भारतीय संसद के ऊपरी सदन को राज्य सभा (council of states) कहा जाता है. संविधान सभा में ऊपरी सदन बनाने के मुद्दे पर लंबी बहस हुई थी. इसका मकसद संघीय ढांचे के तहत देश की विविधिताओं को सहेजना और उन्हें सुरक्षा देना है.
राज्य सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है. हालांकि, इसका गठन लोक सभा से बिल्कुल ही अलग तरीके से होता है. इसमें राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से निर्वाचित सदस्यों के अलावा राष्ट्रपति की ओर से नामित 12 सदस्य शामिल होते हैं. ऐसे सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष उपलब्धियों के आधार पर मनोनीत किया जाता है.
राज्य सभा स्थायी सदन है. यानी इसे लोक सभा की तरह भंग नहीं किया जा सकता है.
हालांकि, हर दो साल पर इसके एक-तिहाई सदस्य रिटायर हो जाते हैं. राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के निर्वाचक मंडल करते हैं. इसमें एकल संक्रमणीय मतदान पद्धति का इस्तेमाल होता है. सदस्य का कार्यकाल छह साल के लिए होता है.
धन विधेयक को छोड़कर राज्य सभा को हर लिहाज से लोक सभा जितने ही अधिकार हासिल हैं. स्थायी सदन होने के नाते कई जगहों पर राज्य सभा तो लोक सभा से ज्यादा मजबूत दिखती है. जैसे लोक सभा में पेश विधेयक उसके भंग होते ही खत्म हो जाते हैं. लेकिन राज्य सभा में पेश विधेयकों के साथ ऐसा नहीं होता.
राज्यों का सदन होने के नाते राज्य सभा को लोक सभा के मुकाबले कुछ विशेष शक्तियां भी हासिल हैं. मसलन राज्य सभा अगर दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे तो संसद को राज्य सूची के विषयों में कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है. इसके अलावा राज्य सभा को दो-तिहाई बहुमत से एक या एक से ज्यादा ऑल इंडिया सर्विसेज के गठन का अधिकार हासिल है.