कुवैत में शनिवार को 50 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली यानी संसद के चुनाव हुए. रविवार को आए चुनाव परिणामों में इस बार एक भी महिला उम्मीदवार नहीं जीत पाई हैं. 2012 के बाद यह पहला मौका है जब कुवैत की संसद में एक भी महिला नहीं होगी. इससे पहले कुवैत की नेशनल असेंबली में एक महिला सदस्य थीं. लेकिन उन्हें इस बार हार का सामना करना पड़ा है. इस बार यहां पर 326 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. इनमें 29 महिलाएं शामिल थीं. गौरतलब है कि कुवैत में महिलाओं को 15 साल की उम्र से मतदान का अधिकार यानी वोटिंग राइट मिल जाता है.
सभी निर्दलीय उम्मीदवार होते हैं
खाड़ी देशों में कुवैत न केवल तेल में सबसे संपन्न है, बल्कि खाड़ी देशों में निर्वाचित संसदीय व्यवस्था को अपनाने वाला पहला देश भी है. यहां 1963 में पहली बार नेशनल असेंबली का गठन किया गया. इसके बाद से हर चाल साल पर लगातार चुनाव कराए जाते रहे हैं. इसके बावजूद यहां पर औपचारिक रूप से राजनीतिक दलों का विकास नहीं हो पाया है. यहां सभी लोग निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं.
विपक्ष का मजबूत गठबंधन
यहां पर कई ऐसे समूह पूरी आजादी से सक्रिय हैं, जो लगभग-लगभग पार्टी की तरह ही काम करते हैं. इन समूहों के बीच एक गठबंधन भी है, जिसे विपक्षी गठबंधन कहा जाता है. हालांकि, इसका वैचारिक आधार किसी पार्टी की तरह बहुत सुसंगठित या मजबूत नहीं होता है. इस बार यहां की संसद में यही विपक्षी गठबंधन मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब रहा है. इसे 50 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में 24 सीटें मिली हैं. इनकी संख्या पिछली संसद में सिर्फ 16 थी. विपक्षी समूह ने इस बार के संसदीय चुनाव में भ्रष्टाचार और कर्ज के बढ़ते बोझ को मुद्दा बनाया. दूसरे खाड़ी देशों की तरह कुवैत को महामारी और तेल के गिरते दाम की दोहरी मार से जूझना पड़ रहा है.
सबसे ज्यादा महिलाओं ने लड़ा
कुवैत अपने यहां महिलाओं को मतदान का अधिकार देता है. लेकिन इस बार एक भी महिला के संसद न पहुंचने पर सभी को हैरानी हो रही है. दरअसल, इस बार 29 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था, जो कुवैत के इतिहास में महिला उम्मीदवारों की सबसे अधिक संख्या है. महिलाओं के अधिकारों की हिमायत करने वाले संगठन कुवैती विमिन्स कल्चर एंड सोशल सोसायटी की प्रमुख लुलवा सालेह अल मुल्ला का कहना है कि इस बार संसद में नई महिला सदस्यों के आने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा न होने से निराशा हुई है.
पुराने सांसदों को भी लगा झटका
Advertisement. Scroll to continue reading. कुवैत की संसद के लिए इस बार 44 वर्तमान सांसदों ने चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सदस्य ही सफल हो पाए. हालांकि, 1981 में पहली बार चुनाव जीतने वाले सांसद अदनान अब्दुल समद लगातार 11वीं बार संसद पहुंचने में सफल रहे. इस चुनाव में मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े इस्लामी कांस्टीट्यूशनल मूवमेंट ने तीन और अल्पसंख्यक शिया समुदाय ने छह सीटें जीती हैं. प्रोटोकॉल के हिसाब से प्रधानमंत्री सबाह खालिद अल सबाह ने अपनी सरकार का इस्तीफा अमीर को सौंप दिया है. कुवैत के अमीर ने उन्हें नई कैबिनेट गठित होने तक केयरटेकर के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया है.
निर्वाचित संसद पर राजपरिवार की हुकूमत
कुवैत में 1963 में नेशनल असेंबली बनने के बाद से लगातार चुनाव हो रहे हैं. लेकिन सिर्फ सात बार ही निर्वाचित संसद ही अपना चार साल का कार्यकाल पूरा कर पाई है. इसकी वजह है कि यहां सारी शक्तियां 250 साल से हुकूमत कर रहे अल-सबाह परिवार के हाथों में केंद्रित होना है. कुवैती संविधान के अनुच्छेद-107 के मुताबिक, यहां के अमीर या राजपरिवार अपने शासनादेश के जरिए संसद को भंग कर सकता है. 1975 से लेकर 2016 के बीच नौ निर्वाचित संसद को इसी कानून के तहत भंग किया गया है. हालांकि, संविधान में यह भी प्रावधान है कि संसद भंग होने पर अधिकतम दो महीने के भीतर नई संसद के लिए चुनाव कराना जरूरी है.
सरकार कैसे बनती है?
कुवैत की संसद में विधायिका और कार्यपालिका का बंटवारा है. यहां के अमीर को प्रधानमंत्री और 16 मंत्रियों में से 15 की नियुक्त करने का अधिकार है. हालांकि, इनकी नियुक्ति को नेशनल असेंबली यानी संसद को अपनी मंजूरी देनी होती है. इसलिए 50 निर्वाचित सदस्यों वाली कुवैती संसद में 15 मंत्रियों को मिलाकर कुल संख्या 65 तक पहुंच जाती है.