पंचायतनामा

यूपी का पंचायत चुनाव अपनी समय-सीमा से कहां चूका

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर कोरोना संकट का सीधा असर पड़ा है. इससे जुड़ी सारी तैयारियां तय समय से लगभग चार महीने की देरी से चल रही है. साल 2015 में 13 दिसंबर को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की मतगणना का काम पूरा कर लिया गया था. लेकिन इस बार अभी तक न तो राज्य निर्वाचन आयोग मतदाता सूची को अंतिम रूप दे पाया है और न ही सरकार परिसीमन और आरक्षण को निर्धारित कर पाई है. इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की समय सीमा बढ़ाने का फैसला किया है.

क्या हैं नई तारीखें?

चार दिसंबर को जारी संशोधित अधिसूचना के मुताबिक, पहले ड्राफ्ट नामावली यानी मतदाता सूची का कच्चा मसौदा तैयार की समय सीमा को 13 नवंबर- 5 दिसंबर से बढ़ाकर 26 दिसंबर कर दिया गया है. इसी तरह ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन का समय छह दिसंबर से बढ़ाकर 27 दिसंबर कर दिया गया है. ड्राफ्ट मतदाता सूची को जांचने की समय सीमा भी 28 दिसंबर से तीन जनवरी कर दी गई है. पहले यह काम 6 दिसंबर से 12 दिसंबर के बीच होना था.

मतदाता सूची बनने में देरी का किसे फायदा हुआ

मतदाता सूची को लेकर दावों और आपत्तियों को सुनने की समय सीमा भी 13-19 दिसंबर को बढ़ाकर 4-11 जनवरी कर दिया गया है. इस देरी का सबसे बड़ा फायदा उस युवा पीढ़ी को हुआ है, जो 1 जनवरी 2021 को 18 साल पूरे कर रहा है. राज्य चुनाव आयोग ने ऐसे लोगों को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने का मौका दिया है. वे इसके लिए 28 दिसंबर से तीन जनवरी के बीच मतदाता सूची में शामिल करने का आवेदन कर सकते हैं. इसके बाद जनसामान्य के लिए मतदाता सूची का प्रकाशन 22 जनवरी 2021 को किया जाएगा. यह काम पहले 29 दिसंबर को किया जाना था. आपको बता दें कि 2015 में दो सितंबर को ही मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन का काम पूरा कर लिया गया था.

कानून के मुताबिक मतदाता सूची की समीक्षा

राज्य निर्वाचन आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (ट) और संयुक्त राज पंचायती अधिनियम-1947 की धारा-9 के तहत मतदाता सूची बनाने और सत्यापन के लिए अधिसूचना सितंबर में ही जारी कर चुका है. संविधान के अनुच्छेद 243 (ट) के मुताबिक, त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए राज्य निर्वाचक नामावली (मतदाता सूची) तैयार करने और निर्वाचन संबंधी सभी कार्यों की जिम्मेदारी राज्य निर्चाचन आयोग में निहित होगी, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा और जिसे राज्यपाल नियुक्त करेगा.

पंचायतों के परिसीमन में भी देरी

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राज्य निर्वाचन आयोग ही नहीं, राज्य सरकार भी अपने हिस्से का काम समय पर पूरा नहीं कर पाई है. पंचायती राज विभाग ने दो दिसंबर को 49 जिलों में पंचायतों के आंशिक परिसीमन की अधिसूचना जारी की है, जबकि यह काम काफी पहले हो जाना चाहिए था. अब इस काम को किसी भी तरह से फरवरी से पहले पूरा नहीं किया जा सकेगा. इसके बाद सीटों पर आरक्षण तय करने का काम होगा. कुल मिलाकर यह साफ है कि इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अब समय पर नहीं हो पाएंगे. चूंकि मौजूदा पंचायतों का कार्यकाल इसी महीने की 25 तारीख यानी 25 दिसंबर को पूरा हो रहा है. इसलिए इसका सारा कामकाज प्रशासकों को सौंप दिया जाएगा.

यूपी का पंचायत चुनाव संसदीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा चुनाव

उत्तर प्रदेश की त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव देश का सबसे बड़ा चुनाव है. यहां 75 जिला पंचायत, 821 ब्लॉक पंचायत और कुल 59 हजार 74 ग्राम पंचायतें हैं. 2015 के पंचायत चुनाव के समय मतदाताओं की संख्या 11 करोड़ 74 लाख थे. इनमें छह करोड़ 24 लाख पुरुष और पांच करोड़ 49 लाख महिलाएं शामिल थीं. इसके बावजूद पंचायत चुनावों में सीधी भागीदारी करने से बचते हैं. हालांकि, पंचायत चुनाव में जिला अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख जैसे पदों के लिए राजनीतिक दल प्रत्याशियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देते हैं. राजनीतिक दलों की भागीदारी न होने से पंचायत के स्तर पर विपक्ष नहीं बनता है, जिससे शक्ति संतुलन, जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में खासी दिक्कत आती है.
ये भी पढ़ेंसंविधान का वह संशोधन जिसने पंचायतों को केंद्र और राज्य सरकारों के बराबर में खड़ा कर दिया?

 

डेस्क संसदनामा

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