पंचायतनामा

जब प्रधानों के अधिकार छिन जाएंगे तब पंचायत का काम कैसे होगा?

देश में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा हासिल है. इसलिए हर पांच साल के अंतर पर चुनाव कराना जरूरी है. लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायती राज व्यवस्था वाले उत्तर प्रदेश में इसके चुनाव समय पर नहीं कराए जा सके हैं. इसकी तैयारियां (परिसीमन और मतदाता सूची) 2015 के मुकाबले लगभग चार महीने की देरी से चल रही हैं. इसका नतीजा यह हुआ है कि समय पर चुनाव नहीं हो पाए हैं और अब मौजूदा पंचायत 25 दिसंबर को अपना कार्यकाल पूरा कर रही है यानी इसके बाद इसे भंग मान लिया जाएगा. इसके बाद चुनाव कराने के लिए राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग के पास सिर्फ छह महीने का समय बचेगा.

क्या कहता है कानून

नए चुनाव होने और नई पंचायत गठित होने तक पंचायत का काम देखने के लिए प्रशासक नियुक्त करने का प्रावधान है. उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम-1947 के तहत राज्य सरकार को प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार है. इसी अधिनियम की धारा-12 के खंड 3-ए में प्रशासक नियुक्त करने की स्थितियों और शर्तों को बताया गया है. इसके मुताबिक, अगर अपरिहार्य कारणों (प्राकृतिक आपदा, महामारी जैसी वजहें) या जनहित के चलते पंचायत का चुनाव नहीं हो पाता है और इसका कार्यकाल पूरा हो जाता है तो राज्य सरकार या उसके द्वारा अधिकृति व्यक्ति पंचायत के लिए प्रशासक या प्रशासनिक समिति नियुक्त कर सकेगा. इसके लिए व्यक्ति की योग्यता पंचायत चुनाव लड़ने की योग्यता के बराबर रखी गई है. ऐसे किसी भी व्यक्ति को ग्राम प्रधान, पंचायत समिति की सारी शक्तियां मिल जाएंगी. लेकिन ऐसा कोई भी प्रशासक किसी भी सूरत में छह महीने से ज्यादा काम नहीं करेगा. अब सरकार इसी अधिकार के तहत प्रशासन नियुक्त करने की तैयारी कर रही है.

सभी स्तरों पर एक जैसी प्रक्रिया

पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्राम पंचायत ही नहीं, क्षेत्र पंचायत के स्तर पर भी समय पर चुनाव न होने पर प्रशासक नियुक्त करने का प्रावधान है. इसके लिए भी राज्य सरकार या उसकी ओर से अधिकृति व्यक्ति क्षेत्र पंचायत के लिए प्रशासक या प्रशासनिक समिति को नियुक्त कर सकता है. ठीक यही प्रक्रिया जिला पंचायत के स्तर पर भी अपनाई जाएगी.

पहले कब हुई थी पंचायत चुनाव में देरी

पंचायतों का चुनाव समय पर न होना 73वां संविधान लागू होने से पहले की समस्या थी. इसी संविधान संशोधन के जरिए पंचायत व्यवस्था को संवैधानिक का दर्जा दिया गया. पांच साल में चुनाव को अनिवार्य बनाया गया.  इसके लिए राज्यों में अलग से निर्वाचन आयोग बनाने का प्रावधान किया गया. अगर यूपी में पंचायत चुनाव अब से पहले देरी का आंकड़ा देखें तो 1993 में 73वां संविधान संशोधन लागू होने के बाद यह दूसरा मौका है, जब पंचायत चुनाव समय पर नहीं कराये जा सके हैं. 1993 में पंचायत चुनाव में लगभग दो साल की देरी हुई थी. यानी 1988 में गठित पंचायत का कार्यकाल 1993 में खत्म हो गया था और चुनाव 1995 में हुआ था.

1993 में देरी की क्या थी वजह

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बाराबंकी जिले में प्रधान संघ के उपाध्यक्ष और सात बार के निर्वाचित प्रधान रमाकांत मौर्य बताते हैं कि 1993 में देरी की वजह कुछ और नहीं, 73वें संविधान संशोधन ही था, इसे लागू करने की तैयारी की वजह से देरी हुई थी. उन्होंने आगे बताया कि उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे, जो चाहते थे कि संविधान संशोधन के हिसाब से आरक्षण लागू करके चुनाव कराया जाए,जिसकी तैयारी करने में वक्त लगा.

चुनाव में देरी, फिर भी प्रधानी चलती रही

हालांकि, 1993 में चुनाव में देरी हुई तो प्रशासक किसे बनाया गया? प्रधान रमाकांत मौर्य के मुताबिक, 1993 में ग्राम प्रधान ही अगले दो साल तक ग्राम प्रधान बन रहे. वहीं, अयोध्या में ग्राम सभा सराय अहमद के प्रधान रामनाथ बताते हैं कि तब प्रशासक रूप में किसी अधिकारी को जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई थी, बल्कि ग्राम प्रधानों को ही प्रशासक का काम दे दिया गया था. हालांकि, इस बार अतिरिक्त विकास अधिकारी को प्रशासक नियुक्त करने की चर्चा है. अभी तक सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण या आदेश नहीं आया है.

क्या बाहरी व्यक्ति प्रशासक नियुक्त हो सकता है?

अब सवाल आता है कि क्या पंंचायती राज व्यवस्था में किसी बाहरी व्यक्ति को ग्राम सभा, क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत का प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है? ऐसा विवाद यूपी में तो नहीं, लेकिन इसी साल महाराष्ट्र में आ चुका है. प्रदेश सरकार ने चुनाव न होने पर बाहरी व्यक्ति को प्रशासक नियुक्त करने का विकल्प रखा था. इसे बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. इस पर अदालत ने कहा कि जहां तक संभव हो किसी अधिकारी को ही प्रशासक नियुक्त किया जाए, अगर कहीं पर निर्वाचन क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति को प्रशासक नियुक्त करना पड़े तो इसकी वजह जरूर बताई जाए. दरअसल, कोविड महामारी के चलते महाराष्ट्र में भी समय पर पंचायत चुनाव कराने में देरी हुई है. यहां पंचायतों का कार्यकाल जुलाई से नवंबर के बीच पूरा हो चुका है.

ये भी पढ़ेंसंविधान का वह संशोधन जिसने पंचायतों को केंद्र और राज्य सरकारों के बराबर में खड़ा कर दिया?

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ऋषि कुमार सिंह

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