नेपाल में राजनीतिक संकट सुलझने का नाम नहीं ले रहा है. एक बार फिर देश के सामने दिसंबर जैसे हालात बन गए हैं. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद को भंग करने और चुनाव का ऐलान कर दिया है. लेकिन विपक्षी दल इसे असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बता रहे हैं. सभी विपक्षी दल इस फैसले को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं.
अनुच्छेद-96(7) की शक्तियों का इस्तेमाल
राष्ट्रपति कार्यालय के अनुसार, राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री पद के लिए शेर बहादुर देउबा और केपी शर्मा ओली दोनों के दावों को खारिज करते हुए संसद भंग करने का कदम उठाया है. उन्होंने इसके लिए नेपाली संविधान के अनुच्छेद 76(7) का इस्तेमाल किया है. इसमें कहा गया है कि अगर नियुक्त किया गया प्रधानमंत्री सदन में विश्वास मत नहीं जीत पाता है या कोई अन्य व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं नियुक्त हो पाता है तो राष्ट्रपति जनप्रतिनिधि सभा को भंग कर सकेगा और छह महीने के भीतर चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर सकेगा.
जनप्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष ने क्या कहा
नेपाल के अखबार द हिमालयन टाइम्स के मुताबिक, जनप्रतिनिधि सभआ के अध्यक्ष अग्नि प्रसाद सापकोटा ने जनप्रतिनिधि सभा को भंग करने के लिए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के फैसले को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया है. उन्होंने राष्ट्रपति के कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक करार दिया है. स्पीकर अग्नि प्रसाद सापकोटा ने यह भी कहा, ‘अप्रत्याशित कदम राजनीतिक संघर्ष और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है, जिसने 20 दिसंबर, 2020 को संसद को भंग करने के लिए प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा के फैसले को पलट दिया गया था.’
सरकार बनाने के विकल्प कारगर नहीं- राष्ट्रपति
दरअसल, के.पी. शर्मा ओली 10 मई को संसद में विश्वास मत हार गए थे. इसके बाद के.पी. शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा दोनों ने ही सरकार बनाने का दावा पेश किया था. लेकिन राष्ट्रपति ने दोनों के दावों को सरकार बनाने के लिए कारगर नहीं माना.