अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सामाजिक सुरक्षा और शैक्षणिक प्रगति के साथ उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया है. लेकिन इसके बंटवारे को लेकर सवाल उठ रहे हैं. बजट सत्र में सांसद राम सकल ने राज्य सभा में यह मुद्दा उठाया. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से उन्होंने पूछा –
(1) क्या सरकार ने अनुसूचित जाति आयोग की तरह अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया है?
(2) यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है?
(3) चालू वित्तीय वर्ष के दौरान दोनों आयोगों के लिए आवंटित राशि का ब्यौरा क्या है?
(4) अगर अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की क्षमता में कोई कमी है तो इसके क्या कारण हैं?
(5) क्या सरकार ओबीसी आयोग की आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए ओबीसी आयोग को अलग-अलग श्रेणियों में बांटने का विचार रखती है?
(6) यदि, हां तो ब्यौरा क्या है?
सरकार ने क्या जवाब दिया
सांसद राम शकल के सवालों का जवाब सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने दिया. उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 338बी के प्रावधानों के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) का गठन किया गया है, जो अपना काम कर रहा है.
राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने यह भी बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष 2020-21 में अनुसूचित जाति आयोग को 25 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को 10 करोड़ रुपये का संशोधित बजट दिया गया है.
आयोग के बंटवारे पर क्या कहा
केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की क्षमता में किसी प्रकार की कोई कमी होने से इनकार किया. इसके अलावा उन्होंने इस सवाल को भी सिरे से खारिज कर दिया कि सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की आर्थिक क्षमता के मद्देनजर उसे अलग-अलग वर्गों में बांटने के बारे में सोच रही है.
कब बना राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
केंद्र सरकार ने 1993 में नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज एक्ट-1993 के जरिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया किया. आयोग की वेबसाइट पर मौजूद सूचना के मुताबिक, 2016 तक इसका सात बार गठन हुआ. हालांकि, केंद्र सरकार ने 15 अगस्त 2018 को नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज एक्ट-1993 को हटा दिया.
2018 में आयोग को संवैधानिक दर्जा
2018 में 102वें संविधान संशोधन के जरिए मौजूदा आठवें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes) को संवैधानिक दर्जे के साथ बनाया गया है. इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 338बी को जोड़ा गया है.
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होते हैं, जिनकी श्रेणी और वेतन भारत सरकार के सचिव के बराबर होता है.
अभी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल सहनी हैं, जबकि सदस्यों में आचारी तल्लोजु, डॉ सुधा यादव और कौशलेंद्र सिंह पटेल शामिल हैं. इसके उपाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार प्रजापति, जबकि सचिव अजय कुमार हैं.
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की जिम्मेदारियां
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-338बी के मुताबिक, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़े वर्गों के कल्याण से जुड़े सभी मामलों की जांच और निगरानी करना है. अधिकारों के हनन की शिकायतें आने पर उनकी जांच करना भी आयोग का काम है.
आयोग को सिविल न्यायालय जैसे अधिकार हासिल हैं, यानी यह देश में किसी को भी बुला सकता है, जांच कर सकता है, दस्तावेजों को पेश करने के लिए कह सकता है, किसी न्यायालय या कार्यालय से दस्तावेजों की मांग कर सकता है.
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्यों में ओबीसी वर्गों की स्थिति के बारे में राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपना और केंद्र व राज्यों के स्तर पर उनकी स्थिति में आए बदलाव का आकलन करना है.
इसमें यह भी कहा गया है कि जब भी केंद्र और राज्य सरकारें पिछड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला कोई बड़ा फैसला करेंगी, आयोग की सलाह जरूर लेंगी.
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