सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण तय करने की प्रक्रिया में दखल देने से इनकार कर दिया है. अदालत ने याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है. इस बीच राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने यूपी पंचायत चुनाव में सीटों पर आरक्षण (reservations) के लिए 1995 की जगह 2015 को आधार वर्ष मानने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि 1995 की आरक्षण सूची के आधार पर चुनाव कराने का प्रयास बेहतर था, लेकिन उसे बदल दिया गया. याचिका को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस (Chief Justice) एस ए बोबडे (SA Bobde) ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने के लिए कहा.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh government) ने एक कैविएट (caveat application) फाइल किया था. इसमें कहा गया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट यूपी पंचायत चुनाव के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करता है तो इसमें राज्य सरकार का भी पक्ष सुना जाना चाहिए.
सीतापुर जिले के याचिकाकर्ता दिलीप कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी और आरक्षण तय करने के लिए 1995 को आधार वर्ष मानने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि सरकार ने फरवरी में ऐसा करने के लिए शासनादेश जारी किया था. लेकिन बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आधार वर्ष को 1995 की जगह 2015 कर दिया था. इसके बाद सरकार ने आरक्षण के लिए नया आदेश जारी किया था.
सुप्रीम कोर्ट के दखल देने से इनकार करने के बाद उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो गया है. सीटों पर आरक्षण को लेकर कानूनी लड़ाई की वजह से चुनाव प्रक्रिया में देरी हो चुकी है. कायदे से उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव दिसंबर 2020 में संपन्न हो जाने चाहिए थे, लेकिन कोरोना संकट के चलते सीटों के परिसीमन, मतदाता सूची तैयार करने और आरक्षण तय करने जैसे कार्यों में लगभग चार महीने की देरी हो चुकी है. इस बीच पंचायतों को भंग किया जा चुका है. उनका कामकाज सरकार की ओर से नियुक्त प्रशासक देख रहे हैं.
संवैधानिक तौर पर पांच साल पूरे होने से पहले त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव कराने का प्रावधान है. लेकिन प्राकृतिक आपदा या असाध्य परिस्थितियों के चलते अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो छह महीने का अतिरिक्त समय दिया जाता है. यानी उत्तर प्रदेश में हर हाल में जून से पहले पंचायतों का गठन होना जरूरी है.