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मुंबई को पहली जीनोम सिक्वेंसिंग लैब मिली

जीनोम सीक्वेंसिंग, कोरोना वायरस,
Photo credit- Pixabay

मुंबई को पहली जीनोम सिक्वेंसिंग लैब मिल गई है. इसे नगर निगम की ओर से संचालित नायर अस्पताल में शुरू किया गया है. इससे कम समय में बड़ी संख्या में नमूनों की जांच और कोरोना वायरस के म्यूटेंट की पहचान की जा सकती है. इसका मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया.

सीक्वेंसिंग लैब के उद्घाटन के मौके पर सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि नायर अस्पताल को 100 साल पहले स्पेनिश फ्लू महामारी के दौरान स्थापित किया गया, जो एक दूसरी सदी बाद भी जनता के स्वास्थ्य देखभाल की तैयारी में जुटा है. उन्होंने आगे कहा, ‘अस्पताल 100 साल पहले समाजसेवियों के सहयोग से स्थापित किया गया था और आज भी दानदाता आगे आए हैं. यह परंपरा है.’ चार सितंबर, 1921 को स्थापित नायर अस्पताल सुपर-स्पेशिलिटी पाठ्यक्रमों सहित विभिन्न चिकित्सा व संबद्ध शाखाओं में प्रशिक्षण देता है.

सीएम उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि भारत में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसी स्थितियों के लिए दवाएं उपलब्ध कराना समय की मांग है, क्योंकि इसके इलाज की लागत करोड़ों रुपये में आती है. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) टाइप-1 से पीड़ित एक वर्षीय वेदिका शिंदे की 16 करोड़ रुपये का जीवन रक्षक इंजेक्शन देने के हफ्तों बाद रविवार को पुणे जिले के एक अस्पताल में मौत हो गई.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, अस्पताल ने अपने बयान में कहा है कि इस संस्थान ने समाज को चिकित्सा क्षेत्र के ऐसे दिग्गज दिए हैं, जिन्होंने दशकों से निस्वार्थ स्वास्थ्य सेवाएं दी हैं और हम इस गौरवशाली संस्कृति व परंपरा को अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए जारी रखने को लेकर तत्पर हैं.

अगली पीढ़ी की जीनोम सीक्वेंसिंग (एनजीएस) वायरसों के लक्षणों की व्याख्या करने की एक विधि है। इस तकनीक का आरएनए या डीएनए के पूरे जीनोम या लक्षित क्षेत्रों में न्यूक्लियोटाइड के क्रम को निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जो वायरस के दो उपभेदों के बीच अंतर को समझने में मदद करता है, जिससे म्यूटेंट की पहचान होती है.

 

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