दुनिया के 46 फीसदी कोरोना मामले और एक चौथाई मौतें अकेले भारत में हुई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का यह ताजा आंकड़ा है. भारत में खुद सरकार ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर आने की आशंका भी जता दी है. लेकिन क्या देश के पास इससे निपटने के लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद हैं? यह सवाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि दूसरी लहर में ऑक्सीजन, आईसीयू बेड और वेंटिलेटर्स की कमी की आज पूरी दुनिया में चर्चा है, लोगों को इलाज के अभाव अपनों को खो रहे हैं. ये केंद्र सरकार की तमाम तैयारियों और दावों को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. केंद्र सरकार इसलिए, क्योंकि इस महामारी से निपटने के लिए ज्यादातर राज्यों के पास न तो संसाधन हैं और न ही विशेषज्ञता.
पेड़ों के नीचे इलाज क्यों
आज अस्पताल से लेकर श्मसान तक फैली अव्यवस्था को देखते हुए सवाल उठता है कि भारत में कोरोना का पहला मामला आने के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं में कितना सुधार किया गया? इस बारे में केंद्र सरकार 16 लाख से लेकर 18 लाख से भी ज्यादा कोविड बेड बनाने के दावे कर रही है. लेकिन सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर हो रहा है, जिसे मध्य प्रदेश के आगर मालवा का बताया जा रहा है. इसमें मरीजों को पेड़ों के नीचे लिटाकर इलाज किया जा रहा है. अगर केंद्र सरकार ने सचमुच 16 या 18 लाख बेड बना लिए थे (देखें- टेबल-1) तो ऐसी तस्वीरें क्यों आ रही हैं? (संसदनामा इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता है.)
Amid #Corona fear, quacks are treating patients in an orange orchard by using branches of tree as stand to administer saline bottles in Agar Malwa district of MP. @ChouhanShivraj @News18India @CNNnews18 pic.twitter.com/gCWI3ESon4
— Manoj Sharma (@ManojSharmaBpl) May 5, 2021
एक हजार आबादी पर कितने कोविड बेड
लोक सभा में सांसद दिनेश त्रिवेदी के सवाल के जवाब में केंद्र ने 20 सितंबर, 2020 को संसद में कोविड बेड की जानकारी दी थी. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि जनगणना-2011 की आबादी के हिसाब से प्रति 1000 आबादी पर 1.6 कोविड बेड उपलब्ध हैं. लेकिन एक हकीकत यह भी है कि सरकारी दावों में शामिल कई बेड सिर्फ कागजों में ही बने हैं. पढ़ें ये रिपोर्ट- क्या केंद्र सरकार ने कोविड हॉस्पिटल बनाने के बारे में संसद में झूठे आंकड़े दिए थे?
विशेषज्ञ तो भारत में कोरोना जांच की मौजूदा संख्या पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि यह मरीजों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिहाज से नाकाफी हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (Institute for Health Metrics and Evaluation) भारत में कोविड मामलों का आकलन करने के लिए एक मॉडल बनाया है. इसके निदेशक ने आशंका जताई है कि भारत सिर्फ तीन या चार फीसदी मामलों की ही पहचान कर रहा है. इस मॉडल के मुताबिक शुक्रवार को भारत ने तीन लाख 86 हजार संक्रमण के नए मामले बताए, जबकि वास्तव में कुल संक्रमण एक करोड़ हो सकता है.
आंकड़ों के इस विवाद को छोड़ भी दें तो अभी जितने मरीज हैं, उन्हीं को अस्पताल में बेड के लिए भटकना पड़ रहा है. इसे और सटीक तरीके से समझने के लिए प्रति हजार व्यक्ति पर कोरोना मरीजों की संख्या निकाल लेते हैं. 8 मई, 2021 के केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कोरोना के 37 लाख 23 हजार 446 सक्रिय मामले हैं. देश की आबादी लगभग एक अरब 40 करोड़ है. इस आधार पर 1000 की आबादी पर कोरोना के मरीजों की संख्या 2.6 आती है.
लेकिन सभी कोरोना मरीजों को अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. सिर्फ 10-15 फीसदी मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत आती है. मौजूदा सक्रिय मामले के आधार पर तीन लाख 72 हजार 344 मरीजों को अस्पताल में भर्ती करके इलाज की जरूरत है. लेकिन सरकार ने जो कोविड बेड बताए हैं, उनमें आइसोलेशन बेड सबसे ज्यादा हैं और ऑक्सीजन युक्त बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर्स कुल मिलाकर इतने नहीं है कि मौजूदा जरूरत को पूरा कर सकें. (देखें टेबल-1)
अब अगर सिर्फ वेंटिलेटर्स की बात करें तो केंद्र सरकार ने बजट सत्र में कोविड मरीजों के लिए राज्यवार आवंटित वेंटिलेटर्स की जानकारी दी थी. इसके मुताबिक, केंद्र सरकार ने 5 मार्च, 2021 तक 38 हजार 867 वेंटिलेटर्स आवंटित किए, जिनमें से 35 हजार 269 वेंटिलेटर्स लगा दिए गए थे. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि कई अस्पतालों में वेंटिलेटर्स लगे हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाले ऑपरेटर्स और उनका इस्तेमाल कर पाने वाले विशेषज्ञ नहीं हैं.
यूपी स्वास्थ्य मंत्री के गृह जनपद सिद्धार्थनगर का हाल।जो अपना घर संभाल नही पाए उससे प्रदेश क्या संभलेगा!!!
सब कुछ भगवान भरोसे@dmsid1 pic.twitter.com/7sEvncW4ZJ— Marinder Mishra (मणेन्द्र मिश्रा मशाल) (@Marinder86) May 6, 2021
इससे पहले 23 सितंबर, 2020 को केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि 20 सितंबर 2020 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 30,841 वेंटिलेटर्स भेजे गए हैं. वहीं, अप्रैल में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्ष वर्धन ने बताया कि बीते साल राज्यों को 34 हजार 228 वेंटिलेटर्स (ventilators) भेजे गए थे और लगभग छह हजार अतिरिक्त वेंटिलेटर्स भेजे जा रहे हैं. इनको मिलाकर मोटा आंकड़ा निकालें तो लगभग 40 हजार वेंटिलेटर्स केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे हैं.
नाकाफी रही तैयारी
सेंटर फॉर डिजीज डायनिमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (Center for Disease Dynamics, Economics and Policy) और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के मुताबिक, 2020 में महामारी फैलने के समय भारत में सिर्फ 48 हजार वेंटिलेटर्स (निजी और सरकारी सब मिलाकर) थे, जबकि देश को जरूरत कम से कम 1.5 लाख वेंटिलेटर्स की है. अगर नए और पुराने वेंटिलेटर्स को मिला लिया जाए तो आज की तारीख में कुल 88 से 90 हजार वेंटिलेटर्स होंगे, जो साल भर पहले डेढ़ लाख वेंटिलेटर्स की जरूरत से काफी कम हैं.
10 हजार आबादी पर कितने वेंटिलेटर्स
2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी लगभग एक अरब 40 करोड़ है. कुल 90 हजार वेंटिलेटर्स के आधार पर अगर प्रति हजार की आबादी पर संख्या निकालें तो यह आंकड़ा 0.06 आता है. यह प्रति दस हजार की आबादी पर 0.6 हो जाता है. तो साफ है कि केंद्र सरकार के भारी-भरकम दावों के उलट आज दस हजार की आबादी पर एक मुकम्मल वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है. ध्यान देने की बात है कि कोरोना संक्रमित मरीजों में से पांच फीसदी को क्रिटिकल केयर की जरूरत पड़ती है. यानी 8 मई के सक्रिय मामलों के आधार पर एक लाख 86 हजार 172 मरीजों को आईसीयू और वेंटिलेटर्स की जरूरत हो सकती है. लेकिन इन दोनों को मिलाने पर भी जरूरत पूरी नहीं होती है. (देखें-टेबल-1)
वेंटिलेटर्स निर्माण की क्षमता
ऐसा नहीं है कि देश जरूरत भर का वेंटिलेटर्स बनाने में सक्षम नहीं है. कोरोना की पहली लहर आने के बाद सार्वजनिक उद्यम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने केंद्र सरकार को 28 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर्स की आपूर्ति की है. इतना ही नहीं, बीईएल रोजाना 500 से लेकर एक हजार तक वेंटिलेटर्स बनाने में सक्षम है. इसके अलावा कई अन्य कंपनियां भी वेंटिलेटर्स का उत्पादन करती हैं.
क्या सरकार कोरोना को खत्म मान बैठी
कोरोना संक्रमित मरीज की टूटती सांसों को वेंटिलेटर्स के सहारे की जरूरत पड़ती है. 12 फरवरी, 2021 को केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि उसने बीईएल को 30 हजार वेंटिलेटर्स बनाने का ऑर्डर दिया गया है. द हिंदू बिजनेसलाइन के मुताबिक, बीईएल ने बेहद कम समय में 30 हजार वेंटिलेटर्स की आपूर्ति कर दी. लेकिन केंद्र सरकार ने वेंटिलेटर्स की संख्या बढ़ाने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए? क्या केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी को खत्म मान लिया था? क्या केंद्र सरकार संसाधनों की कमी से जूझ रहे राज्यों को जिम्मेदार बताकर महामारी से निपटने की अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है? अगर देश में स्वास्थ्य सेवाओं का यही हाल रहा तो तीसरी लहर कितना कोहराम मचाएगी, इसका आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है.
हल्द्वानी, उत्तराखंड में दो दिन से वेंटिलेटर बेड चाहिए। दिनेश जी ज़िंदगी और मौत के बीच हैं। plz मदद करिए… @Sanjay97odisha @anil_baluni सर 🙏
Dinesh kumar
Age- 60
Location- Haldwani
Attendant name- Jagmohan Tamta
Contact- 7251994965, 8449355266#SOSUttrakhand— मीनाक्षी कंडवाल (@MinakshiKandwal) May 6, 2021
मेरे पारिवारिक नज़दीकी अजय जी को टाटा हॉस्पिटल, जमशेदपुर में CCU की तुरंत ज़रूरत है। उनकी हालत बिगड़ रही है।बिना समय गँवाए मदद चाहिए। @HemantSorenJMM
Patient : ajay kumar
Age: 70
Bed 32, ward 1A
Admmitted at Tata Main Hospital jamshedpur. (1)Advertisement. Scroll to continue reading.— Rana Yashwant (@RanaYashwant1) May 6, 2021
पीपरवार के दैनिक भास्कर के पत्रकार अर्पण चक्रवर्ती को आईसीयू बेड की तत्काल जरूरत है. उनका ऑक्सीजन लेवल 50 के आसपास है. फिलहाल वो देवकमल हॉस्पिटल में एडिमट हैं, वहां आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं है. उनके साथ फुलेश्वर महतो हैं, उनका नंबर 8789649380 है. @HemantSorenJMM @BannaGupta76
— Anand Dutta (@DuttaAnand) May 6, 2021