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नेपाल में संसद को भंग करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

नेपाल में संविधान के जानकार संसद को भंग करने की प्रधानमंत्री के पी ओली की सिफारिश पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि  राष्ट्रपति से गई सिफारिश संविधान के खिलाफ हैं. इस बीच विपक्षियों ने संसद भंग करने की उनकी सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने संसद को भंग किए जाने को ‘संवैधानिक विद्रोह’ करार दिया है. प्रधानमंत्री के पी ओली के इस फैसले से नाराज उनकी मंत्रिमंडल के सात सहयोगी इस्तीफा दे चुके हैं. उनका साफ कहना है कि संसद को भंग करने की सिफारिश करना 2017 में दिए गए जनादेश का उल्लंघन है. प्रधानमंत्री के फैसले के खिलाफ लोगों ने कई जगहों पर पुतला फूंककर विरोध जताया है.

रविवार को नेपाल में प्रधानमंत्री के पी ओली ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से संसद को भंग करने की सिफारिश की थी. इसे राष्ट्रपति ने मान भी लिया था. राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी सूचना के मुताबिक, अगले साल प्रतिनिधि सभा के लिए 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में चुनाव कराए जाएंगे.

नेपाल में इस राजनीतिक स्थिति के लिए  सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच टकराव को वजह माना जा रहा है. प्रधानमंत्री के पी ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दल प्रचंड के बीच काफी दिनों से सत्ता संघर्ष चल रहा था. माना जा रहा है कि नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी के भीतर के पी ओली पुष्प कमल दहल से पिछड़ रहे थे.  पुष्प कमल दहल, माधव नेपाल और झाला नाथ खनाल ने प्रधानमंत्री के पी ओली से इस्तीफे की मांग भी शुरू कर दी थी.

डेस्क संसदनामा

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