संसदीय समाचार

29 जनवरी से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र में किसानों का मुद्दा छाया रहेगा

कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ किसानों का अभूतपूर्व आंदोलन जारी है. इस बीच संसद के बजट सत्र के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है. 29 जनवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ इसकी शुरुआत होगी. पहले ही दिन आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करेंगी.

15 फरवरी से 8 मार्च तक मध्यावकाश रहेगा, जबकि सत्र 8 अप्रैल को समाप्त होने की उम्मीद है. इसी मध्यावकाश के दौरान संसदीय समितियां बजट प्रस्तावों पर चर्चा करेंगी. कोरोना महामारी के संकट को देखते हुए बजट सत्र में भी मानसून सत्र जैसी व्यवस्था को लागू किया गया है.

विपक्ष का आक्रामक रुख

बजट सत्र में विपक्ष कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठा सकता है. लगभग 53 दिनों से जारी आंदोलन के दौरान दर्जनों किसान अपनी जान गंवा चुके हैं. इस दौरान सरकार और आंदोलनरत किसानों के बीच 9वें दौर की बातचीत बेनतीजा रही है. किसान हरहाल में कानूनों की वापसी चाहते हैं, लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं दिखाई दे रही है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए समिति गठित करने के साथ तीनों कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. लेकिन एक किसान नेता अदालत की बनाई गई समिति से खुद को अलग कर लिया है. इसके बाद समिति का उद्देश्य सवालों के घेरे में आ गया है.

सरकार पर संवेदनहीनता का आरोप

वहीं, विपक्ष ने केंद्र सरकार पर किसानों की मांगों को अनसुना करने का आरोप लगाया है. शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, ‘समय बर्बाद किया जा रहा है, आपको थकाया जा रहा है. वे सोचते हैं कि किसानों के पास ताकत नहीं है. वे सोचते हैं कि किसान 10 दिन में, 15 दिन में छोड़ देंगे. नरेंद्र मोदी जी किसानों का सम्मान नहीं करते हैं.’ उन्होंने यह भी कहा कि कितने किसानों की मौत होती है, इससे केंद्र सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है.इससे पहले ट्विटर पर लिखा था, ‘देश के अन्नदाता अपने अधिकार के लिए अहंकारी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह कर रहे हैं. आज पूरा भारत किसानों पर अत्याचार व पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद कर रहा है.’ उन्होंने यह भी कहा, ‘मोदी-माया टूट गयी, मोदी सरकार का अहंकार भी टूटेगा लेकिन अन्नदाता का हौसला ना टूटा है, ना टूटेगा. सरकार को कृषि विरोधी क़ानून वापस लेने ही होंगे!’

किसानों की सुरक्षा जरूरी-आईएमएफ

इस बीच कृषि कानूनों पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की भी टिप्पणी आई है. कम्यूनीकेशन निदेशक गैरी राइस का कहना है कि भारत सरकार के कदमों में भारतीय कृषि सुधारों की क्षमता है, लेकिन इस बदलाव से प्रभावित होने वालों को सामाजिक सुरक्षा दिया जाना जरूरी है. सरकार भी लगातार इन कानूनों को किसानों के हित में बता रही है. लेकिन आंदोलनरत किसान किसी भी कीमत पर कानूनों की वापसी से कम पर मानने के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों ने अपने आंदोलन को सख्त करते हुए 26 जनवरी को राजपथ पर ट्रैक्टर रैली निकालने का भी ऐलान किया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

डेस्क संसदनामा

संसदीय लोकतंत्र की बुनियादी बातों और विचारों का मंच

Recent Posts

नियम 255 के तहत तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्य राज्य सभा से निलंबित

बुलेटिन के मुताबिक, "राज्य सभा के ये सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समक्ष आ गये,…

3 years ago

‘सरकार ने विश्वासघात किया है’

19 जुलाई से मानसून सत्र आरंभ हुआ था, लेकिन अब तक दोनों सदनों की कार्यवाही…

3 years ago

पेगासस प्रोजेक्ट जासूसी कांड पर संसद में हंगामा बढ़ने के आसार, विपक्ष ने चर्चा के लिए दिए नोटिस

पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) जासूसी कांग पर चर्चा के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद…

3 years ago

संसद के मानसून सत्र का पहला दिन, विपक्ष ने उठाए जनता से जुड़े अहम मुद्दे

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्षी दलों ने महंगाई और केंद्र के तीनों…

3 years ago

सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा, ‘देखिए, आपके डीआईजी कह रहे हैं कि…

3 years ago

बशीर अहमद की रिहाई और संसद में सरकार के जवाब बताते हैं कि क्यों यूएपीए को दमन का हथियार कहना गलत नहीं है?

संसद में सरकार के जवाब के मुताबिक, 2015 में 1128 लोग गिरफ्तार हुए, जबकि दोषी…

3 years ago