कोरोना महामारी ने निजी जिंदगी से लेकर सरकारी कामकाज पर बुरा असर डाला है. अदालतों के कामकाज यानी लोगों के न्याय पाने के अधिकार पर भी इसकी चोट पहुंची है. हालांकि, अदालतों में वर्चुअल माध्यम से मामलों को सुनने की कवायद हो रही है. लेकिन देश में तकनीक के इस्तेमाल और जागरुकता में भारी अंतर इसमें बाधा बन रहा है.
वर्चुअल माध्यम से मामलों की सुनवाई
इसके बाजजूद बीते दिनों केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि 24 मार्च से लेकर 31 अगस्त, 2020 के बीच देश में लगभग 25 लाख मामलों की वर्चुअल सुनवाई की गई. इनमें से आठ हजार से ज्यादा मामले सुप्रीम कोर्ट में और सात लाख से कुछ कम मामले अलग-अलग हाईकोर्ट में सुने गए. अधीनस्थ न्यायालयों में 19 लाख और आयकर अपीलीय प्राधिकरण में आठ हजार मामलों की वर्चुअल तरीके से सुनवाई हुई.
न्याय पाने के अधिकार की हकीकत, दावे से अलग है
लेकिन वर्चुअल माध्यम से अदालतों में होने वाले काम की जो सुनहरी तस्वीर केंद्रीय कानून मंत्री ने खींची है, उस पर संसद की स्थायी समिति सवाल उठा चुकी है. राज्य सभा सांसद भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता वाली संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय मामलों की स्थायी समिति ने 11 सितंबर 2020 को वर्चुअल कोर्ट पर अंतरिम रिपोर्ट सौंपी.
इसमें अदालतों में वर्चुअल तरीके से मामलों की सुनवाई करने के लिए बुनियादी ढांचे और उपकरणों के अभाव और दूसरी चुनौतियों को बताया गया है. इसमें समिति ने यह भी कहा है कि बड़ी संख्या में वकीलों और वादी-प्रतिवादी के पास वर्चुअल सुनवाई में शामिल होने के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं.
इसके अलावा देश की एक बड़ी आबादी हाई स्पीड इंटरनेट और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की पहुंच से बाहर है. इतना ही नहीं, वर्चुअल कोर्ट या वर्चुअल तरीके से अदालत चलाने में गांव, कस्बों और छोटे शहरों में वकालत करने वाले वकीलों का भी साथ नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि वे नई तकनीकी के साथ बहुत सहज नहीं हैं.
अदालत में आने वाले मामले घटे
इसी का असर रहा है कि लॉकडाउन के दौरान अदालत में आने वाले मामलों की संख्या में भारी गिरावट आई है. नेशनल ज्यूडीशियल डाटा ग्रिड के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद अप्रैल में भारत की सभी अदालतों में कुल 82,725 मामले दर्ज हुए. यह संख्या साल 2019 में हर महीने दर्ज होने वाले 14 लाख मामलों का सिर्फ छह फीसदी है. इसके अलावा मामलों को निपटाने की दर में भी कमी आई है. अभी भी अदालतों का कामकाज पटरी पर नहीं लौटा है, जो सीधे तौर पर न्याय पाने के अधिकार या अदालत तक सबकी समान पहुंच को खतरे में डालने वाला है.
संविधान का क्या कहना है
भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों में शामिल अनुच्छेद- 39(ए) साफ-साफ कहता है कि राज्य (यानी सरकारें) न्याय के समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के इंतजाम करेंगी. साथ में यह भी सुनिश्चित करेंगी कि किसी भी नागरिक के सामने न्याय पाने में आर्थिक या अन्य कोई भी चीजें बाधा न पैदा करें. इसमें यह भी कहा गया है कि सरकारें अपने कानून या योजनाओं से निशुल्क विधिक सहायता देने की भी व्यवस्था करें. नागरिकों के न्याय पाने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों से मजबूत बनाया है. साल 2016 में अनीता कुशवाहा बनाम पुष्प सदन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘न्याय तक पहुंच’ को संविधान के अनुच्छेद-14 और 21 के तहत मौलिक अधिकार बताया था. सर्वोच्च अदालत ने इसकी रक्षा के लिए प्रभावी न्यायिक तंत्र बनाने का भी निर्देश दिया था.
वर्चुअल कोर्ट की पारदर्शिता पर भी सवाल
वर्चुअल कोर्ट या वर्चुअल तरीके से मामलों की सुनवाई में एक समस्या पारदर्शिता की भी है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा इस सवाल को उठा चुके हैं. उनका कहना है कि वर्चुअल तरीके से मामलों की सुनवाई की व्यवस्था ओपन कोर्ट रूम प्रैक्टिस के खिलाफ है और न्यायिक पारदर्शिता को भी प्रभावित करती है. एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट में वर्चुअल सुनवाई जारी रखने के खिलाफ राय दी थी.
व्यवस्था में कैसे बदलाव होगा
इन तमाम चुनौतियों के बीच संसद की स्थायी समिति ने अदालतों में वर्चुअल सुनवाई को सुधारने के लिए कई सुझाव दिए हैं. समिति ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और दूसरी तकनीकी सुविधाएं सभी लोगों तक पहुंचाने के लिए इसमें निजी एजेंसियों को शामिल करने, दूरदराज के क्षेत्रों में मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के इस्तेमाल पर विचार करने और राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन के लिए तेजी से प्रयास करने की जरूरत बताई है.
संसदीय समिति ने क्या सिफारिश की
समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक मंत्रालय से वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई के लिए एक स्वदेशी सॉफ्टवेयर बनाने की सिफारिश की है. इसके लिए उन निजी कंपनियों को भी शामिल करने की सिफारिश की है जो आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस सिस्टम को बनाने में सक्षम हैं. वहीं, वर्चुअल कोर्ट में पारदर्शिता की कमी से निपटने के लिए संसदीय समिति ने अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग करने की भी सिफारिश की है. समिति ने यह भी कहा है कि वर्चुअल कोर्ट को ज्यादा सक्षम बनाने के लिए कानूनों में जरूरी बदलाव किया जाना चाहिए.