संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा ‘काउंसिल ऑफ स्टेट्स’ है. इसका मतलब है कि इसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं. लेकिन सात दशक के संसदीय इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई सदस्य राज्य सभा में नहीं बचा है.
सभी चारों सदस्यों का कार्यकाल पूरा
15 फरवरी को सभी चारों सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया. मीर मुहम्मद फयाज और शमशेर सिंह मानहंस का कार्यकाल 10 फरवरी, जबकि गुलाम नबी आजाद और नजीर अहमद लावी का कार्यकाल 15 फरवरी को पूरा हो गया. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद राज्य सभा में विपक्ष के नेता था.
संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया है. इसके बाद से यहां पर अब तक विधानसभा के चुनाव नहीं हो सके हैं. इसीलिए राज्य सभा का भी चुनाव नहीं हो पाया है.
विधानसभा का चुनाव कराने की मांग
राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को दोबारा बहाल करने और जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं.राज्य सभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने राज्य के बंटवारे का सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी नहीं कहा था कि जम्मू-कश्मीर का बंटवारा हो, लेकिन मौजूदा सरकार ने ऐसा कर डाला.
गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने और चुनाव कराने की मांग उठाई. उन्होंने कहा, ‘जब वहां राज्य सरकार थी, वहां पर काफी विकास हो रहा था, उपद्रवी गतिविधियां कम थी और कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर थी.’
पहले दो बार हो चुका है ऐसा
Advertisement. Scroll to continue reading. 1952 के बाद ऐसी स्थिति दो बार बनी थी. पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा न होने से 1994 से 1996 तक राज्य सभा की चारों सीटें खाली रहीं.
आतंकवाद के चलते राज्य सभा के लिए चुनाव होने में पूरे छह साल लग गए. जब छह साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए तो 1996 में गुलाम नबी आजाद, शरीफुद्दीन शारिक, सैफुद्दीन सोज और कर्ण को राज्य सभा के लिए चुना गया.
2008 में भी खाली हो गई थीं चारों सीटें
साल 2008 में भी राज्य सभा में जम्मू-कश्मीर (पूर्ववर्ती राज्य) का प्रतिनिधित्व करने वाली चारों सीटें खाली हो गई थीं. इसकी वजह यहां पर राष्ट्रपति शासन लागू होना था. पीडीपी ने गुलाम नबी आजाद सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिससे जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था.
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संपादक