सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में क्रीमीलेयर के साथ 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू है. अभी क्रीमीलेयर की आय सीमा सालाना आठ लाख रुपये है, जिसे एक उच्चस्तरीय समिति बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का सुझाव दे चुकी है. हालांकि, उसने इसमें वेतन और कृषि आय को भी शामिल करने का सुझाव दिया है. उसकी इस सिफारिश का विरोध हो रहा है. इस पर राज्य सभा में केंद्र सरकार ने अलग-अलग जवाब दिए हैं जो कि अस्पष्टता बढ़ाने वाले हैं.
क्रीमीलेयर के लिए आय सीमा में क्या शामिल होगा
मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा में सांसद प्रभाकर रेड्डी वेमिरेड्डी ने ओबीसी क्रीमीलेयर की आय सीमा बढ़ाने पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जवाब मांगा. उन्होंने पूछा, (1) क्या यह सच है कि मंत्रालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए क्रीमीलेयर की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का प्रस्ताव तैयार किया है, यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है? (2) क्या यह भी सच है कि वार्षिक आय की गणना की प्रक्रिया भी मंत्रालय के विचाराधीन है, यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है? (3) क्या अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सकल वार्षिक आय की गणना में ‘वेतन’ को शामिल करने का विरोध किया है? और (4) अगर हां, तो उसका ब्यौरा क्या है, इसके क्या कारण हैं और मंत्रालय इस बारे में आगे क्या योजना बना रहा है? [राज्य सभा | अतारांकित प्रश्न-465 | 16 सितंबर 2020]
तमाम सवालों का एक ही जवाब
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने सांसद प्रभाकर रेड्डी वेमिरेड्डी के इन सवालों पर एक लाइन का लिखित जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘क्रीमीलेयर की सीमा में संशोधन से संबंधित मामले और इसके लागू करने का तौर-तरीका सरकार की जांच के अधीन है.’ इसका एक मतलब निकलता है कि सरकार इस बारे में विचार कर रही है. लेकिन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने एक अन्य सवाल के जवाब में कुछ अलग ही बात कही.
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राज्य सभा में एक अन्य सांसद कनकमेदला रवींद्र कुमार ने सरकार से पूछा कि (1) क्या यह सच है कि सरकार द्वारा नियुक्त की गई समिति ने अन्य पिछड़े वर्गों के समुन्नत वर्ग (क्रीमीलेयर) हेतु आय सीमा को बढ़ाने की सिफारिश की है? (2) अगर हां, तो उसका ब्यौरा क्या है? (3) क्या सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों के क्रीमीलेयर के लिए आय सीमा को बढ़ाने से संबंधित समिति की सिफारिश के संबंध में कोई अंतिम निर्णय लिया है; और (4) अगर हां, तो उसका ब्यौरा क्या है? [राज्य सभा | अतारांकित प्रश्न – 468 | 16 सितंबर 2020]
‘कोई समिति ही नियुक्त नहीं है’
Advertisement. Scroll to continue reading. सांसद कनकमेदला रवींद्र कुमार इन सवालों पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने जवाब किया कि ‘सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की आय सीमा की समीक्षा करने के लिए कोई समिति नियुक्त नहीं की है.’ अब सवाल उठता कि क्या क्रीमीलेयर के लिए आय सीमा को आठ लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने की सिफारिश करने वाली उच्चस्तरीय समिति बनी ही नहीं थी? क्या राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग और संसद की ओबीसी कल्याण की स्थायी समिति बगैर किसी ठोस आधार के ही आय आकलन के तरीके में बदलाव का विरोध कर रहे हैं?
आय की गणना के तरीके में बदलाव का विरोध
दरअसल, बीते एक साल में ऐसी बहुत सी खबरें आई हैं, जिसमें कहा गया है कि एक उच्चस्तरीय समिति ने ओबीसी क्रीमीलेयर के लिए आय की सीमा को आठ लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने और इसमें वेतन व कृषि आय को भी शामिल करने का सुझाव दिया है. हालांकि, इसका राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और ओबीसी कल्याण की संसद की स्थायी समिति ने तीखा विरोध किया है. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा कि आय आकलन में वेतन को शामिल करने से ओबीसी आरक्षण का दायरा बहुत सिमट जाएगा. सरकार को लिखे पत्र में उसने कहा कि आरक्षण का बुनियादी सिद्धांत सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित है, न कि आर्थिक पिछड़ेपन पर, इसलिए नया प्रस्ताव इसके मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा. हालांकि, उसने वेतन को शामिल करने पर क्रीमीलेयर की सीमा को 16 लाख रुपये करने का भी सुझाव रखा है. वहीं, संसद की स्थायी समिति ने ओबीसी क्रीमीलेयर के लिए आय सीमा को बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने का सुझाव दिया है. लेकिन इसमें वेतन और कृषि आय को शामिल नहीं किए जाने की सिफारिश की है.
क्रीमीलेयर को आरक्षण नहीं मिलता
ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर का मतलब है कि एक निश्चित सीमा से ज्यादा आमदनी वालों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. इसमें समय-समय पर बदलाव किया जाता है. 1993 में पहली बार ओबीसी आरक्षण लागू होने पर क्रीमीलेयर की आय सीमा को एक लाख रुपये रखा गया था. इसके बाद 2004 में इसे बढ़ाकर ढाई लाख रुपये, 2008 में साढ़े चार लाख रुपये और 2013 में छह लाख रुपये कर दिया गया. 2017 में इसे बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दिया गया. लेकिन इसमें वेतन और कृषि आय को शामिल नहीं किया जाता है. हालांकि, अब इसे बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का प्रस्ताव है, लेकिन इसमें वेतन और कृषि आय को शामिल करने पर एक बड़े हिस्से के आरक्षण के दायरे से बाहर जाने का खतरा है.
केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व कमजोर
माना जा रहा है कि अगर आय के आकलन में कोई बदलाव होता है तो केंद्र सरकार में ओबीसी प्रतिनिधित्व और कमजोर हो सकता है. दरअसल, 1993 में आरक्षण लागू होने के बाद से अब तक सरकारी नौकरियों में ओबीसी की संख्या 27 फीसदी नहीं पहुंच पाई है. ग्रुप ‘ए’ में ओबीसी की संख्या केवल 13 फीसदी है. इसके अलावा ग्रुप ‘ए’ ‘बी’ ‘सी’ और ‘डी’ वर्गों को मिलाकर कुल 32 लाख 58 हजार सरकारी कर्मचारियों में ओबीसी कर्मचारी महज सात लाख हैं, जो 22 फीसदी यानी 27 फीसदी आरक्षण से काफी कम है.
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