Connect with us

Hi, what are you looking for?

पंचायतनामा

क्यों पंचायती राज सिस्टम निर्वाचित नौकरशाही बन गया है?

अभी जो पंचायती राज व्यवस्था लागू है, वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पंचायती राज का आधा-अधूरा स्वरूप है.

पंचायती राज व्यवस्था चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा निर्वाचित संगठन है.
प्रतीकात्मक

पंचायती राज व्यवस्था चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा निर्वाचित संगठन है. लेकिन जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी होने के बावजूद पंचायती राज व्यवस्था स्वशासन में कितना सक्षम हो पाई है, यह सवाल हमेशा उठता रहता है. गौर से देखें तो इसकी बनावट ही इस संदेह की वजह है, क्योंकि इसका मौजूदा ढांचा संसदीय लोकतंत्र की बुनियादी शर्तों का उल्लंघन कर रहा है.

संसदीय लोकतंत्र में दलीय भागीदारी होती है. भारत में लोक सभा और विधान सभा का चुनाव भी दलीय आधार पर होता है. लेकिन कुछ राज्यों को छोड़कर स्थानीय चुनाव से राजनीतिक दल दूर ही रहते हैं. अगर कहीं पर इनकी भागीदारी आती भी है तो वह राजस्थान की तरह सिर्फ ऊपरी स्तर तक सीमित रहती है. इसका नतीजा है कि पंचायत राज व्यवस्था आज तक परिपक्व राजनीति की तरफ नहीं बढ़ पाई है. पंचायत चुनावों के पहले और बाद में होने वाली हिंसा इसी अपरिपक्वता का सबूत है.

पंचायती राज से जुड़ी तमाम संस्थाएं स्थायी तौर पर ‘शक्ति असंतुलन’ की समस्या का शिकार हैं.

पंचायती राज से जुड़ी तमाम संस्थाएं स्थायी तौर पर ‘शक्ति असंतुलन’ की समस्या का शिकार हैं. यहां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव के जरिए निर्वाचित सत्ता पक्ष तो साफ-साफ बन जाता है. लेकिन राजनीतिक दलों की भागीदारी न होना से राजनीतिक विपक्ष जैसी जरूरी संस्था बन ही नहीं पाती है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष ऐसी संस्था है जो सत्ता पक्ष की जवाबदेही तय करती है, उसकी नाकामियों और मनमानेपन के खिलाफ आवाज उठाती है और ऐसे मुद्दों को जनता के बीच ले जाकर शक्ति संतुलन कायम करती है. इसकी कमी के चलते पंचायती राज व्यवस्था सामंती परिवेश से लड़ने और स्वशासन लाने के लक्ष्य से चूक रही है.

इस पर आगे बात करने से पहले यह जान लेते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शासन व्यवस्था के तौर पर पंचायती राज को लागू करना चाहते थे. उनका मानना था कि पंचायतों की व्यवस्था गांव की इकाई से शुरू हो और ब्लॉक, जिला, राज्य से होते हुए केंद्र तक जाए. लेकिन इसकी जगह देश में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू है, जो अपने कामकाज में ऊपर के दो चरणों से बिल्कुल ही अलग है. केंद्र और राज्य के स्तर पर विपक्ष की निगरानी में संसदीय व्यवस्था की शर्तों के हिसाब से काम होता है, वहीं पर विपक्ष के अभाव में पंचायती राज व्यवस्था एक तरह की निर्वाचित नौकरशाही बन जाती है.

शक्ति-संतुलन का काम करने के लिए विपक्ष खुद को संगठित करता है. इसमें शीर्ष नेतृत्व से लेकर जमीनी कार्यकर्ता तक एक सांगठनिक ढांचा बनता है. यह ढांचा जनता के बीच सामूहिक समझ और प्रतिरोध का विकास करता है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के माध्यम से आने वाले विरोध या समर्थन को सामूहिक समझ से जोड़ा जाता है, न कि इसे व्यक्तिगत माना जाता है. इसके अभाव में पंचायती राज में जब कोई किसी गलत काम का विरोध करता है तो उसे व्यक्तिगत विरोध के तौर पर लिया जाता है और जिससे न केवल चुनावों में, बल्कि बाद में हिंसा के रूप में सामने आता है.

पंचायतों में महिला सशक्तीकरण के मकसद से महिलाओं को 33 फीसदी (कहीं-कहीं पर 50%) आरक्षण दिया गया है. लेकिन जमीनी सूरत नहीं बदली है.

विपक्ष न होने का नुकसान संस्थागत सुधारों को भी हुआ है. पंचायतों में महिला सशक्तीकरण के मकसद से महिलाओं को 33 फीसदी (कहीं-कहीं पर 50%) आरक्षण दिया गया है. लेकिन जमीनी सूरत नहीं बदली है. महिला प्रतिनिधियों के परिजन ही उनके अधिकारों और शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं. इसी वजह से ग्राम प्रधानपति, ब्लॉक प्रमुखपति और जिला पंचायत अध्यक्षपति जैसे अनौपचारिक पद पैदा हो गये हैं. इसके अलावा पंचायत चुनावों के समय लगाए जाने वाले पोस्टरों में इस बात को दूर से देखा जा सकता है. इन पोस्टरों पर महिला उम्मीदवारों का नाम होता है, लेकिन फोटो उनके पति या पुत्र की लगी होती है. यह महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मकसद के साथ मजाक है.

पंचायती राज व्यवस्था की यह संस्थागत खामी ही इसमें भ्रष्टाचार की वजह बन रही है. निर्वाचित नौकरशाही (बिना विपक्ष के लिए चुने हुए जनप्रतिनिधि) नेतृत्व करने की जगह स्थानीय नौकरशाही की सहयोगी बनकर काम करती है. केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर सक्रिय विपक्ष के बावजूद भ्रष्टाचार के तमाम मामले सामने आते हैं. ऐसे में पंचायतों की विपक्षविहीनता यहां पर सरकारी पैसे के बंदरबांट का जोखिम बढ़ा देती है. यह इस दावे को कटघरे में खड़ा कर देती है कि जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी से भ्रष्टाचार नहीं पनप सकता है. वास्तविकता तो यह है कि विपक्ष के अभाव में जनता की तरफ से जो सक्रियता चाहिए, वह उदासीनता में बदल जाती है.

ग्राम प्रधान को 15 दिन के नोटिस के बाद उपस्थित और मतदान करने वालों के दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है.

जन भागीदारी, जन नियंत्रण हो या जन नियोजन, ऐसी बातें हैं जो अपने आप किसी संस्था का हिस्सा नहीं बन पाती हैं. इसके लिए संस्थागत प्रयासों की जरूरत होती है. संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक दल इसी संस्था का काम करते हैं. इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधान को हटाने की प्रक्रिया का उदाहरण लिया जा सकता है. यहां ग्राम प्रधान को 15 दिन के नोटिस के बाद उपस्थित और मतदान करने वालों के दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है. इसकी प्रक्रिया शुरू करने के लिए न्यूनतम संख्या (कोरम) ग्राम सभा की एक-तिहाई आबादी है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

चूंकि ग्राम प्रधान को हटाने के लिए एक तरह की सामूहिक समझ और भागीदारी की जरूरत होती है. संसदीय लोकतंत्र में शीर्ष के दोनों चरणों पर इस काम को करने में राजनीतिक दल संस्था के तौर पर काम करते हैं. लेकिन ग्राम पंचायत स्तर पर राजनीतिक दलों की मौजूदगी न होने से कोई ग्राम प्रधान चाहे जितनी गड़बड़ी करे, उसे हटाना लगभग असंभव होता है. राजनीतिक दल के बगैर इस काम को व्यक्तिगत क्षमता में करे तो उसे ग्राम प्रधान की रंजिश झेलनी पड़ती है.

अगर पंचायतों में राजनीतिक दलों की भागीदारी लाकर सक्रिय विपक्ष बना दिया जाए तो यह संस्था रोटी-कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों पर केंद्रित राजनीति को जमीनी हकीकत दे सकती है. इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी और जनता से निकटता की संभावना देश में जवाबदेह लोकतंत्र का बेहतरीन नमूना भी बन सकती है.

ये भी पढ़ें -  वेंटिलेटर्स न मिलने से लोग मर रहे हैं, आखिर केंद्र ने साल भर में तैयारी क्या की?

पंचायतनामा

पंचायती राज चुनाव: ब्लाक प्रमुख के लिए 8 जुलाई को नामांकन की तारीख घोषित

पंचायती राज विभाग ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि 10 जुलाई को मतदान के बाद जैसे ही मतगणना का काम पूरा होगा, तुरंत नतीजों को सार्वजनिक कर दिया जाएगा. #PanchayatElections2021 #PanchayatElections

ब्लॉक प्रमुख, पंचायती राज, पंचायत चुनाव, उत्तर प्रदेश,
Photo credit- FE

उत्तर प्रदेश के पंचायती राज विभाग ने त्रिस्तरीय पंचायत के तहत ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इसके अनुसार, उम्मीदवार 8 जुलाई को नामांकन करा सकेंगे. इसी दिन नामांकनों की जांच की जाएगी. उम्मीदवारों को 9 जुलाई को अपना नाम वापस लेने का मौका मिलेगा. 10 जुलाई को सुबह 11 बजे से 3 बजे तक मतदान होगा, इसके बाद मतगणना की जाएगी.

पंचायती राज विभाग ने सभी जिला मजिस्ट्रेट/ निर्वाचन अधिकारियों को ब्लॉक प्रमुख के पद और आरक्षण का ब्यौरा देते हुए 5 जुलाई को सूचना प्रकाशित करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा सभी क्षेत्र पंचायत सदस्यों को उनके अंतिम ज्ञात पते पर सूचना भेजी जाएगी और निर्वाचन कार्यक्रम को समाचार पत्रों में भी प्रकाशित कराया जाएगा.

गौरतलब है नामांकन से लेकर मतगणना की पूरी प्रक्रिया क्षेत्र पंचायत मुख्यालय पर संपन्न होगी. मदतान करने के लिए सभी उम्मीदवारों को देवनागरी में मतपत्र दिए जाएंगे. इस दौरान अवकाश होने पर भी सभी कार्यालय खुले रहेंगे.

पंचायती राज विभाग ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि 10 जुलाई को मतदान के बाद जैसे ही मतगणना का काम पूरा होगा, तुरंत नतीजों को सार्वजनिक कर दिया जाएगा. गौरतलब है कि ब्लॉक प्रमुख का चुनाव होने के साथ उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का गठन पूरा हो जाएगा.

ये भी पढ़ें -  कृषि कानूनों को बनाने में केंद्र सरकार कहां पर चूक कर बैठी, जिसने इतना बड़ा किसान आंदोलन खड़ा कर दिया

पंचायतनामा

जानिए, ग्राम सभा की पहली बैठक में क्या-क्या काम किए जाएंगे?

अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज, मनोज कुमार सिंह की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, सभी जिलाधिकारियों को ग्राम सभा की पहली बैठक के बारे में पूरे ब्यौरे के साथ 28 मई तक शासन को रिपोर्ट भेजनी है.

पंचायत ग्राम सभा ग्राम प्रधान
प्रतीकात्मक तस्वीर (फाइल)

कोरोना महामारी के बीच उत्तर प्रदेश में ग्राम सभा की पहली बैठक के लिए 27 मई का समय तय किया गया है. इसी दिन से ग्राम सभा के कार्यकाल की शुरुआत मानी जाएगी. पहली बैठक की जगह पंचायत भवन और सामुदायिक भवन होगा.

उत्तर प्रदेश पंचायती राज नियमावली के नियम-31 और 32 के अनुसार, पहली बैठक के लिए स्थान की जानकारी देते हुए सभी ग्राम पंचायत सदस्यों को लिखित रूप में सूचना दी जाएगी. इसके अलावा नोटिस की एक प्रति पंचायत भवन जैसे सार्वजनिक स्थान पर भी चिपकाई जाएगी.

वहीं, न्याय पंचायत स्तर पर नामित सेक्टर प्रभारी ग्राम सभा की पहली बैठक में अनिवार्य रूप से मौजूद रहेंगे और बैठक संपन्न कराएंगे. इस बैठक में कोविड-19 के कारण पैदा हालात और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा की जाएगी.

इस बारे में आने वाले सुझावों को एकत्रित करके सहायक विकास अधिकारी, पंचायत पंचायती राज निदेशालय के माध्यम से शासन को भेजा जायेगा. इस बैठक में कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन सुनिश्चित किया जाएगा.

इसके अलावा पहली बैठक के एजेंडा में ग्राम पंचायतों की छह समितियों के गठन का प्रस्ताव किया जाएगा. इसी पहली बैठक में समितियों को गठित कराने लेने की कोशिश की जाएगी.

अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज, मनोज कुमार सिंह की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, सभी जिलाधिकारियों को ग्राम सभा की पहली बैठक के बारे में पूरे ब्यौरे के साथ 28 मई तक शासन को रिपोर्ट भेजनी है.

त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के बाद 25 और 26 मई को ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों की शपथ ग्रहण कराया जा रहा है. इसमें लगभग 58 हजार से ज्यादा ग्राम प्रधान शामिल हो रहे हैं.

ये भी पढ़ें -  कैसे ब्रिटेन की एक थ्योरी उससे अमेरिका की आजादी का तर्क बन गई?

हालांकि, 136 ग्राम पंचायतों के प्रधानों को शपथ लेने के लिए छह महीने का इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि उनके यहां दो तिहाई सदस्यों का निर्वाचन नहीं हो पाया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

शपथ ग्रहण के लिए ग्राम प्रधान और दो-तिहाई सदस्यों का निर्वाचित होना जरूरी है. इन ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा गठित होने तक प्रशासन काम संभालेंगे.

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 28 मई को सभी ग्राम प्रधानों से वर्चुअल बैठक करने का फैसला किया है.

पंचायतनामा

क्यों ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य पहले की तरह इस बार शपथ नहीं ले पाएंगे?

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच होने जा रहे शपथ ग्रहण के लिए इस बात तरीके में बदलाव किया गया है. इस दौरान सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना होगा.

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के संपन्न होने के बाद अब ग्राम पंचायतों के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शनिवार को पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने इससे जुड़ा शासनादेश जारी किया। इस आदेश के मताबिक, 25 से 26 मई के बीच ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों को शपथ दिलाई जाएगी। वहीं, ग्राम सभा की पहली पहली बैठक के लिए 27 मई को होगी. इस पूरी कार्यवाही के लिए अधिसूचना 24 मई को जारी की जाएगी. इस अधिसूचना को हिंदी और अंग्रेजी में सभी जरूरी स्थानों पर लगाने के अलावा अखबारों में प्रकाशित कराया जाएगा.

पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक, ग्राम पंचायत के गठन के लिए प्रधान और दो-तिहाई सदस्यों का निर्वाचित होना अनिवार्य है। इसी उल्लेख करते हुए शासनादेश में कहा गया है कि जहां भी प्रधान और दो-तिहाई सदस्य निर्वाचित हो गए हैं, वहां पर ग्राम सभा के गठन के लिए 24 मई तक अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए। इसके बाद सक्षम अधिकारियों के सामने ग्राम पंचायत के सभी निर्वाचित प्रतिनिधि शपथ लेंगे। शासनादेश में इसके लिए 25 और 26 मई का समय तय किया गया है।

कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को देखते हुए इस बार शपथग्रहण के तौर-तरीके में बदलाव किया गया है। शासनादेश के मुताबिक, इस बार ग्राम प्रधानों और सदस्यों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या वर्चुअल माध्यम से शपथ दिलाई जाएगी। शासनादेश के मुताबिक, शपथ ग्रहण के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा। इसके लिए पंचायत घर, सामुदायिक भवन, ग्राम पंचायत क्षेत्र में बने कॉमन सर्विस सेंटर जरूरी इंतजाम किए जाएंगे। इसकी जिम्मेदारी ग्राम सचिव को सौंपी गई है। उन्हें लैपटॉप और इंटरनेट का इंताजाम करना होगा.

ये भी पढ़ें -  किसानों के आंदोलन के बावजूद सरकार संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने से क्यों बच रही है?

शपथ ग्रहण के बाद सभी निर्वाचित प्रतिनिधि अपने शपथ पत्रों पर हस्ताक्षर करेंगे। ग्राम प्रधान जहां अपने शपथ पत्रों को पंचायती राज अधिकारी को, वहीं, ग्राम पंचायत सदस्य खंड विकास अधिकारी को सौंप देंगे, जो उन्हें सुरक्षित रखेंगे। अगर कोई सदस्य शपथ ग्रहण से इनकार करता है तो मान लिया जाएगा कि उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। नवगठित ग्राम पंचायतों की पहली बैठक के लिए 27 मई का समय तय किया गया है।

पंचायतनामा

UP Panchayat Chunav 2021 : नामांकन पत्र के साथ कौन-कौन से दस्तावेज लगाने जरूरी है?

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नामांकन पत्र के साथ कौन-कौन से दस्तावेज देने जरूरी हैं. पढ़िए ये खबर…

पंचायत चुनाव, नामांकन पत्र, उत्तर प्रदेश
Photo credit- Pixabay

उत्तर प्रदेश में तमाम कानूनी अड़चनों व बाधाओं के बाद पहले चरण के तहत 18 जिलों में पंचायत चुनाव-2021 (UP Panchayat chunav 2021) के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है. उम्मीदवार ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम पंचायत प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के लिए नामांकन पत्र भर रहे हैं. उम्मीदवारों के लिए अपने नामांकन पत्र के साथ ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत से लिया गया नो-ड्यूज सर्टिफिकेट, जाति प्रमाण-पत्र (आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार होने पर), जमानत धनराशि जमा करने का चालान या 385-शासकीय रसीद की मूल प्रति, निर्वाचक नामावली (वोटर लिस्ट) की स्वप्रमाणित प्रति (उम्मीदवार और प्रस्तावक दोनों की), संगलग्न-1 (क) यानी आपराधिक/शैक्षिक/चल-अचल सम्पत्ति का घोषणा पत्र और उम्मीदवार का पासपोर्ट साइज फोटो जमा करना अनिवार्य है.

बैंक खाते का ब्यौरा देना जरूरी

ग्राम पंचायत सदस्यों को अपने नामांकन पत्र के साथ प्रारूप ‘अ’, जबकि ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के उम्मीदवारों के लिए प्रारूप ‘ब’ के अनुरूप घोषणा पत्र भी देना होगा. इसके अलावा ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवारों को अपने चुनाव प्रचार खर्च के लिए खोले गये बैंक खाते का ब्यौरा भी नामांकन पत्र के साथ देना होगा. चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च पर निगरानी रखने के लिए समितियों का गठन किया है. यह समितियां चुनाव खत्म होने के बाद उम्मीदवारों के खर्च की जांच करेंगी. जिन उम्मीदवारों का खर्च तय सीमा से ऊपर पाया जाएगा, उनकी जुर्माने के तौर पर जमानत राशि को जब्त कर लिया जाएगा.

व्यक्तिगत आरोपों की छूट नहीं 

ये भी पढ़ें -  वेंटिलेटर्स न मिलने से लोग मर रहे हैं, आखिर केंद्र ने साल भर में तैयारी क्या की?

त्रिस्तरीय पंचायत सामान्य निर्वाचन-2021 को स्वतन्त्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश ने सामान्य आचार संहिता के निर्देश जारी किये हैं. इसके तहत सभी उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों पर चुनाव के दौरान ऐसी कोई बात किसी भी रूप में नहीं कहेंगे या लिखेंगे, जिससे किसी धर्म, संप्रदाय, जाति या सामाजिक वर्ग व उम्मीदवार/राजनीतिक दल या कार्यकर्ताओं की भावना चोटिल होती हो या कोई तनाव पैदा होता हो. हालांकि, किसी उम्मीदवार की उनकी नीतियों, कार्यक्रमों, पहले के इतिहास और सार्वजनिक कार्यों के आधार पर आलोचना की जा सकती है. लेकिन इसमें किसी उम्मीदवार के व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित पक्ष शामिल नहीं होगा.

धार्मिक स्थलों के इस्तेमाल पर रोक

लोगों का वोट पाने के लिए किसी भी तरह से जातीय, साम्प्रदायिक और धार्मिक भावनाओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहारा नहीं लिया जाएगा. इसी तरह पूजा स्थलों जैसे मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरूद्वारा इत्याति का चुनाव के दौरान प्रचार या अन्य चुनावी कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

लालच, डर, धमकी आचार संहिता के खिलाफ

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसके साथ किसी की चुनावी सभा में गड़बड़ी करना या करवाना, मतदाताओं को रिश्वत देकर या डरा धमकाकर या आतंकित करके अपने पक्ष में मत देने के लिए प्रभावित करना या चुनाव की प्रकिया के दौरान किसी भी के नशीले पदार्थ को बांटने पर भी रोक लगाई गई है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव-2021 के लिए उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आचार संहिता सभी पर बाध्यकारी है. इसमें चुनाव के दौरान किसी अन्य उम्मीदवार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन, पुतला दहन करने जैसे कार्यों पर भी रोक लगाई गई है.

ये भी पढ़ें -  कैसे ब्रिटेन की एक थ्योरी उससे अमेरिका की आजादी का तर्क बन गई?

निजी क्षेत्र के इस्तेमाल पर अनुमति लेनी जरूरी

इतना ही नहीं, चुनाव प्रचार के दौरान कोई भी उम्मीदवार, चुनाव कार्यकर्ता/एजेन्ट को झंडा लगाने, झंडिया टांगने, बैनर लगाने के लिए किसी व्यक्ति की भूमि, भवन, अहाते, दीवार का उपयोग करने से पहले उसकी अनुमति लेनी होगी. इसके अलावा किसी भी शासकीय/सार्वजनिक स्थल, भवन, परिसर पर विज्ञापन, वाल राइटिंग, कटआउट, होर्डिंग, बैनर लगाने या उसे गंदा करने पर पूर्ण पाबंदी है.

शर्तों के साथ लाउडस्पीकर का इस्तेमाल

चुनाव प्रचार में गाड़ियों का इस्तेमाल करने के लिए सभी उम्मीदवारों को जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. इसके अलावा रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या साउंड बॉक्स का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित है. इसके अलावा टीवी चैनल, केबिल नेटवर्क/वीडियो वाहन या रेडियो से प्रचार या विज्ञापन करने से पहले जिला प्रशासन की अनुमति लेनी होगी.

मुद्रक प्रकाशक का नाम होना जरूरी

आचार संहिता के तहत कोई भी मुद्रक या प्रकाशक या कोई अन्य व्यक्ति कोई भी ऐसी प्रचार सामग्री ऐसी किसी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित नहीं करेगा, जिसके मुख्य पृष्ठ पर उसके मुद्रक व प्रकाशक का नाम और पता न हो. इसमें फोटोग्राफी भी शामिल होगी. इसके अलावा बिना उम्मीदवार की अनुमति के कोई व्यक्ति उसके पक्ष में विज्ञापन या प्रचार सामग्री प्रकाशित नहीं करेगा.

कोरोना संक्रमित करा सकते हैं नामांकन

इसके अलावा कोरोना संकट को देखते हुए नामांकन प्रक्रिया के दौरान सभी एहतियाती उपायों को मानना भी अनिवार्य बनाया गया है. इसमें मास्क लगाने, हाथ धोने व सैनेटाइज करना शामिल है. प्रशासन ने कोविड संक्रमित व्यक्ति को भी नामांकन कराने की छूट दी है. वह प्रस्तावक या किसी अन्य व्यक्ति को इसके लिए अधिकृत करते हुए अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
ये भी पढ़ें -  शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों को जाने बगैर आप न तो कृषि कानूनों का विरोध कर सकते हैं, न ही समर्थन

चरण 1

पहले चरण में जिन 18 जिलों में नामांकन प्रक्रिया (nomination process) शुरू हुई है, उनमें गाजियाबाद (Ghaziabad), सहारनपुर (Saharanpur), रामपुर (Rampur), बरेली (Bareilly), हाथरस (Hathras), आगरा (Agra), कानपुर सिटी (Kanpur City), झांसी (Jhansi), महोबा (Mahoba), प्रयागराज (Prayagraj), रायबरेली (Raebareli), हरदोई (Hardoi), अयोध्या (Ayodhya), श्रावस्ती (Shravasti) , संत कबीर नगर (Sant Kabir Nagar), गोरखपुर (Gorakhpur), जौनपुर (Jaunpur) और भदोही (Bhadohi) जिले शामिल हैं.