लेख-विशेष

शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों को जाने बगैर आप न तो कृषि कानूनों का विरोध कर सकते हैं, न ही समर्थन

केंद्र सरकार जून में मंडी व्यवस्था, आवश्यक वस्तु कानून और ठेका खेती से जुड़े तीन अध्यादेश लाई जो सितंबर में संसद से पारित कानून बन गए. सरकार इन कानूनों से किसानों का भविष्य संवरने के दावे कर रही है. लेकिन किसानों को अपनी जमीन और न्यूनतम समर्थन मूल्य सब कुछ छिनता दिखाई दे रहा है. किसानों की इन आशंकाओं के सिरे शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों से जुड़े हैं, क्योंकि केंद्र सरकार की मौजूदा कृषि नीति शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों की तरफ झुकी दिखाई दे रही है.

2014 में बनी थी शांता कुमार कमेटी

एनडीए सरकार ने 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी. इसे फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआई के पुनर्गठन के बारे में सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. एफसीआई ही न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर अनाज की खरीद करती है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए सप्लाई करती है. इस समिति ने एक तरफ धान-गेहूं की सरकारी खरीद के आधार पर एमएसपी के लाभ को सिर्फ 5.8 फीसदी किसानों तक सीमित बताया. इसी के आधार पर अन्य कई सुझाव (पेज नंबर- 4 से 11) दिए. मौजूदा कृषि कानूनों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ने वाले समिति के कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं –

दूसरे राज्यों पर दिया जाए ध्यान

एफसीआई को आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पंजाब जैसे राज्यों में गेहूं-धान की सरकारी खरीद की सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप देनी चाहिए, क्योंकि इनके पास अनाज खरीदने की बेहतर व्यवस्था और अनुभव दोनों है. एफसीआई को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में किसानों की मदद करनी चाहिए, जहां भूजोत का आकार बहुत छोटा है और किसानों को अपनी फसलें एमएसपी से बहुत नीचे दाम पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

सेंट्रल पूल के नियमों में हो कड़ाई

केंद्र सरकार को राज्यों पर सेंट्रल पूल के नियमों को कड़ाई से लागू करना चाहिए. अगर कोई राज्य किसी फसल पर एमएसपी के अतिरिक्त किसानों को बोनस देता है तो उस राज्य से उसकी पीडीएस की खपत के अलावा बाकी अनाज को सेंट्रल पूल में नहीं लेना चाहिए. केंद्र सरकार इस सिफारिश को लागू कर चुकी है. इसी वजह से अब राज्य सरकारें धान, गेहूं और दूसरी फसलों पर बोनस नहीं दे पा रहीं हैं. बोनस देने पर केंद्र सरकार सेंट्रल पूल में उनकी अतिरिक्त फसल लेने से इनकार कर देती है, जिससे राज्य सरकारों को ही सारा खर्च उठाना पड़ता है.

लेवी की असमानता दूर हो

Advertisement. Scroll to continue reading.

अनाज की सरकारी खरीद में लेवी और कमीशन की दरों में मौजूद असमानता को दूर किया जाना चाहिए. यह लेवी गुजरात-पश्चिम बंगाल में दो फीसदी, जबकि पंजाब में 14.5 फीसदी है. इसे फसल मूल्य के तीन फीसदी या एमएसपी के चार फीसदी तक सीमित करना चाहिए और इसे एमएसपी में ही शामिल कर देना चाहिए. लेवी या कमीशन को तार्किक बनाने के दौरान राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार को पैकेज देना चाहिए. सेंट्रल पूल में राज्यों से आने वाले अनाज में क्वालिटी मानकों को सख्ती से लागू करना चाहिए. इस क्वालिटी कंट्रोल को या तो एफसीआई खुद लागू करे या किसी तीसरे पक्ष को शामिल करे. राइस मिलर्स पर लगने वाली लेवी को खत्म करना चाहिए.

वेयरहाउस में जमा अनाज पर कर्ज लेने की सुविधा हो

भारत सरकार को निगोशिएबल वेयरहाउस रिसिप्ट सिस्टम को लागू करना चाहिए. यानी कोई किसान अगर अपना अनाज किसी वेयरहाउस में जमा करता है तो उस फसल की एमएसपी आधारित कुल कीमत के 80 प्रतिशत मूल्य के बराबर बैंक से कर्ज ले सके. जब किसान को अच्छा भाव मिले तो अपनी फसल को बेचकर बैंक का कर्ज चुका दे. इससे किसानों को खेती की जरूरतों के लिए फसलों जल्दबाजी में बेचने के दबाव से बचाया जा सकता है. इस योजना को राजस्थान सरकार ने लागू किया है.

निजी भागीदारी से वेयरहाउस बनाने पर हो ध्यान

एफसीआई और वेयरहाइसिंग डेवलपमेंट रेगुलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूटीआरए) को निजी भागीदारी से वेयरहाउस निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए. इन गोदामों में रखे जाने वाले अनाज पर रोजाना या साप्ताहिक आधार पर निगरानी रखी जा सकती है. भारत सरकार इस व्यवस्था को फसलों के दाम एमएसपी से नीचे जाने पर किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है. इससे वह एमएसपी पर बड़े पैमाने पर अनाज खरीदने और उसे संभालने की जिम्मेदारी से बच जाएगी.

एमएसपी नीति की हो समीक्षा

भारत सरकार को अपनी एमएसपी नीति की भी समीक्षा करनी चाहिए. अभी 23 फसलों की एमएसपी की घोषित की जाती है, लेकिन सबसे ज्यादा खरीद गेहूं-धान की होती है. देश में दलहनी और तिलहनी फसलों की कमी के बावजूद समर्थन मूल्य की सही व्यवस्था न होने से कई बार इसकी कीमत एमएसपी से काफी नीचे चली जाती है. इसके अलावा व्यापार नीति और एमएसपी में अलगाव बना हुआ है. ऐसे में कई बार फसलों को एमएसपी से कम दाम पर आयात कर लिया जाता है. इससे किसानों को अपनी फसलों की सही कीमत नहीं मिल पाती है. यह फसलों में विविधता लाने के प्रयासों को प्रभावित करता है. सरकार को दलहनी और तिलहनी फसलों के लिए बेहतर समर्थन मू्ल्य की व्यवस्था को लागू करना चाहिए और इसे व्यापार नीति से जोड़ना चाहिए, ताकि एमएसपी से कम दाम पर फसलों का आयात न हो सके.

पीडीएस की लीकेज रोकी जाए

भारत सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की समीक्षा करनी चाहिए. कुछ राज्यों में 40-50 प्रतिशत अनाज लीक हो जाता है यानी लाभार्थियों की जगह अन्य लोगों के हाथों में पहुंच जाता है. इसे रोकने के लिए भारत सरकार को उन राज्यों में खाद्य सुरक्षा कानून को लागू नहीं करना चाहिए, जहां पीडीएस में शुरू से अंत तक कंप्यूटराइजेशन नहीं है और लीकेज पर निगाह रखने के लिए सतर्कता समिति नहीं बनी है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

पीडीएस का दायरा घटाया जाए

पीडीएस के दायरे में अभी देश की 67 फीसदी आबादी आती है, जिसकी समीक्षा करने की जरूरत है. शांता कुमार कमेटी ने आगे कहा कि पीडीएस के तहत 67 फीसदी कवरेज बहुत ज्यादा है, जिसे घटाकर 40 फीसदी तक लाना चाहिए, जिसमें गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) परिवार और ऊपर के कुछ परिवार शामिल हों. प्राथमिकता वाले परिवारों को मिलने वाले अनाज की कीमत को एमएसपी से जोड़ा जाना चाहिए, जो एमएसपी का 50 फीसदी हो. पीडीएस के लाभार्थियों को खरीद सीजन खत्म होने के तुरंत बाद छह महीने का राशन दे देना चाहिए. इससे उपभोक्ताओं को हर महीने की उलझनों से बचाया जा सकता है. साथ में, अनाज को सुरक्षित रखने के लिए उपभोक्ताओं को भारी सब्सिडी के साथ जरूरी बर्तन उपलब्ध कराने चाहिए.

अनाज की जगह मिले कैश सब्सिडी

शांता कुमार कमेटी की सिफारिश है कि सरकार को पीडीएस के तहत अनाज देने की जगह पर धीरे-धीरे कैश ट्रांसफर स्कीम लाना चाहिए. इसकी शुरुआत 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों से करनी चाहिए. इसे अनाज के सरप्लस राज्यों में विस्तार देना चाहिए और अऩाज की कमी वाले राज्यों में अनाज या कैश दोनों का विकल्प देना चाहिए. यह गरीबों के लिए ज्यादा मददगार होगा, इससे फसलों के उत्पादन की दशाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और यह अंतरराष्ट्रीय व्यवहार के हिसाब से भी उचित है. अनाज की जगह कैश ट्रांसफर योजना लागू करने पर सरकार सालाना 30 हजार करोड़ रुपये बचा सकेगी.

बफर स्टॉक नियम सख्ती से लागू हों

एफसीआई लगातार बफर स्टॉक से दो गुना अनाज भंडार की देखभाल कर रहा है. इससे उसका खर्च बढ़ रहा है. इससे बचने के लिए उसे बफर स्टॉक नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए और तय सीमा से ज्यादा अनाज जमा होने पर उसे बाजार में बेचने या निर्यात करने की लचीली नीति अपनानी चाहिए.

किसानों को कैश सब्सिडी मिले

किसानों को प्रति हेक्टेयर 7000 रुपये की दर से कैश सब्सिडी देनी चाहिए. फर्टिलाइजर सेक्टर को डिरेगुलेट किया जाए. कैश सब्सिडी मिलने से किसानों को खाद-बीज के लिए कर्ज के जाल से बचने में मदद मिलेगी.

किन-किन सिफारिशों से जुड़ी है किसानों की आशंका

Advertisement. Scroll to continue reading.

किसान शांता कुमार कमेटी की इन्हीं सिफारिशों को कृषि कानूनों के नतीजों से जोड़कर देख रहे हैं. इसमें खास तौर पर पीडीएस का दायरा सीमित करने, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना लाने और बफर स्टॉक को सीमित करने की सिफारिशें इस आशंका को बढ़ा रही हैं कि सरकार भविष्य में एमएसपी पर फसलों की खरीद बंद कर देगी. इसकी वजह साफ है. अगर सरकार ने पीडीएस को सीमित किया या इसमें डीबीटी को लागू किया तो पीडीएस के लिए एमएसपी पर अनाज को खरीदने की जरूरत खत्म हो जाएगी, तब सरकार एमएसपी पर फसलों को क्यों खरीदेगी? अगर ऐसा हुआ तो किसानों के लिए खुले बाजार में धान और गेहूं जैसी फसलों का सही दाम पाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि एमएसपी में शामिल 23 फसलों में शायद ही कोई फसल कभी एमएसपी से ज्यादा दाम पर बिकती हो.

मंडियां ध्वस्त तो खरीद बंद

किसानों की अन्य आशंकाओं में यह भी शामिल है कि शुल्क मुक्त निजी मंडियां बनने से एपीएमसी मंडियां ध्वस्त हो जाएंगी, क्योंकि उनमें टैक्स लगता है. इसके बाद सरकार यह कहते हुए एमएसपी पर खरीद बंद कर देगी कि उसके पास अनाज खरीदने की सही व्यवस्था नहीं है. अभी भी एफसीआई के लिए पूरा खरीद राज्यों की इन्हीं मंडियां और एजेंसियां के जरिए होता है. यह भी देखने में आया है कि जिन राज्यों में मंडियों का यह ढांचा ठीक नहीं है, वहां पर न केवल अनाज खरीदने में देरी होती है, बल्कि खरीद लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाता है. उदाहरण के लिए पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश-बिहार में अनाज खरीद की तुलना की जा सकती है. मंडी की लचर व्यवस्था की वजह से उत्तर प्रदेश में जहां 50 लाख टन धान खरीदने में कई महीने लग जाते हैं. वहीं बिहार में एमएसपी पर फसलों की बहुत कम खरीद हो पाती है, क्योंकि वहां पर एपीएमसी एक्ट को 2006 में ही खत्म कर दिया गया था.

आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव का असर

किसानों की आशंकाओं में यह भी है कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके फसलों की स्टॉक लिमिट को खत्म कर दिया है. इससे आने वाले समय में जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी. इसके असर से फसलों की कीमत में कृत्रिम तौर पर उतार-चढ़ाव आएगा, क्योंकि सरकार ने स्टॉक पर निगाह रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई है. इसका मिलाजुला असर फसलों की कीमत से जुड़ी अनिश्चितता और बढ़ा देगा. मांग-आपूर्ति के सीधे फॉर्मूले में जमाखोरों के जरिए होने वाले खेल को किसान नहीं समझ पाएंगे. इससे मांग के आधार पर खेती करने में भारी घाटे का शिकार होने की आशंका बनी रहेगी.

ऋषि कुमार सिंह

Recent Posts

नियम 255 के तहत तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्य राज्य सभा से निलंबित

बुलेटिन के मुताबिक, "राज्य सभा के ये सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समक्ष आ गये,…

3 years ago

‘सरकार ने विश्वासघात किया है’

19 जुलाई से मानसून सत्र आरंभ हुआ था, लेकिन अब तक दोनों सदनों की कार्यवाही…

3 years ago

पेगासस प्रोजेक्ट जासूसी कांड पर संसद में हंगामा बढ़ने के आसार, विपक्ष ने चर्चा के लिए दिए नोटिस

पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) जासूसी कांग पर चर्चा के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद…

3 years ago

संसद के मानसून सत्र का पहला दिन, विपक्ष ने उठाए जनता से जुड़े अहम मुद्दे

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्षी दलों ने महंगाई और केंद्र के तीनों…

3 years ago

सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा, ‘देखिए, आपके डीआईजी कह रहे हैं कि…

3 years ago

बशीर अहमद की रिहाई और संसद में सरकार के जवाब बताते हैं कि क्यों यूएपीए को दमन का हथियार कहना गलत नहीं है?

संसद में सरकार के जवाब के मुताबिक, 2015 में 1128 लोग गिरफ्तार हुए, जबकि दोषी…

3 years ago