राज्य सभा में कृषि विधेयकों को ध्वनिमत से पारित करने के साथ शुरू हुआ विवाद लगातार बना हुआ है. मंगलवार को समूचे विपक्ष ने राज्य सभा की मानसून सत्र की बाकी कार्यवाही का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया है. किसानों के मुद्दे और राज्य सभा के सांसदों के निलंबन पर कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने लोकसभा की कार्यवाही का भी बहिष्कार करने फैसला किया.
संसद की कार्यवाही का बहिष्कार करने के सामूहिक फैसले के बाद राज्य सभा से निलंबित संसदों ने संसद परिसर में जारी अपने बेमियादी धरने को खत्म कर दिया. इन सांसदों को सदन में अमर्यादित व्यवहार करने के मामले में निलंबित किया गया है. इनमें कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्य शामिल हैं.
राज्य सभा (ऊपरी सदन) में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने सभी आठ सदस्यों का निलंबन वापस लेने की मांग की. इसके साथ उन्होंने मांग रखी कि सरकार तत्काल दूसरा विधेयक लेकर आए और सुनिश्चित करे कि कंपनियां हो या भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), कोई भी किसानों से उनकी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर न खरीदें. गुलाम नबी आजाद ने स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के हिसाब से एमएसपी तय करने की भी मांग रखी. उन्होंने यह कहा, ‘जिन सदस्यों को मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया है, उनका निलंबन रद्द किया जाना चाहिए. जब तक सरकार ये तीन कदम नहीं उठाती है, तब तक हम सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करेंगे.’
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार एक राष्ट्र-एक बाजार, एक देश-एक कर और फिर एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड पर जोर देती रही है, लेकिन देश को एक राष्ट्र-एक पार्टी की ओर नहीं ले जाना चाहिए. राज्य सभा में कृषि विधेयकों को किसानों और सांसदों के विरोध के बावजूद ध्वनिमत से पारित करने पर उन्होंने कहा कि वह आसन और सरकार की मजबूरी समझते हैं, लेकिन सदन की भावना सदस्यों की संख्या से तय नहीं होती, यह राजनीतिक दलों पर निर्भर होनी चाहिए, उस दिन 18 पार्टियां एक साथ थीं.
कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य और निलंबित सांसदों में शामिल राजीव सातव ने कहा कि विपक्ष न केवल इस सत्र में उच्च सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करेगा, बल्कि अपने आंदोलन को सड़क पर ले जाएगा.