ध्वनि मत से कृषि संबंधी दो विधेयकों को पारित कर दिया गया. इसका किसानों, विपक्षी दलों और कुछ दिन पहले तक केंद्र सरकार में शामिल रही शिरोमणि अकाली दल तक विरोध कर रहे थे. ध्वनि मत से पारित विधेयकों में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक- 2020 और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक- 2020 शामिल हैं. विपक्षी दलों ने सदन में इन दोनों विधेयकों पर वोटिंग कराने की मांग की. लेकिन इसे नहीं माना गया. इससे नाराज विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा किया. हालांकि, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने दोनों विधेयकों को ध्वनि मत से पारित घोषित कर दिया.
राज्य सभा से विधयकों को पारित करने के तरीके पर विपक्षी दलों ने तीखे सवाल उठाए हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि सरकार ने राज्य सभा में कृषि विधेयकों पर वोटिंग नहीं होने दी, क्योंकि उनके पास संख्या नहीं थी. उन्होंने आगे कहा, ‘लोकतंत्र के अंतिम प्रतीक की हत्या की जा रही है.’ एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘हां, विपक्ष के एक सांसद ने राज्य सभा माइक्रोफोन तोड़ दिया. आज बीजेपी ने हमारे लोकतंत्र के एक और मजबूत संस्थान की कमर तोड़ने का काम किया है. संविधान द्वारा सांसदों को दी गई बुनियादी अधिकारों की गारंटी को छीन लिया गया. राज्य सभा में मतदान की इजाजत नहीं दी गई.’
वहीं, स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि जिस तरह से किसान विधेयकों पर चर्चा को रोका गया, विपक्ष को अपनी बात नहीं रखने दी गई और वोटिंग की मांग को खारिज किया गया, वह गलत है. उन्होंने इसे किसानों के इतिहास का काला दिन बताया.
उच्च सदन में विधेयकों पर वोटिंग न कराने से नाराज विपक्षी सांसदों ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) पेश किया. वहीं, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में किसानों ने विधेयकों के विरोध में और न्यूनत समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून की मांग को लेकर जमकर प्रदर्शन किया.
राज्य सभा से विधेयकों या किसी प्रस्ताव को पारित करने की प्रक्रिया ‘राज्य सभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम’ में दी गई है. जो इस प्रकार है-
नियम-352 के खंड-1 के मुताबिक, किसी प्रस्ताव पर चर्चा समाप्त होने के बाद सभापति संसद सदस्यों से उस पर राय लेंगे और उनसे प्रस्ताव (विधेयक) के पक्ष में ‘हां’ और विरोध में ‘न’ कहने के लिए कहेंगे.
नियम-352 के खंड-1 के मुताबिक, इसके बाद सभापति कहेंगे, ‘मैं समझता हूं कि (मत विभाजन) ‘हां’ कहने वालों या ‘न’ कहने वालों के पक्ष में है.’ उनके ऐसा कहने पर अगर कोई संसद सदस्य आपत्ति नहीं करता है तो सभापति दो बार फिर दोहराएंगे कि (मत विभाजन) ‘हां’ वालों के पक्ष में है या ‘न’ वालों के पक्ष में है. इसके आधार पर उस प्रस्ताव पर फैसला हो जाएगा.
Advertisement. Scroll to continue reading. नियम-252 के खंड-3 के मुताबिक, अगर किसी प्रस्ताव के फैसले के बारे में सभापति के राय पर सवाल उठता है, और वे ठीक समझते हैं तो ‘हां कहने वालों’ और ’न कहने वालों’ को अपनी-अपनी सीट पर खड़े होने के लिए कह सकते हैं. इनकी गणना के बाद प्रस्ताव (विधेयक) के पारित या खारिज होने का फैसला हो जाएगा. ऐसी सूरत में मतदान करने वाले सांसदों के नाम दर्ज नहीं किए जाएंगे.
नियम-252 के खंड-4 (ए) के मुताबिक, अगर सभापति की राय पर सवाल उठते हैं और वे उपनियम-3 की प्रक्रिया को नहीं अपनाते हैं तो मत विभाजन कराने का आदेश दे सकते हैं.
नियम-252 के खंड-4 (बी) के मुताबिक, [3.30 मिनट बीतने के बाद] सभापति प्रस्ताव को दोबारा सामने रखेंगे और सदस्यों से उस पर ‘हां’ और ‘न’ में अपना मत देने के लिए कहेंगे.
नियम-252 के खंड-4 (सी) के मुताबिक, अगर इससे मिले मत पर फिर सवाल उठता है तो ऑटोमेटिक वोट रिकॉर्डर या लॉबी में आकर मतदान करने के आधार पर उस प्रस्ताव पर फैसला किया जाएगा.
नियम-253 के मुताबिक, ऑटोमेटिक वोट रिकॉर्डर को ऑन किया जाएगा, सदस्य अपनी सीट पर लगी बटन दबाकर अपना ‘हां’ या ‘न’ दर्ज कराएंगे. सभापति इसके नतीजे घोषित करेंगे, जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती है.
इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के आगे प्रदर्शन किया. वहीं, सत्ता पक्ष ने विपक्ष की ओर से सदन में हंगामा और सभापति के आसन के आगे आकर प्रदर्शन करने को लोकतंत्र की हत्या बताया.
कृषि विधेयकों को जिस तरह से पारित किया गया है, उस पर किसान नेताओं ने भी सवाल उठाए हैं. किसान नेता रमनदीप सिंह मान ने लिखा, ‘15 करोड़ किसानों की जिंदगी का फैसला #ध्वनि मत से ये औकात बनाई है किसानों की इन्होंने. वैसे ये आइना किसान कौम को भी देखना जरुरी था! बताओ, कोरोना काल में रोड पर बैठ कर, अपनी जान खतरे में डाल कर, किसान सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी ही तो मांग रहे थे, और क्या चाँद मांग रहे थे.’
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह सवाल बना हुआ है कि इतने महत्वपूर्ण कृषि विधेयकों को आखिर ध्वनि मत से क्यों पारित किया गया? विपक्ष की आपत्ति के बावजूद ध्वनि मत की जगह मतदान क्यों नहीं कराया गया?
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