कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन बीते 54 दिनों से जारी है. देश के कई हिस्सों से किसानों को समर्थन मिल रहा है. किसानों ने अपने आंदोलन में राजनीतिक दलों को शामिल होने की इजाजत नहीं दी है. लेकिन विपक्षी दलों की ओर से किसानों के आंदोलन का समर्थन किया जा रहा है.
पंजाब के कांग्रेस के सांसद और कार्यकर्ता बीते 43 दिनों से किसान आंदोलन के समर्थन में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं. इन सांसदों से 15 जनवरी को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मुलाकात की थी, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने इन्हें वहां से हटा दिया था.
सांसदों ने दोबारा शुरू किया धरना
हालांकि, इन सांसदों ने पुलिस हिरासत से छूटने के बाद अपना दोबारा धरना शुरू कर दिया. खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठे कांग्रेस सांसद और कार्यकर्ताओं की तस्वीर शेयर करते हुए सांसद गुरजीत सिंह औजला ने ट्विटर पर लिखा, ‘हम अपनी जगह को वीरान नहीं छोड़ेंगे.’ एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘मोडीक्रेसी की नाराजगी को बार-बार झेलने के लिए हमारा किला तैयार है. जब तक वे (जिद) छोड़ते नहीं हैं.’ फिलहाल, किसान जहां दिल्ली की सीमाओं पर, वहीं पंजाब के सांसद जंतर-मंतर पर जमा हैं.
किसान आंदोलन का विपक्षी दलों पर दबाव
कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का राजनीतिक दलों पर असर बहुत ज्यादा है. इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कृषि कानूनों के मामले में केंद्र सरकार के सहयोगी दलों को भी सरकार का साथ छोड़ना पड़ा है. शिरोमणि अकाली दल, जो शुरुआत में कृषि अध्यादेशों (जिनकी जगह पर बाद में कानून बने) के पक्ष में थी और किसानों के लिए लाभकारी बता रही थी, किसानों का विरोध बढ़ने पर इन कानूनों से किनारा करके विपक्षी दलों के साथ आ गई. इतना ही नहीं, उसने केंद्र सरकार से नाता भी तोड़ लिया, मंत्री पद भी छोड़ दिया, लोक सभा में विधेयकों का पुरजोर विरोध किया और पंजाब में कृषि कानूनों के खिलाफ रैलियां भी निकाली.
ऐसा ही कुछ, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ भी हुआ. पार्टी के एकमात्र सांसद हनुमान बेनीवाल ने पहले कृषि कानूनों का समर्थन किया. लेकिन जब किसान आंदोलन ने तूल पकड़ा तो उन्हें भी किसानों के समर्थन में आने और धरने पर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिलहाल हनुमान बेनीवाल अपने कार्यकर्ताओं के साथ राजस्थान-हरियाणा के शाहजहांपुर बॉर्डर पर 23 से ज्यादा दिनों से धरने पर बैठे हैं.
किसान आंदोलन को हल्के में न लें
Advertisement. Scroll to continue reading. दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा, ‘दिल्ली के चारों तरफ 6 राज्यों में आंदोलन चल रहा है। यहां लोकसभा की 120 सीट हैं. ये जन आंदोलन है। इसे हल्के में न लें, ये बीजेपी को 2 सीट पर लाकर छोड़ेगा. इस तरह की बयानबाजी से बीजेपी के नेताओं को बाज आना चाहिए.’ किसान आंदोलन के नाम पर पिकनिक मनाने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘टीकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर में आंदोलन चल रहा है. यहां कड़कड़ाती ठंड में मैं भी बैठा हूं, यहां कोई चिकन बिरयानी नहीं खा रहा है. 50 से ज्यादा किसानों ने शहादत दी है. सिर्फ अखबार में बयान छपवाने के लिए बीजेपी नेता ऐसी अनर्गल बातें कर रहे हैं. ऐसे बयान नहीं आने चाहिए, यह केवल झूठी लोकप्रियता हासिल करने के लिए बयान दे रहे हैं.’
पार्टी छोड़ने को मजबूर हैं बीजेपी नेता
किसान आंदोलन की वजह से पंजाब में बीजेपी नेताओं पर भी दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. रविवार को बीजेपी के 10 वरिष्ठ कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए. ट्विटर पर सुखबीर सिंह बादल ने लिखा, ‘इन कार्यकर्ताओं ने बीजेपी को चेताया था, लेकिन पार्टी ने उनकी सलाह मानने के बजाए उन्हें कानूनों का ही बचाव करने के लिए कह दिया. खुशी है कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और भगवा पार्टी छोड़ दी. बीजेपी को मालवा इलाके में आने वाले दिनों में एक और झटका लगेगा.’
कानूनों को पारित करने पर सवाल बरकरार
कृषि कानूनों से कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले असर को लेकर तो विवाद है ही, इसे संसद से पारित कराने के तौर-तरीके पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं. दरअसल, सितंबर में बुलाए गए मानसून सत्र में भारी हंगामे के बीच कृषि कानूनों को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया था. हालांकि, सांसद लगातार मत विभाजन की मांग कर रहे थे. इसके बाद हंगामा करने वाले आठ सांसदों को अनुशासनहीनता के आरोप में सदन की शेष कार्यवाही के लिए निलंबित कर दिया गया था. यही वजह है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने बहुमत का बुलडोजर चलाकर कृषि कानूनों को पारित कराया है.
ट्रैक्टर रैली पर किसान और पुलिस आमने-सामने
फिलहाल आंदोलनरत किसानों के साथ केंद्र सरकार की अब तक की बातचीत बेनतीजा रही है. इस बीच किसानों ने 26 जनवरी को आउटर रिंग रोड पर ट्रैक्टर रैली निकालने का ऐलान किया है. किसानों का कहना है कि 26 जनवरी को होने वाली सेना की परेड में किसी भी तरह से कोई व्यवधान नहीं डाला जाएगा. हालांकि, किसानों को रैली निकालने की छूट होगी या नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली पुलिस को अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की छूट दी है.
बजट सत्र में भी छाया रहेगा सवाल
संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होने जा रहा है. इसमें कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के अलावा डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और खस्ताहाल छोटे-मझौले उद्योग जैसे मुद्दे छाए रहने के आसार हैं.
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