केंद्र सरकार का नारा ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ है. सरकार अपनी योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए प्रचार-प्रसार भी खूब करती है. ऐसे में सरकारी पैसे से चलने वाले चैनल दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे संचार माध्यमों की स्थिति अहम हो जाती है. यही वजह है कि यह मुद्दा संसद में लोक सभा सांसद शर्मिष्ठा सेठी ने उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा-
(1) क्या सरकार इस बात से अवगत है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) अपेक्षित श्रम बल की 50 फीसदी से भी कम संख्या के साथ काम कर रहे हैं? अगर हां तो इसके क्या कारण हैं?
(2) दूरदर्शन और आकाशवाणी में रिक्त पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं या उठाए जा रहे हैं?
(3) क्या दूरदर्शन और आकाशवाणी के कर्मचारियों में कमी करने का कोई प्रस्ताव है?
(4) यदि हां तो इसका ब्यौरा क्या है, इसके क्या कारण हैं?
सरकार ने क्या जवाब दिया
लोक सभा में सांसद के इन सवालों का जवाब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने दिया. उन्होंने बताया कि आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडिया) और दरदर्शन अपने स्वीकृत कार्मिक संख्या से लगभग 50 फीसदी पर काम कर रहे हैं.
इसकी वजह के बारे में उन्होंने कहा कि अब तक प्रसार भारती भर्ती बोर्ड का गठन नहीं हुआ है, जिसे प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) अधिनियम-1990 के तहत विभिन्न पदों को भरने का अधिकार दिया गया है.
भर्ती में देरी क्यों
दूसरे सवाल के जवाब में केंद्रीय प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया कि भारत सरकार ने 12 फरवरी 2020 को प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) भर्ती बोर्ड स्थापना नियमावली 2002 को नोटिफाई किया है. इसके अनुसार प्रसार भारती ने सीधी भर्ती वाली रिक्तियों को भरने के लिए एक जुलाई 2020 को भर्ती बोर्ड बनाया है. (हालांकि, केंद्रीय मंत्री ने पहले सवाल के जवाब में कहा है कि भर्ती बोर्ड नहीं बना है.)
Advertisement. Scroll to continue reading. केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि पदोन्नति वाली रिक्तियों को भरने के लिए पदोन्नति समिति की बैठकें सतत प्रक्रिया के रूप में हो रही हैं.
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने यह स्पष्ट किया कि दूरदर्शन और आकाशवाणी में कर्मचारियों की कमी करने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
कैसे चल रहा है काम
जैसा कि सरकार ने खुद माना है कि आकाशवाणी और दूरदर्शन में आधे पद खाली हैं. फिर भी दोनों संस्थान पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि यहां काम कौन कर रहा है, क्या मौजूदा कर्मचारियों से दोगुना काम लिया जा रहा है या ठेका (संविदा) कर्मचारियों के सहारे सरकारी दूरदर्शन चल रहा है?
इसके अलावा उपलब्ध जानकारी है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी में स्थायी कर्मचारियों की जगह कैजुअल कर्मचारी काम कर रहे हैं. ऐसे कर्मचारियों को वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाओं की जगह प्रति दिन के काम के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं. सबसे बड़ी बात कि ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं होती है.