उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पंचायत चुनाव (UP Panchayat Chunav 2021) के लिए आरक्षण प्रक्रिया को रोक दिया है. इस पर प्रदेश सरकार और राज्य चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता अजय कुमार ने जनहित याचिका के जरिए 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सभी जिलाधिकारियों को आरक्षण तय करने की प्रक्रिया को रोकने का आदेश दिया है. यूपी सरकार 17 मार्च को पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की अंतिम सूची जारी करने वाली थी. अब इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सोमवार को सुनवाई होनी है.
कहां पर फंसा है पेंच
इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाने वाले अजय कुमार ने चक्रानुक्रम आरक्षण को लागू करने के तरीके को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि 1995 में लागू आरक्षण के आधार पर 2021 में सीटों का आरक्षण नहीं तय किया जाना चाहिए, इसके लिए 2015 में लागू आरक्षण को आधार बनाया जाना चाहिए.
आरक्षण में रोटेशन का क्या मतलब है
पंचायत चुनाव में आरक्षण को चक्रानुक्रम (रोटेशन) के आधार पर लागू किया गया है. इसके तहत आरक्षण का क्रम अनुसूचित जनजाति महिला, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति महिला, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ावर्ग महिला, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिला है. 11 फरवरी को जारी शासनादेश के मुताबिक, सामान्य निर्वाचन वर्ष 1995, 2000, 2005, 2010 और 2015 में जो सीटें आरक्षित वर्ग के आवंटित थीं, उन सीटों को आगामी चुनाव में उसी वर्ग के लिए आरक्षित नहीं किया जाएगा. यानी महिला के लिए आरक्षित सीट इस बार महिला के लिए आरक्षित नहीं होगी.
चुनाव होने में और देरी की आशंका बढ़ी
पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण को 17 मार्च तक अंतिम रूप देने की योजना थी. माना जा रहा था कि इसके बाद 25-26 मार्च तक पंचायत चुनावों की तारीखों का ऐलान हो जाएगा. लेकिन हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब चुनाव की तारीखों का ऐलान होने में देरी की आशंका बढ़ गई है. हालांकि, खुद इलाहाबाद हाई कोर्ट 30 अप्रैल तक पंचायत चुनाव कराने की समय सीमा तय कर चुका है.
दिसंबर में हो जाना था पंचायत चुनाव
Advertisement. Scroll to continue reading. उत्तर प्रदेश में इस बार समय पर चुनाव नहीं हो पाया है. कायदे से चुनाव की प्रक्रिया बीते साल दिसंबर में पूरी होनी थी. लेकिन कोरोना संकट के चलते मतदाता सूची और सीटों के परिसीमन को अंतिम रूप देने में लगभग तीन महीने की देरी हुई. बीच में इलाबाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस काम में तेजी आई थी.
गौरतलब है कि पंचायत का चुनाव पांच साल के भीतर कराना अनिवार्य होता है. लेकिन किसी विकट परिस्थिति के चलते चुनाव में ज्यादा से ज्यादा छह महीने की देरी हो सकती है. प्रदेश सरकार को मिले छह महीनों में से अब तक तीन महीने बीत चुके हैं. अभी प्रशासन पंचायतों का काम देख रहे हैं.