किसे किसान माना जाए और किसे नहीं, यह विवाद नया तो बिल्कुल नहीं है. लेकिन यह बात जरूर नई है कि किसान की परिभाषा का यह घालमेल करो़ड़ों लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित कर रहा है. खास तौर पर पीएम किसान सम्मान निधि योजना लागू होने के बाद तो यह नुकसान बहुत बढ़ गया है. यही वजह है कि संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार ने किसान की परिभाषा बताई है, अगर यही लागू हो जाए तो तमाम खेतिहर मजदूरों, बंटाईदारों, भूमिहीन महिला किसानों और भूमिहीन आदिवासियों को बड़ी राहत मिल सकती है.
किसान की परिभाषा क्या है, जिसे माना नहीं जा रहा?
राज्य सभा में सांसद सतीश चंद्र दुबे ने सरकार से जानकारी मांगी थी कि (1) क्या सरकार देश में किसान परिवारों की संख्या का पता लगाने के लिए कोई सर्वेक्षण कराती है, अगर हां, तो विगत तीन वर्षों के दौरान किए गए सर्वेक्षणों का मध्य प्रदेश सहित राज्यवार ब्यौरा क्या है; और (2) क्योंकि सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को किसान घोषित करने के लिए कोई मानदंड तय किया गया है, अगर हां, तो उसका ब्यौरा क्या है? [अतारांकित प्रश्न संख्या 1448]
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में [23 सितंबर, 2020 को] इसी दूसरे सवाल के जवाब में राष्ट्रीय कृषक नीति-2007 के हवाले से किसानों की परिभाषा बताई है. इसके मुताबिक, किसान की परिभाषा में ‘‘कोई भी व्यक्ति जो आर्थिक और/ या फसल उगाने संबंधी आजीविका का काम और अन्य काम प्राथमिक कृषि उपज उत्पादन में सक्रिय रूप से लगा है, उसे किसान माना जाएगा. इसमें सभी कृषि जोतधारक, कृषक, कृषि मजदूर बंटाईदार, जोतदार, मुर्गी पालन और पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, माली, चरवाहे, गैर-व्यावसायिक पौधरोपण, पौधारोपण मजदूर और रेशम कीट पालन, कृमि पालन और कृषि वानिकी जैसे व्यवसायों से जुड़ी कृषि में लगे हुए व्यक्ति शामिल होंगे। इस परिभाषा में लघु और गैर-काष्ठ (लकड़ी को छोड़कर) वन्य उत्पादों के एकत्रण, उपयोग तथा विक्रय में जनजातीय परिवार और अन्य व्यक्ति भी शामिल हैं।’’
संसद में बताई परिभाषा लागू नहीं है
लेकिन केंद्र सरकार किसानों की इस व्यापक परिभाषा को सरकारी योजनाओं के लिए इस्तेमाल नहीं करती है. किसान सम्मान निधि में भी इसे आधार नहीं बनाया गया है. इससे बड़ी संख्या में बंटाईदार, खेतिहर मजदूर, भूमिहीन महिला किसान और बागवानी से जुड़े लोग योजनाओं के लाभ से वंचित हो गए. मानसून सत्र में राज्य सभा सांसद टी जी वेंकेटेश के सवाल के जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया था कि खेती लायक जमीन का मालिकाना हक रखने वालों के अलावा उन आदिवासियों को भी सम्मान निधि योजना का लाभ मिल रहा है, जिनके पास जमीन का पट्टा है. यानी सरकार केवल जमीन के स्वामित्व को ही किसान की परिभाषा मान रही है.
किसान सम्मान निधि का दायरा सीमित
इसी संकुचित परिषाभा की वजह से केंद्र सरकार किसान सम्मान निधि के लिए घोषित लाभार्थियों के लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रही है. दरसअल, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सांसद सतीश चंद्र दुबे के पहले सवाल के जवाब में बताया कि भारत सरकार हर पांच साल पर होने वाली कृषि गणना से मिले कृषि जोत के आंकड़े का उपयोग करती है. साल 2015-16 की कृषि गणना के आधार पर देश में कुल प्रचलित भूजोत 14 करोड़ 64 लाख है. इसी आधार पर सरकार ने किसान सम्मान निधि से देश के साढ़े चौदह करोड़ किसानों को लाभ मिलने का दावा भी किया. लेकिन अब तक 11 करोड़ 17 किसानों का ही रजिस्ट्रेशन हुआ है. यानी लगभग सवा तीन करोड़ किसान इसके दायरे से बाहर हैं. इसके अलावा पहली किस्त को छोड़कर अभी तक बाकी पांच किस्तों में कभी लाभार्थी किसानों का आंकड़ा 10 करोड़ तक नहीं पहुंच पाया है. इसी वजह से केंद्र सरकार किसान सम्मान निधि योजना का सारा बजट नहीं खर्च कर पा रही है.
Advertisement. Scroll to continue reading. स्वामीनाथन की बताई परिभाषा क्यों नहीं लागू हो रही
यहां पर यह जानना दिलचस्प होगा कि जिस राष्ट्रीय कृषक नीति 2007 का केंद्र सरकार हवाला दे रही है, उसे राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों से बनाया गया था, जिसके अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन थे. अब सवाल उठता है कि केंद्र सरकार जब स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात दोहराती है तब उसकी बताई किसानों की परिभाषा को क्यों नहीं मानती है? इसके चलते खेती में लगी 60-70 फीसदी महिलाओं को किसान सम्मान निधि योजना का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि वे जमीन की मालिक नहीं हैं. इसके अलावा जनगणना 2011 के मुताबिक, देश में लगभग साढ़े चौदह करोड़ कृषि मजदूर हैं, जिन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल पाता है.
किसानों को और कहां पर नुकसान होता है
किसानों की इसी सीमित परिभाषा की वजह से खेती से जुड़े करोड़ों भूमिहीनों को सरकार की कृषि संबंधी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जैसे किसी किसान को बैंक से फसली कर्ज तभी मिल सकता है, जब वह जमीन का मालिक है. अगर कर्ज की बात को छोड़ भी दिया जाए तो बागवानी से लेकर आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के तमाम अनुदान भी जमीन का मालिकाना हक रखने वालों को ही मिल पाता है. इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद का लाभ भी उन्हीं किसानों को मिल पाता है, जिनके नाम से जमीन है.