कृषि कानून हो या दूसरे फैसले, केंद्र सरकार सभी को 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने वाला ऐतिहासिक कदम बता रही है. लेकिन इससे किसानों को कितना फायदा हुआ है या हो रहा है, इसके बारे में पूछे जाने पर सरकार कभी कहती है कि इसका कोई व्यापक अध्ययन नहीं है, कभी बेहद कामचलाऊ या अनौपचारिक आंकड़े बता देती है.
व्यापक अध्ययन की जगह फीडबैक क्यों
मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा में सांसद फूलो देवी नेताम ने सरकार से पूछा था कि बीते पांच वर्षों में खेती से जुड़ी योजनाएं लागू होने के बाद प्रति एकड़ कृषि लागत में कमी आने और किसानों की आय बढ़ने का ब्यौरा क्या है? इस पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाब दिया, “इन मुद्दों के बारे में कोई व्यापक अध्ययन उपलब्ध नहीं है, कुछ योजनाओं के बारे में निम्नलिखित मूल्यांकन किए गए हैं.” इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसानों से मिले फीडबैक के आधार पर योजनाओं के लाभ गिना डाले. उन्होंने बताया कि 21 राज्यों के 171 जिलों के किसानों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार, यह सामने आया है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों की बचत हुई है और खेती की लागत घटी है.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि यूरिया की बचत धान की खेती में 16-25 फीसदी, दलहन और तिलहन में 10-15 फीसदी, नगदी व कपास की खेती में 25 फीसदी रही है. उनके मुताबिक, बागवानी फसले जैसे आलू की खेती में यूरिया की 35 किलोग्राम प्रति एकड़ की बचत ‘देखी’ गई है. इतना सब कुछ बताने के बावजूद यह नहीं बताया कि उसने किसानों का फीडबैक किस संस्था के जरिए जुटाया है? इसमें जनसंख्या के अनुपात और क्षेत्रीय विस्तार का कितना ध्यान रखा गया है? क्या इसमें सर्वेक्षण की मान्य पद्धति या प्रक्रिया का पालन किया गया है? अगर मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना को लागू करने की बात करें तो यह बड़े पैमाने पर खामियों की शिकार रही है. कई जगह पर तो किसानों के खेत से मिट्टी लिए बगैर ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर उनके घर पहुंचा देने जैसे मामले सामने आ चुके हैं. सरकार को मिला फीडबैक ऐसा ही नहीं है, इसकी क्या गारंटी है.
फसल उत्पादन और किसानों की आय कैसे बढ़ी
केंद्र सरकार ने अपने इसी जवाब में बताया है कि उर्वरकों के उचित इस्तेमाल से फसलों के उत्पादन में कितनी बढ़ोतरी हुई है. जवाब के मुताबिक, उर्वरकों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल से धान का उत्पादन 10-20 फीसदी, गेहूं-ज्वार का उत्पादन 10-15 फीसदी, दलहन का उत्पादन 10-30 फीसदी, तिलहन का उत्पादन 40 फीसदी और कपास का उत्पादन 10-20 फीसदी बढ़ा है. सरकार ने खाद की बचत और ज्यादा फसल उत्पादन को जोड़कर किसानों की आय में बढ़ोतरी का भी हिसाब दिया है. किसानों की प्रति एकड़ खेती पर धान में 45 सौ रुपये, तूर (अरहर) में 25-30 हजार रुपये, सूरजमुखी में 25 हजार रुपये, मूंगफली में 10 हजार रुपये आय बढ़ी है.
सरकार के पास ठोस आंकड़े क्यों नहीं हैं?
आम तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सर्वेक्षण करने या आंकड़े जुटाने का काम राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) करता है. इसमें सर्वेक्षण की व्यापकता और विश्वनीयता से जुड़े सारे सवालों का पूरा ख्याल रखा जाता है. अब अगर सरकार अनौपचारिक फीडबैक से अपनी नीतियों की सफलता बताती है तो उसे दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हजारों किसानों की राय मानने में क्या दिक्कत है? इससे सशक्त फीडबैक क्या होगा कि किसान यह बताने के लिए खुद चल कर आएं कि सरकार का बनाया कृषि कानून उन्हें पसंद नहीं है, इसकी जगह पर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून बनाया जाना चाहिए?
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