केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसानों के आंदोलन के बीच केंद्र सरकार लगातार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद के आंकड़े जारी कर रही है. खरीफ सीजन के खरीद सत्र में निश्चित तौर पर आंकड़े बढ़े हैं. लेकिन किसानों की संख्या और इसका राज्यवार बंटवारा करके देखें तो सरकारी खरीद का खोखलापन और किसानों के नुकसान का सच सामने आ जाएगा.
केंद्र के दावे में यूपी के किसान कहां हैं?
केंद्र सरकार के मुताबिक, खरीफ खरीद वर्ष 2020-21 में सात दिसंबर तक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड, तमिलनाडु, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सात दिसंबर तक 350 लाख मिलियन टन धान की खरीद हुई है. यह बीते साल की इस अवधि में हुई सरकारी खरीद (292 लाख मिलियन) से लगभग बीस फीसदी ज्यादा है. अब इसका राज्यवार बंटवारा देखें तो पंजाब का 58 फीसदी है यानी वह पहले नंबर, 16 फीसदी हिस्से के साथ हरियाणा दूसरे नंबर पर और आठ फीसदी खरीद के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर है. वहीं, सात फीसदी खरीद के साथ तेलंगाना चौथे नंबर पर है.
रकबे में अव्वल, सरकारी खरीद में फिसड्डी
सरकार ने आंकड़ों की एक गुलाबी तस्वीर बनाई है. लेकिन इसमें एक स्याह हकीकत भी छिपी है. केंद्र सरकार के डायरेक्टोरेट ऑफ राइस डेवलपमेंट के आंकड़े बताते हैं कि पंजाब से लगभग दोगुना और हरियाणा से लगभग साढ़े चार गुना जमीन पर धान की खेती करने वाला उत्तर प्रदेश सरकारी खरीद में तीसरे नंबर पर खड़ा है. साल 2015-16 में पंजाब में धान की खेती का रकबा 29 लाख 75 हजार और हरियाणा में 13 लाख 54 हजार हेक्टेयर था, जबकि उत्तर प्रदेश में धान का रकबा 58 लाख 37 हजार हेक्टेयर था. उत्पादन के लिहाज से भी उत्तर प्रदेश और पंजाब में दूसरे-तीसरे नंबर पर रहने की होड़ रहती है. यानी उत्पादन के बावजूद जहां सरकारी खरीद की वजह से पंजाब और हरियाणा के किसान धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य पाने में सफल हो जाते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए यह दूर की कौड़ी बना रहता है.
किसानों को धान का आधा-तीहा दाम
उत्तर प्रदेश में जमीनी हकीकत यह है कि किसानों को सरकारी खरीद केंद्र पर धान बेचने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. बाहर यानी खुले बाजार में उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधा-तीहा दाम ही मिल पा रहा है. धान की एमएसपी 1868 रुपये प्रति क्विंटल घोषित है, लेकिन खुले बाजार में इसका भाव बमुश्किल 1000-1050 रुपये प्रति क्विंटल बना हुआ है. किसानों का आरोप है कि धान खरीद केंद्रों पर गुणवत्ता खराब बताकर धान खरीदने से इनकार किया जा रहा है.
किसानों के हाथ में आंकड़ों की बाजीगरी
Advertisement. Scroll to continue reading. उत्तर प्रदेश में धान खरीद की सुस्ती खुद प्रदेश सरकार की आधिकारिक वेबसाइट बयान कर रही है. नौ दिसंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में धान खरीद के लिए कुल सत्यापित किसानों की संख्या नौ लाख 44 हजार है. अब तक पांच लाख 61 हजार किसानों से कुल 30 लाख टन धान की खरीद की गई है. यह हाल तब है, जब सरकार ने सिर्फ 55 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है. उत्तर प्रदेश में बीते साल की तरह इस साल भी लगभग 155 लाख टन धान पैदा होने का अनुमान है. हालांकि, पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस बार कंडुआ रोग ने धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है.
सवाल है कि जितने समय में पंजाब ने 200 लाख टन और हरियाणा ने 56 लाख टन धान की सरकारी खरीद कर डाली, उतने समय में यूपी सिर्फ 30 लाख टन धान ही क्यों खरीद पाया? यह सीधे तौर पर सरकारी खरीद की बदहाली बयां कर रहा है. पंजाब और हरियाणा में बेहतर मंडी व्यवस्था होने की वजह से किसानों को धान का कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल गया. लेकिन उत्तर प्रदेश के किसानों के हाथ में सिर्फ सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी ही आ रही है.
यूपी में किसानों को केंद्रीय कानून से कितना फायदा
आखिर केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानून उत्तर प्रदेश के किसानों को सही कीमत क्यों नहीं दिला पा रहे हैं? क्यों निजी व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य छोड़िए, उसके आसपास की कीमत भी देने को तैयार नहीं हैं? ऐसे में कितना संभव है कि प्रदेश का किसान अपना धान लेकर दूसरी जगहों पर जाए, जबकि हर जगह धान के दाम एमएसपी से नीचे बने हुए हैं? ऐसे में एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांग में कहां दिक्कत है, क्योंकि सरकार खुद मानती है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना जरूरी है.