लेख-विशेष

क्यों सर छोटू राम आज के सबसे बड़े किसान आंदोलन के प्रेरणा स्रोत हैं?

भीषण सर्दी में हजारों किसान दिल्ली की सीमा पर जमा हैं. इसकी वजह मेडिकल इमरजेंसी के दौरान 5 जून 2020 को लाए गए तीन कृषि अध्यादेश हैं, जो 27 सितंबर 2020 को कानून बन चुके हैं. इन कृषि कानूनों के विरोध का आगाज़ उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्य पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने किया है. इसकी क्या वजह है? अगर हम इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करेंगे तो इतिहास में जाने पर हमें इस विरोध की प्रेरणा के रूप में एक व्यक्ति की विचारधारा नजर आएगी, जिन्हें आज भी देश के किसान अपना आदर्श मानते हैं, वह हैं महान किसान नेता दीनबंधु सर छोटू राम जी.

सर छोटू राम (24 नवंबर 1881 – 9 जनवरी 1945) ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के प्रमुख राजनेता और स्वतंत्र भारत के प्रमुख विचारक थे. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के ग़रीब किसानों और मजदूरों के के लिए कई बड़े सुधार कार्य कराए. इन्हीं उपलब्धियों के लिए उन्हें 1937 में नाइटहुड की उपाधि दी गई. राजनीतिक मोर्चे पर, वे नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे.

साल 2020 में आए इन तीनों कृषि कानूनों का विरोध साफ तौर पर निजीकरण और पूंजीवाद का विरोध है. इसकी पृष्ठभूमि का सीधा संबंध सन 1945 से पहले की सामंती व्यवस्था और ब्रिटिश शासन काल में किसानों और मजदूरों के शोषण से है. इसी शोषण और लूट के खिलाफ सर छोटूराम ने 1930 के दशक में ब्रिटिश हुकूमत को झुकाते हुए किसानों और मजदूरों के हित में नए कानून बनवाए और पुराने कानूनों में कई बड़े बदलाव करवाए.

कर्जा माफी अधिनियम – 1934

दीनबंधु सर छोटू राम जाट की सबसे बड़ी उपलब्धियों में यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम है. दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1934 को किसानों और मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए यह कानून बनवाया. इस कानून के तहत प्रावधान किया गया कि अगर कर्ज का दोगुना भुगतान हो चुका है तो कर्ज लेने वाला ऋण-मुक्त समझा जाएगा. इस अधिनियम के तहत कर्ज माफी बोर्ड (Reconciliation Board) बनाए गए, जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे. दाम दुपटा का नियम लागू किया गया. इसमें यह भी तय किया गया कि कर्ज वसूली के लिए दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी.

कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम – 1938

सर छोटू राम की सबसे बड़ी उपलब्धि कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम-1938 है, जिसने किसानों को आढ़तियों के शोषण से निजात दिलाई. यह अधिनियम 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया. इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्केट कमेटियों का गठन किया गया. एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था. किसानों को अनेक कटौतियों का सामना करना पड़ता था. आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थी. इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलाने का नियम बना.

साहूकार पंजीकरण एक्ट-1938

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सर छोटू राम के प्रयासों से यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था. इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे सकता था और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर सकता था. इस अधिनियम के कारण ही साहूकारों की फौज पर अंकुश लगा.

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट – 1938

यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ. इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची गई थी और 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं. इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था. इस कानून में प्रावधान किया गया कि अगर साहूकार मूलराशि का दोगुना धन किसान से ले चुका है तो किसानों को उसकी जमीन का पूर्ण स्वामित्व देना पड़ेगा.

व्यवसाय श्रमिक अधिनियम – 1940

यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ. बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई. इसी कानून से सप्ताह में एक दिन की छुट्टी वेतन सहित और दिन में 8 घंटे काम करने का समय तय किया गया. चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी न कराने का भी प्रावधान बना. दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रखने, छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटने और जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग करने की व्यवस्था बनी. इनकी जांच की जिम्मेदारी एक श्रम निरीक्षक को सौंपी गई.
इन कानूनों के अलावा सर छोटूराम जी ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के खेतों में सिंचाई के लिए सतलुज नदी पर भाखड़ा-नांगल बांध का प्रस्ताव रखा. उस वक्त सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा के पास था. झज्जर के इस महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया और देश के सबसे ऊंचे भाखड़ा-नांगल बांध की नींव रखी.

एक तरफ जहां गुलाम भारत के एक सपूत ने ब्रिटिश हुकूमत और सामंती व्यवस्था से लड़ते हुए गरीब किसानों और मजदूरों के हक में कानून पारित करवाये. वहीं दूसरी तरफ स्वतंत्र भारत में कृषि क्षेत्र में कारपोरेट्स को बढ़ावा देने और किसानों को कमजोर करने वाले कानून बनाए गए हैं. सर छोटूराम जी की विचारधारा के विरुद्ध लाए गए केंद्र सरकार के ये तीनों कानून किसानों के अस्तित्व के लिए खतरा हैं, क्योंकि सरकार इनके माध्यम से आने वाले समय में किसानों की फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद बन्द करने की तैयारी कर रही है.

वास्तव में, यह तीनों कृषि कानून असंवैधानिक हैं. कृषि, राज्य सरकारों का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार को कृषि के विषय में हस्तक्षेप करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. साथ ही ये तीनों कानून अलोकतांत्रिक भी हैं, क्योंकि जब पूरा देश कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहा है और संसद भी बन्द थी, उस समय सरकार ये तीनों कृषि अध्यादेशों को लेकर आयी. यह सबसे बड़ी विसंगति है कि इन अध्यादेशों को लाने से पहले सरकार ने किसी भी किसान संगठन से विचार-विमर्श तक नहीं किया.

पहला कानून

किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सुविधा) कानून-2020 (The Farmer’s Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act-2020) है. इसके तहत केंद्र सरकार “वन नेशन-वन मार्केट” बनाने की बात कह रही है. इस कानून के माध्यम से कोई भी पैनकार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट या निजी मंडी, किसी भी किसान का अनाज किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. इसके जरिए कृषि उपज की खरीद मंडी परिसर (एपीएमसी एक्ट के तहत बनी) में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है.
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद मंडी परिसर से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा.

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इसका अर्थ यह हुआ कि मौजूदा मंडी व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी, क्योंकि इसके भीतर खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क व अन्य उपकर लगते रहेंगे. मंडियों में किसानों की फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करने के लिए व व्यापारियों पर लगाम लगाने के लिए अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा मंडी एक्ट बनाया गया था. अब सरकार नए कानून के जरिये किसानों का अनाज एमएसपी पर खरीदने की अपनी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से बचना चाहती है. जब किसानों की उपज की खरीद किसी निश्चित स्थानों पर नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पायेगी कि किसानों की उपज की खरीद एमएसपी पर हो रही है या नहीं?

हालांकि, मौजूदा मंडी एक्ट में सुधार की जरूरत है लेकिन उसे खारिज़ करके किसानों का अनाज खरीदने की इस नई व्यवस्था से किसानों का शोषण बढ़ेगा. उदाहरण के तौर पर सन 2006 में बिहार सरकार ने मंडी एक्ट को खत्म करके किसानों के उत्पादों की समर्थन मूल्य पर खरीदी खत्म कर दी. उसके बाद किसानों का माल एमएसपी पर बिकना बन्द हो गया और प्राइवेट कम्पनियां किसानों का अनाज एमएसपी से बहुत कम दाम पर खरीदने लगी, जिससे वहां किसानों की हालत खराब होती चली गयी. इसके परिणामस्वरूप बिहार में बड़ी संख्या में किसानों को खेती छोड़कर मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ा.

दूसरा कानून

आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 (The Essential Commodity Act-1955) में संशोधन अधिनियम-2020 है. पहले व्यापारी किसानों की उपज औने-पौने भाव खरीद कर उसका भंडारण करके कालाबाज़ारी करते थे. इसे रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 बनाया गया. इसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों की तय सीमा से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी. अब इस नये कानून के तहत आलू, प्याज़, अनाज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है. चूंकि, हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, जाहिर है कि किसानों के पास लंबे समय तक अपने कृषि उत्पाद की भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है. यानि यह कदम किसानों की आड़ में बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की जमाखोरी और कालाबाज़ारी के ही काम आएगा.

तीसरा कानून

मूल्य आश्वासन व कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षण कानून-2020 (The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Act-2020) है. इस कानून के तहत “कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग” को बढ़ावा दिया जाएगा. इस कानून के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है. लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती, क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है. भारत में कृषि जीवनयापन करने का साधन है. वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है. अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है. पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था, जिसके बाद किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने मुकदमा वापस ले लिया था.

इन चुनौतियों और किसानों के असंतोष को देखते हुए सरकार को इन तीनों कानूनों को वापस लेना चाहिए, ताकि देश के किसानों की आजीविका और अस्तित्व सुरक्षित रह सके.

लेखक मनोज पटले, मध्य प्रदेश में बालाघाट कृषि उपज मंडी समिति में सहायक उपनिरीक्षक हैं.

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