पेट्रोल और डीजल (Petrol and Diesel) के बढ़ते दाम लोगों की जेब पर भारी पड़ रहे हैं. आने-जाने के खर्च से लेकर महंगी होते सामान लोगों की तंगी बढ़ा रहे हैं. ऐसे में अगर पेट्रोल और डीजल (Petrol and Diesel) को वस्तु और सेवा कर यानी जीएसटी (GST) के दायरे में लाने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ा है. लेकिन इस पर सत्ता पक्ष ही एकमत नहीं हो पा रहा है. मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने पर विचार करने की बात कही. लेकिन बुधवार को सुशील कुमार मोदी ने इसके उलट बयान दिया है.
पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लगाने में दिक्कत क्या है?
राज्य सभा में पेट्रोल और डीजल (Petrol and Diesel) को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने के मुद्दे पर सांसद सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने कहा कि पेट्रोल और डीजल को अगले 8 और 10 साल तक जीएसटी के दायरे में लाना संभव नहीं है. वित्त विधेयक 2021 पर चर्चा के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा हुआ तो सभी राज्यों को कम से कम 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा. राज्य सभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर पेट्रोलियम उत्पादों पर पांच लाख करोड़ से ज्यादा का टैक्स इकट्ठा करती हैं, जो जीएसटी में लाने पर गिर जाएगा, ऐसे में राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी?
पेट्रोल-डीजल के दाम में 60 फीसदी टैक्स
राज्यसभा में सुशील कुमार मोदी का यह बयान बयान इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बीते दिनों पेट्रोल और डीजल की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं. कुछ राज्यों में तो पेट्रोल के दाम ने 100 रुपये प्रति लीटर का आंकड़ा छू लिया है. गौरतलब है कि अभी तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत और उस पर आने वाले खर्च को मिलाकर पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ रसोई गैस के दाम तय करती हैं. लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग करों की वजह से यह लगभग दो तिहाई या 60 फीसदी महंगा हो जाता है. जीएसटी लगने पर यही दर घटकर 28 फीसदी हो जाएगी, जो जीएसटी की उच्चतर दर है. इसी वजह से सरकार को राजस्व के नुकसान का डर सता रहा है.
राज्यों में अलग-अलग टैक्स से दाम में अंतर
इसके अलावा सभी राज्य अपने-अपने हिसाब से पेट्रोल और डीजल के साथ रसोई गैस पर वैल्यू ऐडेड टैक्स यानी वैट (vat) की दर तय करते हैं. इससे इनके राज्यवार मूल्यों में काफी अंतर आ जाता है. लेकिन बीते एक साल में कोरोना संकट के चलते जब दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम गिर गए थे, तब केंद्र सरकार ने इन पर एक्साइज ड्यूटी को अप्रत्याशित तरीके से बढ़ा दिया था. इससे इनके दाम नहीं गिरे थे. इसके उलट जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने लगे तो कंपनियों ने तेल के दाम बढ़ाने शुरू कर दिया. इसका नतीजा है कि पेट्रोल और डीजल के साथ रसोई गैस के दाम अब तक अधिकतम ऊंचाई पर हैं.
एक साल में पहली बार मामूली कटौती
बीते एक साल में बुधवार को पहली बार (first reduction in fuel prices in over a year) तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दाम में 18 पैसे प्रति लीटर और डीजल के दाम में 17 पैसे प्रति लीटर की कटौती की है. इससे दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 91.17 रुपये लीटर से घटकर 90.99 रुपये और डीजल का दाम 81.30 रुपये प्रति लीटर हो गया है.
आपदा में अवसर – सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी में भारी इजाफा
आपको जानकर हैरानी होगी कि बीते छह साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) को 300 फीसदी तक बढ़ा दिया है. इसमें सबसे ज्यादा बढ़ोतरी कोरोना संकट के दौरान बीते एक साल में हुई है. वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने में सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 2.94 लाख करोड़ रुपये का टैक्स वसूला है. यह वही दौर था, जब लोगों ने लॉकडाउन के चलते नौकरी, कारोबार और आय के साधन सबसे ज्यादा गंवाए हैं.
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