आजाद भारत की कल्पना में संसाधनों का उचित बंटवारा और लोगों के लिए बुनियादी सुविधाओं की गारंटी शामिल है. लेकिन हर साल सर्दी का मौसम बेघरों की जान के लिए मुसीबत बन जाता है. सड़क से लेकर संसद तक बेघरों के पुनर्वास का सवाल उठता है. बीते मानसून सत्र में लोक सभा में यह सवाल उठा तो सरकार ने शहरी बेघरों की संख्या दो लाख सात हजार बताई. हालांकि, इससे पहले बजट सत्र में केंद्र सरकार ने जनगणना 2011 के आधार पर देश में कुल शहरी बेघरों की संख्या नौ लाख 38 हजार बताई थी. आंकड़ों के विवाद से बचते हुए शहरी बेघरों की संख्या दो लाख मान लेना ही ठीक है. यानी इस बार दो लाख लोगों के सामने सर्दी का मौसम फिर जान का जोखिम पैदा करने वाला है.
लोक सभा में सवाल उठा था
लोक सभा में सांसद रवि किशन, मनोज तिवारी, जॉन बर्ला और संगम लाल गुप्ता ने पूछा था कि (1) क्या सरकार ने बीपीएल श्रेणी में गरीब आवासहीन लोगों का कोई सर्वेक्षण कराया है? (2) अगर हां तो दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत राज्यवार ब्यौरा क्या है? (3) क्या सरकार ऐसे निराश्रितों को आवास मुहैया कराने पर विचार कर रही है?
राजस्थान, गुजरात, यूपी में सबसे ज्यादा शहरी बेघर
इसके जवाब में आवास और शहरी कार्य राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि दीनदयाल अंतोदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (डीएवाई-एनयूएलएम) चल रही है, इसके तहत शहरी बेघर आश्रय योजना के लिए सर्वेक्षण कराया जाता है. इस सर्वेक्षण में तृतीय पक्ष शामिल होता है. अब तक (22 सितंबर तक) 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में यह सर्वे हुआ है. इसके तहत दो लाख सात हजार शहरी बेघरों की पहचान की गई है. राज्यवार आंकड़ा देखें तो शहरी बेघरों में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु सबसे ऊपर हैं.(देखें टेबल-1)
केंद्र ने कहा- बेघरों का कल्याण राज्यों का काम
हालांकि, इन निराश्रितों को आवास देने के सवाल पर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भूमि और कालोनीकरण राज्यों का विषय है, इसलिए बेसहारा लोगों को स्थायी आवास मुहैया कराना राज्यों की जिम्मेदारी है. उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार पीएम आवास योजना-शहरी के जरिए राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता मुहैया कराती है, ताकि बेसहारा लोगों समेत शहरी गरीबों को बुनियादी सुविधाएं मिल सकें.
शहरी बेघरों में भिखारी ज्यादा
शहरी बेघरों में बड़ी संख्या उन लोगों की होती है, जो भीख मांगकर अपनी जिंदगी चलाते हैं. संसद के बजट सत्र में इनके कल्याण के एक सवाल पर केंद्र सरकार ने बताया था कि शहरी और विकास मंत्रालय ने भिखारियों के कौशल विकास के लिए कदम उठाए हैं. इसके तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम (एनबीसीएफडीसी) को 2017-18 में 100 लाख, 2018-19 में 50 लाख और 2019-20 में 70 लाख रुपये दिए गए हैं. इससे अब तक 400 भिखारियों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किया गया है. इसके अलावा भिखारियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान को भी 100 लाख रुपये दिए गए हैं.
शीतलहर से मौत के आंकड़ों में अंतर
इन तमाम कोशिशों के बावजूद हर साल बड़ी संख्या में लोग शीतलहर के चलते अपनी जान गंवाते हैं. न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते साल सर्दी में अकेले उत्तर प्रदेश में शीतलहर से 143 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन बजट सत्र में जब यह सवाल संसद में पूछा गया तो सरकार ने उत्तर प्रदेश में सिर्फ तीन लोगों की मौत होने का आंकड़ा दिया.. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि कोल्ड शेल्टर बनाने और शीतलहर से मौतों को रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, केंद्र सरकार शीतलहर से होने वाली मौतों के आंकड़े को नहीं रखता. उन्होंने यह भी बताया कि साल 2019 में केवल चार राज्यों- हिमाचल प्रदेश (3), उत्तर प्रदेश (3), झारखंड (1) और पंजाब (21 मौत) ने शीतलहर से होने वाली मौतों की जानकारी दी. अब सवाल उठता है कि सरकारें समस्या के बजाए आंकड़ों को दूर करने की कोशिश क्यों कर रही हैं?
कोरोना संकट से शीत लहर घातक हुई
इन तमाम सरकारी वादे और इरादों के बीच इस साल कोरोना संकट ने शीतलहर के जोखिम को और घातक बना दिया है. जाहिर है कि सरकार ऐसे शहरी बेघरों के लिए अस्थायी शेल्टर होम बनाएगी. लेकिन कोरोना के डर से इसमें कितने लोग रहने आएंगे और जो लोग रहने आएंगे, उन्हें कोरोना से कैसे बचाया जाएगा, इस पर विचार किया जाना जरूरी है?. अगर सरकार ने पर्याप्त संख्या में शेल्टर होम नहीं बनाए तो संभव है कि इस बार शीतलहर से होने वाली मौतों का आंकड़ा पिछले साल से ज्यादा हो जाए या यह भी हो सकता है कि कम शेल्टर होम बनने पर उनमें इतनी भीड़ जमा हो जाए कि कोरोना संक्रमण से बचाव करना ही संभव न रह जाए. कुल मिलाकर शहरी बेघरों के सामने इस बार की सर्दी ने एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाईं जैसे हालात पैदा कर दिए हैं.
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