भारतीय संविधान में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कई उपाय शामिल किए गए हैं. ऐसा ही एक प्रावधान अनुच्छेद-123 है. इसमें राष्ट्रपति को विधायी यानी संसद के बराबर कानून बनाने की शक्ति दी गई है. इस प्रावधान का मकसद सरकार को कभी कानून के अभाव में किसी आपात स्थिति से निपटने में कमजोर पड़ने से बचाना है. हालांकि, इस अध्यादेश को जारी करने शर्त है कि संसद के दोनों सदन सत्र में न हों. मौजूदा केंद्र सरकार जून में इसी प्रावधान के तहत मंडी व्यवस्था में बदलाव, कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को मंजूरी और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन से जुड़े अध्यादेश लाई थी, जिसकी जगह लेने वाले विधेयक संसद से पारित हो चुके हैं. लेकिन, इन कानूनों को बनाने की प्रक्रिया और टाइमिंग पर लगातार सवाल उठ रहे हैं.
अध्यादेश की अधिकतम अवधि
किसी भी अध्यादेश को संसद का सत्र शुरू होने के छह हफ्ते के भीतर उसकी मंजूरी लिया जाना जरूरी है. हालांकि, संविधान में किसी अध्यादेश के लिए कोई अधिकतम समय सीमा तय नहीं की गई है. लेकिन माना जाता है कि संविधान के अनुच्छेद-85 के तहत सामान्य स्थिति में संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम छह महीने का अंतर हो सकता है. यानी सामान्य स्थिति में किसी अध्यादेश की अधिकतम मियाद छह (सत्रों के बीच का अधिकतम समय) महीने और छह सप्ताह (सत्र बुलाने के बाद मंजूरी लेने का समय) से ज्यादा नहीं हो सकती है. असामान्य स्थिति में इसकी अवधि संसद का सत्र न होने तक अध्यादेश प्रभावी रह सकता है.
संविधान सभा में विस्तार से चर्चा
संविधान सभा में राष्ट्रपति को विधायी शक्तियां देने पर 23 मई 1949 को चर्चा हुई थी. संविधान के मसौदे में यह शक्तियां अनुच्छेद-102 में थीं, जो अंतिम रूप से तैयार संविधान में अनुच्छेद-123 के रूप में शामिल हुई. संविधान सभा में इस पर बहस के दौरान अध्यादेश की अधिकतम समय सीमा और दुरुपयोग की आशंका के सवाल उठे थे. प्रो. के.टी. शाह ने इसे राष्ट्रपति की ‘विधायी शक्तियां’ कहने की जगह ‘असाधारण शक्तियां’ कहने का सुझाव दिया था. वहीं, एच. वी. कामथ ने कहा था कि अगर दोनों में एक भी सदन का सत्र चल रहा हो तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति न मिले. सरदार हुकुम सिंह ने मांग की थी कि जीवन जीने के अधिकार को इन अध्यादेशों से सुरक्षा दी जानी चाहिए. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों पर सबसे तीखा हमला संविधान सभा के सदस्य हृदयनाथ कुंजरू ने बोला था. उन्होंने इसकी तुलना गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935 के तहत गवर्नर-जनरल को मिली शक्तियों से कर डाली थी, जिसका अंग्रेजी हुकूमत के समय अक्सर दुरुपयोग होता था.
डॉ. अंबेडकर ने कैसे बचाव किया
हालांकि, भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीम राव अंबेडकर ने राष्ट्रपति को विधायी शक्ति दिए जाने को जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि इसकी गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935 से तुलना करना ठीक नहीं है, क्योंकि उसमें गवर्नर जनरल को बहुत मनमानी और विवेकाधीन शक्तियां मिली हुई थीं, लेकिन भारत के राष्ट्रपति को जो विधायी शक्तियां मिली हैं, उनका मंत्रिमंडल की सलाह से इस्तेमाल होगा और वह भी तब, जब संसद सत्र न चल रहा हो.
सिर्फ आपात स्थिति के लिए हैं अध्यादेश
Advertisement. Scroll to continue reading. डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह प्रावधान आपात स्थिति से निपटने के लिए कानून की जरूरत को पूरा करने के लिए रखा गया है, बहुत सीमित करने पर यह मददगार नहीं हो पाएगा. गौरतलब है कि डॉ. अंबेडकर ने अध्यादेश की इस शक्ति को इस्तेमाल करने की सूरत बताते साफ तौर पर ‘इमरजेंसी’ यानी आपातकाल शब्द का इस्तेमाल किया था. हृदय नाथ कुंजरू के संशोधनों के जवाब में डॉ. अंबेडकर ने कहा, ‘अगर मैं उदाहरण दूं तो यह कानून ब्रिटिश इमरजैंसी पावर एक्ट-1920 के अनुरूप है. इसके तहत राजा को घोषणा करने और उसके बाद सरकार को भी नियम बनाने का अधिकार मिल जाता है. यह तभी हो सकता है जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो.’
डॉ. अंबेडकर ने आगे कहा कि भारत में ऐसी किसी आपातस्थिति को खारिज नहीं किया जा सकता है, जब सरकार के सामने हालात नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी होगा और मौजूदा कानून उसकी मदद नहीं कर रहे होंगे. डॉ. अंबेडकर ने कहा, ‘ऐसी स्थिति के लिए मुझे लगता है राष्ट्रपति को विधायी शक्तियां देना ही सबसे अच्छा समाधान है, ताकि कार्यपालिका आपात स्थिति से निपट सके. यह कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया से नहीं संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि उस वक्त विधायिका (संसद) का सत्र नहीं चल रहा होगा.’
दुरुपयोग की आशंका
डॉ. अंबेडकर ने राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों के दुरुपयोग की आशंका को खारिज किया था. उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति इस मामले में भी बगैर अपने मंत्रिमंडल की मदद और सलाह के कोई फैसला नहीं करेगा. इसके अलावा वह ऐसे किसी विषय से जुड़ा अध्यादेश नहीं जारी करेगा, जिसमें विधायिका (संसद) सक्षम नहीं है. कुल मिलाकर संविधान में अध्यादेशों की व्यवस्था आपातस्थिति में कानून की जरूरत पूरी करने के लिए ही है. ऐसे में केंद्र सरकार ने कृषि मामलों में जिस तरह से अध्यादेश का सहारा लेकर कानून बनाए, वह अध्यादेशों के बारे में संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर के विचारों से बिल्कुल ही मेल नहीं खाता है.
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