केंद्र सरकार हर साल कृषि क्षेत्र का बजट बढ़ाने का ऐलान करती है. जैसे मानसून सत्र में सरकार ने बताया कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए 2017-18 के लिए कुल बजट आवंटन 52 हजार 655 करोड़ रुपये था, जो 2020-21 बढ़ाकर एक लाख 34 हजार 399 करोड़ रुपये कर दिया गया है. ऐसे ऐलान अक्सर सुर्खियां बनते हैं. लेकिन इस सवाल का जवाब कभी सामने नहीं आ पाता कि इतने भारी-भरकम बजट आवंटन के बावजूद देश में किसानों की हालत दयनीय क्यों है?
वैसे तो देश के किसानों की दुर्दशा के पीछे एक नहीं, कई कारण हैं. लेकिन योजनाओं के आवंटित बजट का खर्च न हो पाना भी इसमें एक वजह है. सरकार बजट बढ़ाने की घोषणा करती है, और बढ़ाती भी है, लेकिन आवंटन के मुकाबले खर्च हमेशा कम ही रहता है. इसकी गवाही संसद में पेश सरकार के ही आंकड़े दे रहे हैं.
बजट खर्च आधा-अधूरा, मिट्टी की जांच पूरी
मानसून सत्र के दौरान 23 सितंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सांसद फूलो देवी नेताम के अतारांकित प्रश्न का लिखित जवाब दिया. इसमें बीते पांच साल में कृषि क्षेत्र की योजनाओं के लिए बजट आवंटन और खर्च राशि का आंकड़ा शामिल था. इसके मुताबिक, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (एसएचसी) के लिए वित्त वर्ष 2015-16 में सरकार ने 200 करोड़ रुपये बजट आवंटित किए, लेकिन खर्च लगभग 141 करोड़ रुपये ही हुए. इसी तरह 2016-17 में सरकार ने योजना का बजट बढ़ाकर 386 करोड़ रुपये कर दिया, लेकिन खर्च 229 करोड़ रुपये ही हुए.
वित्त वर्ष 2017-18 में एसएचसी के बजट को खर्च करने की हालत तो और ही खराब हो गई. कुल 459 करोड़ रुपये बजट आवंटन में से सिर्फ 195 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए. यह बीते वित्त वर्ष से भी कम खर्च था. इसके बावजूद सरकार ने 2018-19 में योजना के लिए बजट आवंटन और खर्च राशि को बढ़ाने की कोशिश की. लेकिन इस साल भी योजना के लिए कुल आवंटित बजट खर्च नहीं हो पाया. 2019-20 में हालत फिर खराब हो गई. लगभग 334 करोड़ रुपये के बजट आवंटन में से सरकार 159 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई.
स्वाभाविक सवाल बनता है कि जब सरकार योजना का पूरा बजट ही नहीं खर्च कर पाई तो मिट्टी की जांच कैसे हुई? उसके आधार पर किसानों ने खाद की खपत घटाकर अपनी आमदनी कैसे बढ़ा ली? वैसे कृषि मंत्रालय ने इसी जवाब में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के लाभार्थियों का आंकड़ा भी दिया है, जो बताता है कि लाभार्थी किसानों की संख्या में भारी उतार-चढ़ाव बना हुआ है.
कृषि यंत्रीकरण उपमिशन का हाल अलग नहीं
कृषि क्षेत्र के लिए बजट आवंटन और खर्च राशि का यह अंतर कृषि की दूसरी योजनाओं में भी दिखाई देता है. कृषि यंत्रीकरण उपमिशन के तहत सरकार हर साल आवंटित बजट खर्च कर पाने में असफल रही. हालांकि, 2016-17 और 2017-18 दो ऐसे वित्त वर्ष हैं, जिनमें बजट आवंटन से खर्च राशि ज्यादा रही है.
सिंचाई योजना का बजट नहीं खर्च हुआ
केंद्र सरकार ने बताया कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 2015-16 से अब तक 45 लाख 92 हजार किसानों को लाभ मिला है. लेकिन यह योजना भी आवंटित बजट खर्च न कर पाने की चुनौती से जूझ रही है. 2016-17 में 2,326 करोड़ रुपये बजट आवंटन था, लेकिन सिर्फ 1,991 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए. इसी तरह 2017-18 सरकार ने योजना का बजट बढ़ाकर 3,395 करोड़ रुपये कर दिया, लेकिन खर्च सिर्फ 2,818 करोड़ ही हुए. 2018-19 में तो बजट आवंटन और खर्च राशि के बीच का अंतर 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. इसी तरह 2019-20 में आवंटित बजट 3,487 करोड़ रुपये था, जबकि खर्च राशि 2,700 करोड़ का आंकड़ा भी नहीं छू पाई.
सम्मान निधि का बजट भी खर्च नहीं हुआ
केंद्र सरकार की यह समस्या उसकी सबसे महत्वाकांक्षी योजना किसान सम्मान निधि में भी दिखाई देती है. योजना की शुरुआत में इससे देश के साढ़े बारह करोड़ किसानों को लाभ होने का दावा किया गया था. बाद में जब इस योजना को सभी किसानों तक विस्तार दिया गया तो संभावित लाभार्थी किसानों का आंकड़ा बढ़कर साढ़े चौदह करोड़ हो गया. लेकिन सरकार ने 2019-20 में इस योजना के लिए 75 हजार करोड़ के बजट अनुमान में 26 फीसदी की कटौती करके 54 हजार 370 करोड़ रुपये कर दिया.
Advertisement. Scroll to continue reading. किस्त की संख्या बढ़ी, लाभार्थी घटे
पीएम किसान सम्मान निधि योजना की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि इसके लिए अब तक कुल 11 करोड़ 17 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है. इनमें 2000 रुपये की पहली किस्त के बाद जितनी भी किस्त जारी हुई हैं, उसे पाने वाले लाभार्थी किसानों का आंकड़ा 10 करोड़ के पार नहीं पहुंच पाया है. वित्त वर्ष 2020-21 के लिए सरकार ने इस योजना का बजट आवंटन 75 हजार करोड़ रुपये ही रखा है. लेकिन किस्त दर किस्त भुगतान बढ़ने के साथ लाभार्थी किसानों की संख्या घट रही है. इसकी वजह सत्यापन से जुड़ी अड़चनें हैं. ऐसे में इसके लिए आवंटित बजट का पूरा बजट खर्च हो पाना मुश्किल लग रहा है. सवाल बस इतना है कि जब सरकार आवंटित बजट ही नहीं खर्च कर पाएगी तो किसानों को कृषि क्षेत्र के भारी-भरकम बजट आवंटन से कोई राहत कैसे मिल पाएगी?