केंद्रीय कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना को लागू हुए डेढ़ दशक बीत चुके हैं. लेकिन इससे जुड़े विवाद अब तक नहीं सुलझ पाए हैं. कई मामले अदालतों में लंबित हैं. खास तौर पर ऐसे मामले जिनमें नौकरियों के विज्ञापन जनवरी 2004 के पहले निकले थे और परीक्षाएं, नतीजे या नियुक्ति 2004 के बाद हुई थी. अब केंद्र सरकार ने ऐसे मामलों में पुरानी पेंशन योजना को देने से साफ तौर पर इनकार कर दिया है.
संसद के मानसून सत्र में राज्य सभा में सांसद रवि प्रकाश वर्मा ने सरकार से इस पर जानकारी मांगी थी. उन्होंने पूछा था, (1) क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि विभिन्न नौकरियों के लिए 01 जनवरी 2004 से पहले के विज्ञापनों में राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) का जिक्र नहीं था और जिन सरकारी कर्मचारियों के परिणाम साल 2003 के बाद घोषित हुए थे, उनकी आवेदन की तिथि के आधार पर एनपीएस के बजाए पुरानी पेंशन योजना के आधार पर नियुक्ति दी गई? (2) यदि हां तो परिणामों की घोषणा को (पेंशन देने का) मानक बनाने का क्या औचित्य है? (3) क्या सरकार ऊपर की बातों (परिणामों की घोषणा को आधार बनाना) के मद्देनजर 17 फरवरी 2020 के अपने आदेश में बदलाव करेगी और एनपीएस में शामिल उन कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ वापस देगी, जिनके पद 01 जनवरी 2004 के पहले विज्ञापित हुए थे/परीक्षाएं हो गई थीं? (4) यदि नहीं, तो मुकदमेबाजी को बढ़ावा देने और राजकोष पर अनुचित बोझ डालने के क्या कारण हैं? [राज्य सभा | अतारांकित प्रश्न सं 598 | 17 सितंबर, 2020]
सांसद रवि प्रकाश वर्मा के सवालों का जवाब केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने दिया. उन्होंने बताया कि कुछ अदालती मामलों जैसे परमानंद यादव बनाम भारत संघ (2013), राजेंद्र सिंह बनाम भारत संघ (2016) के आधार पर उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिया गया, क्योंकि उनका चयन जनवरी 2004 के पहले हो गया था, लेकिन उन्हें नियुक्ति इसके बाद मिली थी. डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे बताया कि सरकार ने मुकदमेबाजी रोकने का फैसला किया है. इसके लिए पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने 17 फरवरी, 2020 को एक आदेश जारी किया है. इसके मुताबिक उन सभी सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलेगा, जिनकी 31 दिसंबर 2003 को या उससे पूर्व होने वाली रिक्तियों की तुलना में भर्ती परिणाम 01 जनवरी 2004 से पहले आए थे. ऐसे सभी उम्मीदवारों को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली-1972 का लाभ दिया जाएगा.
ऐसे सरकारी कर्मचारी जिनकी परीक्षा परिणाम जनवरी 2003 से पहले आए थे और उनकी नियुक्ति जनवरी 2004 को या इसके बाद हुई है, जिन्हें अभी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली का लाभ मिल रहा है, उन्हें भी केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 में शामिल होने का एक बार विकल्प दिया जा सकता है. हालांकि, केंद्र सरकार ने उन कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने से इनकार कर दिया है, जिनकी परीक्षाएं जनवरी 2004 से पहले हो गई थीं, लेकिन परिणाम उसके बाद आए थे. सरकार ने इसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाया है.
दरअसल, भारत संघ और अन्य बनाम डॉ. नारायण राव बट्टू मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मार्च 2019 को फैसला सुनाया था. इसमें कहा था कि 01 जनवरी 2004 को या उसके बाद सरकारी नौकरी में आने वालों को नई पेंशन योजना के तहत नियुक्ति देने का नीतिगत फैसला बहुत पहले किया जा चुका था, इसलिए 25 फरवरी 2005 को नियुक्ति पाने वाले याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन पाने का महज इसलिए दावा नहीं कर सकते कि उनकी नौकरी का विज्ञापन नई पेंशन योजना के लागू होने से पहले निकाला गया था.
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के इसी आदेश के आधार पर पुरानी पेंशन योजना को विस्तार देने वाले 17 फरवरी के अपने आदेश में कोई बदलाव करने से इनकार कर दिया है. यानी अब ऐसे लोगों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा, जिनकी नौकरी का विज्ञापन और परीक्षाएं 2004 के पहले हो गई थी, लेकिन परिणाम और नियुक्ति नई पेंशन योजना लागू होने के बाद हुई.