यह बार-बार दोहराई जाने वाली लाइन है कि आजादी के 70 साल बाद भी वंचित तबके को उसका संवैधानिक हक नहीं मिल पाया है. लेकिन भारतीय समाज की यही हकीकत है. यहां संसाधनों से लेकर सरकारी पदों पर वंचित वर्गों को आज तक उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व (आरक्षण की व्यवस्था) नहीं मिल पाया है. यह बात राज्य सभा में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के जवाब से भी साबित हो रही है.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बैकलॉग कितना है
संसद के बजट सत्र में राज्य सभा में सांसद चौधरी सुखराम सिंह यादव, सांसद विशंभर प्रसाद निषाद और सांसद छाया वर्मा ने उच्चतर शिक्षा विभाग से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्तियों का ब्यौरा मांगा था. अपने आतारांकित प्रश्न (संख्या 2596) में उन्होंने पूछा-
(1) केंद्रीय विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों की श्रेणीवार संख्या कितनी-कितनी है?
(2) केंद्रीय विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों की श्रेणीवार बैकलॉग रिक्तियां कितनी-कितनी है?
(3) देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में चयन समिति द्वारा ‘योग्य नहीं पाए जाने वाले’ शिक्षक उम्मीदवारों का पदवार और श्रेणीवार ब्यौरा क्या है?
(4) क्या विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर आरक्षण सूची (रिजर्वेशन रोस्टर) दिखाया जा रहा है?
(5) क्या दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों सहित देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रोस्टर रजिस्टर में आरक्षण से जुड़ी गड़बड़ी पाई गई हैं?
आरक्षित वर्ग के पद ही खाली क्यों?
सांसदों के इन सवालों का जवाब केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने दिया. राज्य सभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, एक जनवरी, 2021 तक देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंस प्रोफेसर के 18 हजार 408 पद स्वीकृत थे. इनमें से 10 हजार 236 पद अनारक्षित वर्ग के और बाकी के पद विभिन्न श्रेणियों में आरक्षित हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में पदों और उसमें लागू आरक्षण का ब्यौरा दिया है. (टेबल-1 देखें)
लेकिन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बैकलॉग रिक्तियों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. जहां अनारक्षित वर्ग (जिसे सामान्य श्रेणी लिखा गया है) में एक भी सीट खाली नहीं हैं, वहीं आरक्षित वर्ग में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सैकड़ों सीटें खाली चल रही हैं. (टेबल-2 देखें) इतना ही नहीं, आर्थिक आधार पर कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित सीटें और विकलांग वर्ग के लिए आरक्षित सीटें भरी हैं.
आखिर इसकी क्या वजह है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की सिर्फ एससी, एसटी और ओबीसी की ही सीटें खाली हैं, जबकि अनारक्षित वर्ग की एक भी सीट खाली नहीं है? ऐसा कैसे संभव है कि उच्च शिक्षा के प्रसार के बावजूद आरक्षित वर्ग की सीटें खाली रह जाएं? क्या इन पदों के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं?
अक्सर यह देखा गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग की सीटें यह कह कर खाली छोड़ दी जाती हैं कि योग्य उम्मीदवार नहीं मिला है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि केंद्र सरकार के पास इससे जुड़ा आंकड़ा नहीं है. अपने जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की चयन समितियों द्वारा ‘अऩुपयुक्त पाए गए’ शिक्षक उम्मीदवारों का ब्यौरा केंद्रीय रूप से नहीं रखा जाता है. इसका मतलब तो यह भी है कि सरकार के पास इस बात की जानकारी नहीं है कि क्यों आरक्षित वर्ग की सीटें खाली रह जाती हैं? और जब सरकार को समस्या का पता ही नहीं है तो उसका समाधान कैसे करेगी? अगर यह समस्या दूर नहीं हुई तो सरकारी संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग की बैकलॉग की समस्या का तो कोई अंत ही नहीं है.
उपनाम के आधार पर जातिगत भेदभाव की समस्या
सरकारी सेवाओं के लिए चयन में जातिगत भेदभाव होने की बात किसी से छिपी नहीं हैं. हाल ही में दलित इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के शोध विंग ने अपनी रिपोर्ट में अभ्यर्थियों के नाम छिपाने की सिफारिश की है. उसका कहना है कि इससे उम्मीदवारों को ज्यादा बराबरी का मौका मिल पाएगा. इसका मतलब है कि उपनाम से जाति का पता चल जाता है और इसका सीधा खामियाजा आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को उठाना पड़ता है. क्या यही समस्या केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्तर पर शिक्षकों की नियुक्तियों की भी है?
आरक्षण लागू करने में पारदर्शिता की भी कमी
राज्य सभा में सांसदों ने रोस्टर से जुड़ा सवाल भी पूछा था. इसके जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया, ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीपी) ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित सभी विश्वविद्यालयों को समय समय पर निर्देश जारी किए हैं कि वे कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार की ओर से निर्देश के अनुसार आरक्षण रोस्टर को अपनी वेबसाइट पर लगाएं और नियमित रूप से अपडेट करें.’ लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय या दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों की वेबसाइट देखने पर ऐसी कोई सूचना दिखाई नहीं देती है. इस बारे में जब उम्मीदवारों से बात की गई तो नाम न जाहिर करने पर एक शिक्षक ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ऑफिस में रोस्टर होता है, लेकिन वेबसाइट पर नहीं होता है. ऐसा न होने की वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि रोस्टर सामने आते ही लोग अपने हक के लिए संघर्ष शुरू कर देंगे. कुल मिलाकर पारदर्शिता का अभाव आरक्षण को लागू करने के दावे पर सवाल खड़े कर रहा है.
QUESTION (Vacancies in Central Universities)
Ch. Sukhram Singh Yadav: Shri Vishambhar Prasad Nishad: Smt. Chhaya Verma: Will the Minister of EDUCATION be pleased to state:
(a) the category-wise number of Assistant Professors, Associate Professors and Professors in Central Universities;
(b) the category-wise number of backlog vacancies of Assistant Professors, Associate Professors and Professors in Central Universities;
(c) the post and category-wise details of teacher candidates found ‘not found suitable’ by selection committees of all Central Universities and colleges of the country;
(d) whether reservation roster is being displayed on the websites of Universities; and
(e) whether irregularities have been found in various colleges of University of Delhi including Central Universities of the country in roster register related to reservation?
ANSWER
MINISTER OF EDUCATION (SHRI RAMESH POKHRIYAL ‘NISHANK’)
(a) : The category-wise details of sanctioned posts of Assistant Professors, Associate Professors and Professors in Central Universities (CUs) under purview of Ministry of Education are given at Annexure-I.
(b) : The category-wise details of backlog vacancies of Assistant Professors, Associate Professors and Professors in Central Universities (CUs) under purview of Ministry of Education are given at Annexure-II.
(c) : The details of teacher candidates found ‘not found suitable’ by selection committees of all Central Universities and colleges of the country are not maintained centrally.
(d) & (e): University Grants Commission (UGC) has issued instructions from time to time to all Universities including Central Universities to display the reservation roster, to be updated at regular intervals, on their web-sites as per instructions issued by the Government of India, Department of Personnel & Training. The Central Universities are autonomous bodies established by the Acts of the Parliament and are governed by their respective Acts and the Statutes and the Ordinances framed thereunder. It is responsibility of Central University to comply with the provisions of “Central Educational Institutions (Reservation in Teachers’ Cadre) Act, 2019” as amended from time to time and instructions/ guidelines issues by Central Government/ UGC under the provisions of this Act.