ‘अगर यह आत्मनिर्भरता है तो आत्म और निर्भर के बीच में इतना बड़ा हाइफन है कि जो शायद कभी भरा ही ना जा सके.’

पारदर्शिता पर पर्दा डालने का आरोप

सांसद मनोज कुमार झा ने प्रस्तावित वित्तीय संस्था को सीएजी (कैग) की निगरानी से बाहर रखने वाले प्रावधान पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि यह पारदर्शिता पर पर्दा डाल रहा है. सांसद मनोज कुमार झा ने भी विधेयक को सेलेक्ट कमेटी भेजने की जरूरत बताई. (विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस संस्था की ऑडिट रिपोर्ट को हर साल संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा. यानी इस पर संसद की निगरानी रहेगी.)

अपने इसी भाषण के अंत में उन्होंने बिहार के विकास का सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि बिहार को आजादी के बाद से अब तक उसका वाजिब हक नहीं मिला है, लोगों ने बिहार के विकास के लिए बड़ी-बड़ी बातें की हैं, लेकिन बिहार को दिया कुछ नहीं है. सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि बिहार को विकास की भूख है. अंत में उन्होंने शायर उबैदुल्लाह अलीम की लिखी गजल का शेर पढ़ा, जो इस प्रकार हैं-

जब हम ही न महके फिर साहब, तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में, फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या.

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पूरी गजल (साभार – रेख्ता) इस प्रकार है –

कुछ दिन तो बसो मिरी आंखों में, फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या
कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को, फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब, तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
इक आइना था सो टूट गया, अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बंधाने वाले थे, अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या
दुनिया भी वही और तुम भी वही, फिर तुम से आस लगाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूं, तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
जब देखने वाला कोई नहीं, बुझ जाओ तो क्या गहनाओ तो क्या

अब वहम है ये दुनिया इस में, कुछ खोओ तो क्या और पाओ तो क्या
है यूं भी ज़ियां और यूं भी ज़ियां, जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या

डेस्क संसदनामा

संसदीय लोकतंत्र की बुनियादी बातों और विचारों का मंच

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