कोरोना महामारी से बचने के लिए केंद्र सरकार ने बीते साल मार्च में लॉकडाउन लगाया था. इसने मजदूरों से लेकर स्कूल जाने वाली लड़कियों और ऑफिस में काम करने वालों से लेकर घरेलू सहायकों तक सब पर अलग-अलग असर डाला था. बुधवार को राज्य सभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शून्यकाल में कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन से लड़कियों पर आए असर का मुद्दा उठाया.
उन्होंने कहा, ‘कोरोना महासंकट के दौरान (लॉकडाउन के चलते) स्कूल बंद होने से देश के लगभग सभी राज्यों में बेटियों की पढ़ाई और उनके उज्ज्वल भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है. इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्कूल के सेफ्टीनेट (स्कूल जाने से मिलने वाली सुरक्षा) से वंचित होने के कारण बेटियों के बाल विवाह की संख्या बढ़ती जा रही है.’
लड़कियों की पढ़ाई छूटी और बाल विवाह भी बढ़े
राज्य सभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से संचालित राष्ट्रीय हेल्पलाइन, चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 से मिली जानकारी का हवाला दिया. उन्होंने कहा, ‘चाइल्ड लाइन में एक आरटीआई लगाई गई थी, (इससे पता चला है कि) अप्रैल से अक्टूबर के बीच (लॉकडाउन के दौरान) बाल विवाह से जुड़ी 18 हजार 324 डिस्ट्रेस कॉल्स (मदद मांगने की कॉल्स) आयी थी. इसी के साथ महाराष्ट्र और तेलंगाना में 200 से ज्यादा और कर्नाटक में 188 मामले सामने आए.’
उन्होंने आगे कहा कि यह (बाल विवाह) सभी राज्यों के लिए मुसीबत है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बात पर खुशी जताई कि इनमें से कई राज्यों ने समय पर कदम उठाकर बाल-विवाहों को रोक दिया.
बाल विवाह रोकने के लिए कदम उठाने की मांग
सांसद ज्योतिदित्य सिंधिया ने मंत्रालय से राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ा जुटाने के लिए राज्यों को तत्काल मूल्यांकन कराने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया. उन्होंने नियमों-कानूनों को सख्ती से लागू करने, बाल बधुओं को उचित परामर्श देने के लिए जिला बाल कल्याण समितियों को सक्रिय करने, आंगनवाड़ी कर्मियों और एनजीओ के साथ मिलकर मिशन मोड में बाल बधुओं तक पहुंचने जैसे कदम उठाने की अपील की.
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि इससे लड़कियों को दोबारा स्कूल लौटने में मदद दी जा सकती है. उन्होंने लड़कियों की पढ़ाई बीच में छूटने (ड्रॉपआउट) से रोकने के लिए एक ब्लूप्रिंट बनाने और जनजागरूकता बढ़ाने का भी अनुरोध किया.
अन्य सांसदों ने भी जताया समर्थन
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से राज्य सभा में उठाए गए इस मुद्दे का पक्ष-विपक्ष के अन्य सांसदों ने भी समर्थन किया. इनमें सांसद मनोज कुमार झा (बिहार), प्रियंका चतुर्वेदी (महाराष्ट्र), डॉ. फौजिया खान (महाराष्ट्र), सुभाष चंद्र सिंह (ओडिशा), मजीबुल्लाह खान (ओडिशा), सुजीत कुमार (ओडिशा), वंदना चव्हाण (महाराष्ट्र), सस्मित पात्रा (ओडिशा) और डॉ. अमर पटनायक के नाम शामिल हैं.
बाल विवाह किसे कहते हैं, भारत में क्या है स्थिति
यूनिसेफ के मुताबिक, 18 साल से पहले किसी लड़के या लड़की की शादी को बाल विवाह माना जाता है. बाल विवाह लड़के-लड़कियों दोनों को प्रभावित करता है, लेकिन दक्षिण एशिया में लड़कियों पर ज्यादा असर पड़ता है. बाल विवाह लड़कियों के अधिकार हनन के साथ हिंसा और शोषण का जोखिम बढ़ा देता है. दुनिया में दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं. यहां पर विश्व की 20-24 साल आयुवर्ग की कुल महिलाओं में 45 फीसदी ने 18 साल से पहले शादी होने की जानकारी दी. इतना ही नहीं, पांच में एक लड़की की शादी तो 15 साल से पहले कर दी जाती है. अगर भारत की बात करें तो दुनिया की एक-तिहाई बाल बधुएं यहीं पर मिलती हैं, जो दुनिया में सबसे बड़ी संख्या है. एशिया में बांग्लादेश में बाल विवाह की दर सबसे ज्यादा है. नेपाल में 40 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है.