संसदीय समाचार

सीमा ढाका ने अकेले 76 बच्चों को खोज निकाला, लेकिन गुमशुदा बच्चों पर संसद में सरकार ने क्या कहा?

दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल सीमा ढाका ने ढाई महीने में 76 गुमशुदा बच्चों को खोज निकाला. उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर सब इंस्पेक्टर बना दिया गया. लेकिन क्या आपको पता है कि देश में रोजाना हजारों बच्चे गायब होते हैं, और उनमें से बहुत कम ही अपने घरों तक लौट पाते हैं. और जो बच्चे मिल जाते हैं, सरकारें उनके मां-बाप का पता नहीं लगा पाती हैं.

संसद में गुमशुदा बच्चों का सवाल

संसद के मानसून सत्र में लोक सभा सांसद डॉ. वीरेंद्र कुमार ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय से गुमशुदा बच्चों की देखभाल पर जवाब मांगा. उन्होंने पूछा कि (1) क्या सरकार के संज्ञान में यह बात आई है कि पुलिस गुमशुदा बच्चों का पता लगाने के बाद बीते तीन साल में उनके परिजनों या रिश्तेदारों को नहीं खोज सकी है? (2) अगर हां तो गत तीन वर्षों में ऐसे बच्चों की संख्या कितनी है? (3) सरकार द्वारा ऐसे बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा के लिए क्या प्रस्ताव तैयार किया गया है?

पश्चिम बंगाल और एमपी से सबसे ज्यादा बच्चे गायब

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के आधार पर इन सवालों का जवाब केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने दिया. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर 2016 में लगभग एक लाख 11 हजार बच्चे गायब हुए, जिनमें से लगभग 56 हजार बच्चे ही मिल पाए. इसी तरह 2017 में लगभग एक लाख 19 हजार बच्चे लापता हुए और लगभग 70 हजार बच्चे ही खोजे जा सके. वहीं, 2018 में गुमशुदा होने वाले बच्चों का आंकड़ा एक लाख 15 हजार रहा और इनमें से लगभग 71 हजार बच्चों का ही पता लग पाया. अगर इन तीनों साल को मिला लें तो देश में 18 साल से कम आयु के एक लाख 48 हजार से ज्यादा बच्चे अपने मां-बाप या परिजनों से ऐसा बिछड़े कि वापस मिल नहीं पाए. राज्यों में सबसे ज्यादा बच्चे पश्चिम बंगाल से लापता होते हैं और केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली से सबसे ज्यादा बच्चे गायब होते हैं. (देखें टेबल-1)

जेजे अधिनियम के तहत बच्चों की देखभाल

केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए ट्रैक द मिसिंग चाइल्ड  वेबसाइट बताती है. इसके मुताबिक आज यानी 20 नवंबर को शाम चार बजे तक 53 बच्चे गुम हुए और 36 बच्चों का पता चल पाया. केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री ने यह भी बताया कि उनका मंत्रालय किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम-2015 के तहत ऐसे बेसहारा विपदाग्रस्त बच्चों के लिए केंद्र प्रायोजित बाल संरक्षण सेवा (सीपीएस) स्कीम चला रहा है. उन्होंने बताया कि इसके तहत विपदाग्रस्त बच्चों के पुनर्वास के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता दी जाती है. केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, जेजे अधिनियम को लागू करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की है.

गुमशुदा बच्चे कहां जाते हैं

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गुमशुदा बच्चों की पड़ताल बताती है कि जिन राज्यों में गरीबी ज्यादा है, वहां बच्चों के गुमशुदा होने के मामले ज्यादा है. ऐसे बच्चे को बाल मजदूरी, अंगों की चोरी, भीख मांगने, अवैध तरीके से गोद लेने और यौन शोषण में धकेल दिया जाता है. इस चुनौती के बावजूद सरकारों के पास एक दूसरे के कंधे पर बोझ डालने की सुविधा है. लेकिन जिस देश में रोजाना 316 से ज्यादा बच्चे गायब हो रहे हैं, वहां इसे एक जिम्मेदार सरकार का सही रवैया नहीं कहा जा सकता है. सरकारों को सोचना होगा कि साल दर साल गुमशुदा होने वाले बच्चों का आंकड़ा बढ़ क्यों रहा है? क्यों आधार जैसे पहचान पत्रों और तमाम तकनीकी सुविधाएं नौनिहालों को सुरक्षित बचपन नहीं दे पा रही हैं?

ऋषि कुमार सिंह

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