संसद

किसानों के आंदोलन के बावजूद सरकार संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने से क्यों बच रही है?

सामान्य तौर पर नवंबर के तीसरे हफ्ते में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो जाता है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है. केंद्र सरकार ने अब तक शीतकालीन सत्र बुलाने के बारे में कोई कदम नहीं उठाया है. जबकि लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला बीते महीने ही कह चुके हैं कि उनकी तरफ से शीतकालीन सत्र आयोजित करने की सारी तैयारी है, बाकी सत्र बुलाने का फैसला सरकार को करना है.

संसद सत्र जल्द बुलाने की मांग

ऐसे वक्त में जब हजारों किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने का कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, सरकार ने संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने में देरी करके विपक्ष को हमला करने का मौका दे दिया है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार से जल्द से जल्द संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने की मांग की है. गुरुवार को कांग्रेस नेता और पंजाब में आनंदपुर साहिब से लोक सभा सदस्य मनीष तिवारी ने कहा कि किसानों के प्रदर्शन, सीमा पर चीन के अतिक्रमण, गिरती अर्थव्यवस्था और कोरोना संकट को देखते हुए बहुत जल्द संसद का शीतकालीन सत्र बुलाया जाना चाहिए.

सांसद अपना कर्तव्य निभाएं

सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि सांसदों को देश के नेतृत्व करने का उदाहरण पेश करके अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, न कि कोरोना के डर से जिम्मेदारियों से भागना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘जब केंद्र के तीनों कानूनों को हटाने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और देश के अलग-अलग हिस्से से आए किसान दिल्ली की सीमा पर जमा हैं, तब संसद का शीतकालीन सत्र बुलाना बहुत जरूरी हो गया है.’ पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा, ‘किसानों की मांग के लिहाज से पूरे मुद्दे पर बहस करने के लिए संसद ही सबसे अच्छा मंच है.’

‘देश में गलत संदेश जाएगा’

शीतकालीन सत्र बुलाने में देरी के पीछे कोरोना संकट की वजह बताया जा रहा है. इस पर सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि संसद की स्थायी और संयुक्त समितियां लगातार काम कर रही हैं, इसलिए सत्र को न बुलाने का कोई तुक नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि संसद का शीतकालीन सत्र न बुलाने से न केवल गलत परंपरा स्थापित होगी, बल्कि पूरे देश में गलत संदेश जाएगा. लोक सभा सांसद ने कहा कि कोरोना से बचाव की सारी सावधानियों को अपनाते हुए संसद का सत्र चलाया जाना चाहिए.

अब तक सत्र बुलाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई

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संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने को लेकर केंद्र सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की है. दरअसल, संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक के साथ सत्र बुलाने की प्रक्रिया शुरू होती है. इसकी बैठक में संसद सत्र की तारीख तय की जाती है और फिर सत्र बुलाने के लिए उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. लेकिन अब तक तो कैबिनेट कमेटी की बैठक ही नहीं हुई है और न ही जल्द होने की संभावना है. इसी वजह से इस आशंका ने जोर पकड़ा है कि सरकार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाना चाहती है. इसकी जगह पर जनवरी के अंत में इसे बजट सत्र से जोड़कर बुला सकती है. अगर ऐसा हुआ तो साल 2020-21 के नाम न केवल सबसे कम दिन संसद चलने, बल्कि सबसे कम सत्र होना भी दर्ज हो जाएगा. शीतकालीन सत्र न बुलाने का इतिहास देखें तो अब से पहले (अगर इस बार सत्र नहीं बुलाया गया तो) 1975, 1979 और 1984 में शीतकालीन सत्र नहीं हुए थे.

किसानों की मांगों का क्या होगा

संसद के मानसून सत्र को कोरोना संकट के दौरान बुलाया गया था. इसी सत्र में सरकार ने विपक्ष के विरोध और किसानों के आंदोलन के बावजूद विवादित कृषि कानूनों को ध्वनि मत से पारित करा लिया था. अब इन्हीं कानूनों के खिलाफ किसानों का एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया है. इस बीच सरकार दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों को बातचीत से मनाने में जुटी है. लेकिन किसान इन कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून न बनने तक आंदोलन जारी रखने की बात कर रहे हैं. सवाल यही है कि अगर किसानों को संसद से पारित कानूनों से समस्या या शिकायत है तो उसे बगैर संसद की मदद के कैसे दूर किया जा सकता है? क्या इस मामले में सरकार को विपक्ष के तीखे सवालों का डर सता रहा है, क्योंकि एनडीए के सहयोगी दल भी किसानों के मुद्दे पर सरकार के साथ नहीं दिखाई दे रहे हैं.

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ऋषि कुमार सिंह

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