इस साल प्याज के दाम बीते साल जितने नहीं बढ़े हैं, यह बताने के लिए संसदीय मामलों के राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक पोस्टर शेयर किया. ट्विटर पर उन्होंने यह भी लिखा, ‘उपभोक्ताओं को किफायती दरों पर प्याज उपलब्ध कराने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार के प्रयासों से प्याज के दाम पिछले वर्ष से काफी कम हो गए हैं। प्याज की खुदरा दर में ये कमी उपभोक्ता हित में सरकार द्वारा लिए गए विभिन्न निर्णयों से आई है।’ पोस्टर में बीते साल और इस साल दिसंबर में प्याज के दाम की तुलना की गई है.
प्याज का दाम घटाने के लिए सरकार ने क्या किया
किसानों की आशंका और आंदोलन से उठे सवालों पर चर्चा करने से पहले यह जान लेते हैं कि केंद्र सरकार ने क्या-क्या फैसले किए, जिससे प्याज के दाम बीते साल से इस साल कम हो गए. सितंबर में प्याज के दाम बढ़ने शुरू हुए और इनकी कीमत दिल्ली में 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए.
इससे निपटने के लिए सरकार ने 27 सितंबर के न केवल प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी, बल्कि इसकी खुदरा और थोक स्टॉक लिमिट भी तय कर दी. खुदरा विक्रेता केवल 20 क्विंटल और थोक विक्रेता 250 क्विंटल प्याज ही रख सकते हैं.
इसके साथ सरकार ने बफर स्टॉक से कम कीमत पर प्याज की बिक्री शुरू कर दी. हालांकि, इन सब फैसलों के अंतिम नतीजे में यही होगा कि प्याज की नई फसल आने पर किसानों को महंगाई का फायदा तो दूर सही दाम नहीं मिल पाएगा. यह किसी एक साल की नहीं, बल्कि हर साल की कहानी है.
जमाखोरी रोकने के उपायों पर सरकार की दलील
अब लौटते हैं संसद से पारित तीन कृषि कानूनों से जुड़े सरकार के दावे की, जिसे अध्यादेश के रूप में सरकार ने पांच जून को ही लागू कर दिया था. इनमें आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 संशोधन अधनियम भी शामिल है.
इसके जरिए आलू, प्याज और अन्य कृषि उत्पादों को स्टॉक लिमिट के दायरे बाहर कर दिया गया है. इससे सरकार का दावा है कि इससे भंडारण और कोल्ड स्टोरेज में निजी निवेश आएगा, सुविधाएं बेहतर होंगी और किसानों को अपनी फसल सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी.
Advertisement. Scroll to continue reading. विपक्ष और किसानों की क्या है राय
सरकार के मुकाबले केंद्र के तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे किसानों और विपक्षी दलों का कहना है कि यह कालाबाजारी को बढ़ाने वाला कदम है. इसकी वजह सरकार का बाजार पर नियंत्रण और निगरानी कमजोर होना है. खुद केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र में इस बात को माना है.
23 सितंबर को राज्य सभा में सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव के सवालों के जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया था, ‘मंत्रालय द्वारा केंद्रीकृत रूप में किसानों एवं व्यापारियों के लिए शीत भंडारगृहों की सुविधाओं के क्षमता उपयोग, उपलब्धता संबंधी वास्तविक समय के आंकड़े और लागत आदि की सूचनाओं का रखरखाव नहीं किया जाता है. वास्तविक समय निगरानी करने की कोई प्रणाली नहीं है.’
स्टॉक लिमिट हटने का कितना असर
किसानों की आशंका के आधार पर देखें तो केंद्र सरकार ने अध्यादेश के रूप में पांच जून को आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलावों को लागू कर दिया. इससे पहले प्याज अपनी खेती की लागत से भी कम दाम पर बिक रहा था. लेकिन तीन महीने के भीतर यानी सितंबर में इसके दाम आसमान छूने लगे. इसके पीछे फौरी तौर पर बारिश से प्याज की खरीफ सीजन की फसल खराब होने को वजह बताया गया.
लेकिन यह भी हकीकत है कि इसी दौरान लॉकडाउन के चलते होटल, ढाबे से लेकर शादी-ब्याह और दूसरे आयोजन बंद रहे, जिससे प्याज खपत कम से कम चार महीने तक अपने न्यूनतम स्तर पर रही. ऐसे में प्याज की आपूर्ति या उपलब्धता कमी को दाम चढ़ने की अकेली वजह नहीं माना जा सकता है.
अपने दावे से क्यों मुकरी सरकार
इस सारी बातों को एक तरफ रख दिया जाए तो भी कई सवाल उठते हैं. पहला, केंद्र सरकार ने स्टॉक लिमिट के जरिए जमाखोरी रोकने के उपाय को गैर-जरूरी बताया तो फिर उसने खुद क्यों स्टॉक लिमिट लगाई? क्या निर्यात पर रोक किसानों को कहीं भी फसल बेचने की आजादी देने के दावे पर हमला नहीं था?
क्या इस मामले में सरकार का पूरा फैसला आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव को लेकर किसानों की आशंका को सही नहीं साबित करता है? जैसे प्याज के दाम चढ़े, वैसा दूसरी किसी फसल या अनाज के साथ नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? वह भी तब, जब सरकार के पास निजी क्षेत्रों के भंडारगृहों और कोल्ड स्टोरेज पर निगाह रखने का कोई उपाय ही नहीं है.
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