संसद के मानसून सत्र में केंद्र सरकार से जब उसके अपने मंत्रालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिला कर्मचारियों का आंकड़ा मांगा गया तो उसने कह दिया कि ऐसे आंकड़े नहीं रखे जाते हैं. लोक सभा में सांसद उपेंद्र सिंह रावत ने यह सवाल उठाया था. उन्होंने पूछा था कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिला कर्मचारी की संख्या कितनी है? क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिला कर्मचारियों की भर्ती के लिए कोई विशेष अभियान चलाने का प्रस्ताव है, यदि हां तो इसका ब्यौरा क्या है? यदि नहीं तो इसकी वजह क्या है? इस पर केंद्रीय लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार अपनी सेवाओं में लैंगिक आधार पर आंकड़ों को अलग से नहीं जुटाता है.
जेंडर बजटिंग, फिर क्यों महिला कर्मचारियों का आंकड़ा नहीं
हैरान करने वाली बात है कि सरकार को अपने यहां नियुक्त कर्मचारियों का लैंगिक आधार पर आंकड़े नहीं पता है, जबकि वह लगभग सभी मंचों से जेंडर बजटिंग और महिला सशक्तिकरण के दावे करती है. जिस तरह से सरकारी कामकाज को ऑनलाइन करने के दावे हैं, उसमें कर्मचारियों से जुड़ा कोई भी आंकड़ा तत्काल उपलब्ध न होने का तर्क भी बहुत ठोस नहीं नजर आता है.
आरक्षण सरकारी वादों तक सिमट रहा है
गौरतलब है कि केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण लागू है. लेकिन क्या सभी आरक्षित वर्गों को पूरा प्रतिनिधित्व मिल पाया है? यह जानने के लिए जब कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट को खंगाला गया तो अलग ही सच्चाई सामने आई. केंद्र सरकार हर साल जारी होने वाली अपनी रिपोर्ट में बताती है कि अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए क्रमश: 15 फीसदी, 7.5 फीसदी और 27 फीससी आरक्षण लागू है. अखिल भारतीय स्तर पर खुली प्रतियोगिता से इतर की होने वाली सीधी भर्ती में एससी के लिए 16.66 फीसदी, एसटी के लिए 7.5 फीसदी और ओबीसी के लिए 25.84 फीसदी आरक्षण लागू है.
आरक्षण के अनुपात में वास्तविक संख्या कम
लेकिन सरकारी कर्मचारियों में इन वर्गों के कर्मचारियों की संख्या आरक्षण के अनुपात से मेल नहीं खा रही है. समूह ‘ग’ और समूह ‘घ’ के कर्मचारियों को मिलाकर केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण अपने अनुपात के नजदीक पहुंच जाता है. लेकिन समूह ‘क’ और समूह ‘ख’ के मामले में निराशाजनक स्थिति है. कार्मिक मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक, समूह ‘क’ के कुल 84 हजार 705 कर्मचारियों में एससी वर्ग के कर्मचारी 13.38 फीसदी, एसटी वर्ग के कर्मचारी 5.92 फीसदी और ओबीसी के कर्मचारी 13 फीसदी थे. (देखें टेबल – 1) 2017-18 की सालाना रिपोर्ट का भी आंकड़ा अलग नहीं है. (देखें टेबल-2) हालांकि, 2016-17 के मुकाबले मामूली सुधार जरूरत आया है. (देखें टेबल-3)
आरक्षण के बराबर प्रतिनिधित्व न होने की समस्या पुरानी
Advertisement. Scroll to continue reading. ऐसा नहीं है कि आरक्षण को लागू करने की यह कमी रातोंरात खड़ी हो गई है और सरकारी सेवाओं में विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व अचानक घट गया है, बल्कि यह समस्या पहले से चली आ रही है. (देखें- टेबल-4) शीर्ष की नौकरशाही या फैसले करने वाले पदों पर आरक्षित वर्ग कर्मचारियों की कमी लंबे समय से बनी हुई है.
आखिर आरक्षित पदों को कब भरा जाएगा
सरकारी संस्थाओं में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके, इसके लिए जाति आधारित आरक्षण को लाया गया. अब इसमें जाति के साथ-साथ आर्थिक आधार को भी शामिल कर लिया गया है. लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि आखिर कब सभी वर्गों को पूरा आरक्षण मिल पाएगा, कब सरकार में उनके हिस्से की बकाया सीटों को भरने के लिए कदम उठाया जाएगा? क्या ऐसे तमाम सवाल न उठें, इसलिए सरकार ने केंद्रीय सेवाओं में एससी और एसटी वर्ग की महिला कर्मचारियों की संख्या की जानकारी न होने की बात कही है?
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