यूपी में पंचायत चुनाव कब होंगे, इससे जुड़े कयास पर विराम लग गया है. गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार को 30 अप्रैल तक ग्राम पंचायत का चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं. इसके लिए सरकार को 17 मार्च तक आरक्षण का काम पूरा करने के लिए भी कहा है. इतना ही नहीं, हाई कोर्ट ने 15 मई तक जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं.
सीटों पर आरक्षण तय होने में देरी
यूपी में पंचायत चुनाव इस बार तय समय पर नहीं हो पाए हैं. इसकी वजह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद आरक्षण तय करने में देरी है. सरकार इसके लिए कोरोना संकट को जिम्मेदार बताती रही है. वहीं, राज्य चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट को बताया था कि उसने 22 जनवरी को पंचायत चुनाव की मतदाता सूची तैयार कर ली है, 28 जनवरी तक परिसीमन का काम भी पूरा हो गया है, लेकिन सीटों का आरक्षण राज्य सरकार को तय करना है, जिसमें देरी की वजह से अभी तक चुनाव कार्यक्रम घोषित नहीं किया जा सका है. राज्य चुनाव आयोग ने मई में चुनाव कराने की बात कही थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे नहीं माना और चुनाव को अप्रैल में पूरा करने का निर्देश दिया.
आरक्षण तय होने के बाद चुनाव में लगेंगे 45 दिन
उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत, ब्लाक और जिला स्तर पर पंचायत का चुनाव होने है. चुनाव आयोग की मानें तो आरक्षण तय होने के बाद चुनाव कराने में 45 दिन का समय लगेगा. अब देखना है कि सरकार कब तक आरक्षण पर फैसला कर लेती है. कोरोना संकट की वजह से यूपी में पंचायत चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करने से लेकर परीसीमन तक के काम में देरी हुई है.
क्या आरक्षण की व्यवस्था
संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के जरिए पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण को लागू किया गया है. पंचायती राज व्यवस्था में आबादी के आधार पर अनुसूचित जाति (एससी), अनसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण दिया जाता है. इसके साथ एक-तिहाई सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं. इसके लिए रोटेशनल व्यवस्था यानी बारी-बारी से सभी वर्गों को आरक्षण दिया जाता है.
किसानों की चेतावनी का असर
Advertisement. Scroll to continue reading. कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों ने मांगें न माने जाने पर पंचायत चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को सबक सिखाने की चेतावनी दी है. माना जा रहा है कि इसी नाराजगी से बचने के लिए चुनाव कराने में देरी की जा रही है. हालांकि, सरकार को चुनाव टालने के लिए ज्यादा से ज्यादा जून तक का समय ही मिल सकता है, क्योंकि संवैधानिक प्रावधान के तहत पंचायतों का पांच साल कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनाव में अधिकतम छह महीने की ही देरी हो सकती है.