लेख-विशेष

क्यों जनता की समस्याएं दूर करने के लिए सांसदों के हाथ खाली हैं?

संसद के बजट सत्र के पहले हिस्से की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. इसमें एक बात सबसे ज्यादा अहम रही कि सांसदों ने स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड्स) के पैसे को दो साल के लिए रोकने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया. आम बोलचाल की भाषा में इसे सांसद निधि कहा जाता है. लोक सभा और राज्य सभा के दर्जनों सांसदों ने न केवल इस पर सरकार से लिखित जवाब मांगा, बल्कि विभिन्न चर्चाओं में इसका उल्लेख भी किया.

खाली हाथ कैसे होगी जनता की मदद

राज्य सभा में बजट पर चर्चा के दौरान केरल से सांसद एम.वी श्रेयंस कुमार ने सांसद निधि (एमपीलैड्स) दो साल तक रोकने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, ‘मैं वित्त मंत्री से एमपीलैड्स (MPLADS) को दोबारा शुरू करने का अनुरोध करता हूं. केरल, जहां से मैं आता हूं, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के विधायकों के पास उनके स्थानीय क्षेत्र विकास निधि है. केरल में यह पांच करोड़ रुपये मिलते हैं. सांसद बिना पैसों के स्थानीय समुदाय और स्थानीय संस्थाओं की कोई मदद नहीं कर सकते हैं.’

सांसद निधि को दोबारा शुरू करने की मांग

सांसद एमवी श्रेयंस कुमार की तरह दूसरे सांसदों को भी जनता के सामने परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यही वजह है कि लोक सभा में सांसदों ने इस बारे में सरकार से जमकर सवाल पूछा है.

बजट सत्र के दौरान लोक सभा सांसद मन्ने श्रीनिवास रेड्डी ने पूछा कि क्या सरकार का एमपीलैड्स योजना को दोबारा शुरू करने का विचार है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है, अगर नहीं  है तो उसकी वजह क्या है? उन्होंने यह भी पूछा कि योजना को दोबारा शुरू करने के लिए आज की तारीख (10 फरवरी 2021) तक कुल कितनी मांगें सरकार को मिली हैं और इस बारे में सरकार ने क्या कार्रवाई की है? लगभग ऐसे ही सवाल लोक सभा सांसद माला राय ने भी पूछे.

केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राव इंद्रजीत सिंह ने इन सवालों का जवाब दिया. उन्होंने साफ-साफ कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 में एमपीलैड्स (सांसद निधि) को दोबारा शुरू करने की कोई योजना नहीं है. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि सांसद निधि को कोरोना महामारी से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय को दिया गया है और जितने भी सांसदों ने इस बारे में सवाल किया है, उन्हें भी यही जवाब दिया गया है.

क्या दो साल से पहले शुरू हो सकती है सांसद निधि

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बजट सत्र के दौरान राज्य सभा में सांसद बी लिंग्याह यादव, डॉ. सस्मित पात्रा और ए विजय कुमार ने पूछा कि क्या एमपीलैड्स को दो साल के पहले भी शुरू किया जा सकता है? इसके जवाब में भी सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है. (यानी एमपीलैड्स को दो साल पूरा होने के बाद ही दोबारा शुरू किया जाएगा.)

सांसद निधि रोकने से पहले सांसदों से पूछा गया या नहीं?

क्या सरकार ने सांसद निधि को रोकने से पहले इसके बारे में सांसदों से कोई चर्चा की थी? यह सवाल बीते साल संसद के मानसून सत्र में लोक सभा सांसद तालारी रंगैय्या ने उठाया था. उन्होंने यह भी पूछा था कि सांसद निधि को दो साल तक रोकने के क्या कारण है, क्या सरकार को इस बारे में सांसदों की चिंता की जानकारी है, अगर हां तो उसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

इस पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बताया था कि सांसद निधि को बंद करने से पहले सांसदों से कोई चर्चा नहीं की गई थी. उन्होंने यह भी कहा था कि यह कदम कोरोना संकट से निपटने के लिए जरूरी संसाधनों जुटाने के लिए उठाया गया है. सांसदों की चिंता दूर करने के सवाल पर उनका कहना था कि सभी सांसदों को पहले से बची हुई सांसद निधि का इस्तेमाल करने के लिए प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय करने के लिए कहा गया है. इसके लिए आठ अप्रैल 2020 को सर्कुलर जारी किया गया था.

पहले से जमा सांसद निधि से चलाएं काम

केंद्रीय मंत्री ने यही जवाब बजट सत्र में लोक सभा सांसद जनार्दन सिंह सीग्रीवाल के सवालों के जवाब में दिया. उन्होंने बताया कि सांसदों से विकास प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय करते हुए नोडल जिलों के पास पहले मौजूद सांसद निधि का उपयोग करने का अनुरोध किया गया है. इसके लिए नोडल जिलों के प्राधिकारियों को केवल वही कार्यों को कराने का निर्देश दिया गया है, जिन्हें पहले से उपलब्ध सांसद निधि में पूरा किया जा सके. केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि कई सांसदों ने सरकार से 31 मार्च 2020 तक की सांसद निधि की लंबित किस्तों का भुगतान करने का अनुरोध किया है.

सांसद निधि की लंबित किस्तों पर भी रोक

हालांकि, सरकार ने सांसद निधि की लंबित किस्तों का भी भुगतान रोक दिया है. बजट सत्र में लोक सभा सांसद समुधानंद सरस्वती ने विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 16वीं लोक सभा (अभी 17वीं लोक सभा) के लिए लंबित सांसद निधि की किस्तों के भुगतान का सवाल उठाया. इस पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने जवाब दिया कि जरूरी दस्तावेजों और पात्रता मानकों को पूरा न करने वजह से कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को 16वीं लोक सभा के लिए सांसद निधि की किस्तें नहीं दी गई हैं. उन्होंने यह भी बताया कि अब 31 मार्च 2020 तक लंबित सांसद निधि की पुरानी किस्तों की कोई भी धनराशि नहीं जारी की जाएगी.

एक ही सवाल पर अलग-अलग जवाब

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बजट सत्र में लोक सभा सांसद सप्तगिरी शंकर उलाका ने एक सवाल पूछा कि क्या सरकार पूर्व सांसदों की इस्तेमाल न हो सकी सांसद निधि  को वर्तमान सांसदों में आवंटित करने पर विचार कर रही है? इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है. हालांकि, अन्य संसद सदस्यों के इसी सवाल पर उन्होंने बिल्कुल उलट जवाब दिया है.

लोक सभा में सांसद सुधाकर तुकाराम श्रंगरे, सुनील कुमार सिंह, बालक नाथ और प्रतिमा भौमिक ने नोडल जिलों में सांसद निधि के तहत जमा राशि, जिला स्तर पर उपलब्ध राशि और केंद्र सरकार के आंकड़ों में अंतर, पूर्व सांसदों की बची हुई सांसद निधि नए सांसदों को सौंपने की योजना और इस काम में देरी जैसे सवाल पूछे थे.

इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बताया कि नवंबर-दिसंबर 2020 में मंत्रालय को 481 निर्वाचन क्षेत्रों और राज्य सभा 169 नोडल जिलों से मिली जानकारी के मुताबिक पूर्व और पदस्थ सांसदों के लिए नोडल जिलों में कुल 1619.42 करोड़ रुपये की सांसद निधि उपलब्ध है. उन्होंने यह भी माना कि नोडल जिलों और सरकार के आंकड़ों में अंतर है.

साथ में उन्होंने यह भी बताया कि पुराने सांसदों की इस्तेमाल न हो सकी सांसद निधि को नए सांसदों को खातों में ट्रांसफर करने की योजना है. इसके लिए सरकार ने नोडल जिला प्राधिकारियों से कहा है कि जिन सांसदों के पद छोड़ने की तारीख के बाद 12 महीने की समय सीमा में सांसद निधि के खाते बंद नहीं हुए हैं, उन्हें बंद किया जाए और उसमें जमा राशि नए सदस्यों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाए, ताकि उसका उपयोग हो सके.

तीन साल में कितनी मिली सांसद निधि 

लोक सभा सांसद निहाल चंद्र चौहान ने बीते साल मानसून सत्र में तीन साल में आवंटित और खर्च की गई सांसद निधि का ब्यौरा मांगा था. इस पर सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बताया था कि 2017-18 में 3,504 करोड़, 2018-19 में 3,950 करोड़ और 2019-20 में 3,640 करोड़ रुपये की सांसद निधि आवंटित की गई. वहीं, खर्च हुआ पैसा 2017-18 में 4,080 करोड़, 2018-19 में 5,012 करोड़ और 2019-20 में 2,491 करोड़ रुपये रहा.

प्रत्येक वर्ष आवंटन से ज्यादा सांसद निधि खर्च होने की वजह पिछले वर्षों में आवंटित सांसद निधि को खर्च करने की छूट है, क्योंकि यह राशि वित्तवर्ष पूरी होने के साथ खत्म नहीं होती है. केंद्रीय मंत्री ने सभी जिलों में सांसद निधि की एक समान राशि खर्च न होने की भी जानकारी दी थी.

सांसद निधि रोकने से कहां पड़ा असर

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संसद के मानसून सत्र के दौरान लोक सभा सांसद अदूर प्रकाश, हिबी ईडन और डी के सुरेश ने एमपीलैड्स (सांसद निधि) बंद होने से पड़ने वाले असर का सवाल उठाया था. उन्होंने सरकार से पूछा था –

(1) क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि एमपीलैड्स (सांसद निधि) रुकने से देश के ग्रामीण क्षेत्रों की विकासात्मक गतिविधियों पर गंभीर असर पड़ा है?

(2) क्या सरकार को दो साल के लिए एमपीलैड फंड को रोकने के बारे में सांसदों से रिप्रजेंटेशन मिला है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है?

(3) ग्रामीण आबादी के साथ न्याय सुनिश्चित करने के लिए सरकार के क्या कदम उठाए हैं?

(4) क्या सरकार की विकेंद्रीकृत विकास सुनिश्चित करने के लिए एमपीलैड फंड स्कीम को दोबारा बहाल करने की कोई योजना है?

(5) अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है?

सांसदों को नहीं मिला स्पष्ट जवाब

सांसदों के इन सवालों का केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. बस इतना कहा कि एमपीलैड्स को बंद नहीं किया गया है, बल्कि सिर्फ दो साल (वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2021-22) के लिए रोका गया है. उन्होंने इस सवाल का भी जवाब नहीं दिया कि एमपीलैड्स खत्म होने से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और विकेंद्रीकृत विकास पर पड़ने वाले असर के बारे में क्या सरकार को जानकारी है या नहीं.

हालांकि, मानसून सत्र में सांसद चंद्र शेखर साहू और डॉ. प्रीतम गोपीनाथ मुंडे को दिए गए जवाब में उन्होंने इस बात को स्वीकार किया था.  उन्होंने कहा था, ‘सरकार को माननीय सदस्यों से निवेदन प्राप्त हो रहे हैं कि सरकार के निर्णय के बाद विकास कार्यों के प्रभावित होने की संभावना है.’ साथ में केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया था कि सांसद निधि रोके जाने से रोजगार पर पड़ने वाले असर का आकलन करने के लिए सरकार ने कोई अध्ययन नहीं कराया गया है.

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मानसून सत्र में ही लोक सभा सांसद तालारी रंगैय्या ने भी एमपीलैड्स को रोकने से विकासात्मक परियोजनाओं पर पड़ने वाले असर और इसके लिए वैकल्पिक उपायों की जानकारी मांगी थी. लेकिन इसके जवाब में भी केंद्रीय मंत्री ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया था.

सांसद निधि का मकसद क्या है

सवाल उठता है कि आखिर एमपीलैड्स या सांसद निधि को किस मकसद से लाया गया था? सरकार ने इस बारे में सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल और माला राज्य लक्ष्मी शाह को दिए गए जवाब में बताया है. इसके मुताबिक, सांसद निधि का मकसद संसद सदस्यों को विकासात्मक प्रकृति के कार्यों के बारे में सिफारिश करने में सक्षम बनाना है, ताकि वे अपने निर्वाचन या पात्र क्षेत्रों में स्थानीय जरूरतों के अनुसार पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, जन स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़क जैसे टिकाऊ विकास कार्यों को करा सकें.

सांसद निधि को भौगोलिक या क्षेत्रीय आधार पर नहीं, बल्कि निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर जारी किया जाता है. इसमें सांसद की भूमिका सिर्फ विकास कार्यों के बारे में सिफारिश करने तक सीमित होती है.

सांसदों के मुकाबले दूसरे प्रतिनिधि ज्यादा मजबूत

आम तौर पर साल भर में संसद सत्र कुछ महीने  चलता है. इसके बाद बचा समय सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जनता के बीच गुजारते हैं. इस दौरान उनका सामना स्थानीय स्तर पर लोगों की समस्याओं और जरूरतों से होता है. सालाना पांच करोड़ रुपये सांसद निधि उपलब्ध होने पर वे स्थानीय जरूरत के हिसाब से विकास कार्यों के लिए सिफारिश कर पाते हैं. लेकिन इस पर रोक ने उनसे यह सुविधा छीन ली है.

इसके मुकाबले विधायकों, यहां तक कि पंचायत प्रतिनिधियों तक के पास जनता की जरूरतें पूरी करने के लिए जरूरी फंड उपलब्ध है. इसका खतरा यह भी है कि सांसदों की असमर्थता को देखते हुए दो साल में जनता अपनी जरूरतों के लिए उनके पास आना ही बंद कर दे. अगर ऐसा हुआ तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसदों को राजनीतिक नुकसान होने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

महामारी ने बढ़ाया सत्ता का केंद्रीकरण

सत्ता के विकेंद्रीकरण को लोकतंत्र और इसकी सफलता माना जाता है. इसके बगैर लोकतंत्र और राजशाही का बुनियादी फर्क मिटने लगता है. हालांकि, महामारी का शासन व्यवस्था पर इसका ठीक उलटा असर होता है. इससे सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ता है. इसे इस बार भी देश और दुनिया ने महसूस किया है. इस मामले में भारत के हालात भी शेष दुनिया से अलग नहीं हैं.

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केंद्र सरकार लगातार एकतरफा फैसले कर रही है. इसमें राज्यों से बात किए बगैर लॉकडाउन घोषित करने से लेकर सांसदों से पूछे बगैर सांसद निधि को रोकना और किसानों से बात किए बगैर तीन कृषि अध्यादेशों(अब कानून हैं)  जैसे कदम शामिल हैं. इन्हें बढ़ते केंद्रीकरण का सबूत माना जा रहा है. इसका सबसे बुरा असर उस ढांचे पर पड़ने की आशंका है, जिसे विकेंद्रीकरण या जनभागीदारी वाले लोकतंत्र को साकार करने के लिए बनाया गया है. एमपीलैड्स या सांसद निधि भी इसी व्यवस्था का हिस्सा है.

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सादर,

संपादक

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ऋषि कुमार सिंह

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