बीते रविवार को भारी हंगामे के बीच संसद के उच्च सदन यानी राज्य सभा में दो विवादास्पद कृषि विधेयकों को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया था. विपक्षी सांसदों ने इन विधेयकों पर मत विभाजन की मांग रखी थी, लेकिन उपसभापति हरिवंश ने इसे नहीं माना था. अपने फैसले को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि विपक्षी सदस्य अपनी सीट पर बैठकर मत विभाजन की मांग नहीं कर रहे थे, इसलिए उनकी मांगों को नहीं माना गया. हालांकि, राज्य सभा टीवी पर प्रसारित सदन की कार्यवाही की फुटेज से कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही है. इस पर अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार को दोपहर एक बजे से 1 बजकर 26 मिनट तक की राज्य सभा टीवी की फुटेज में कम से कम दो सांसद- डीएमए के तिरुचि सिवा और सीपीएम के केके रागेश अपनी सीट पर खड़े होकर कृषि विधेयकों पर मत विभाजन की मांग करते नजर आए. इन्होंने विधेयकों को लेकर जरूरी संकल्प, प्रस्ताव और संशोधन के नोटिस भी दिए थे. गौरतलब है कि राज्य सभा की कार्यवाही नियमावली का नियम 52 साफ-साफ कहता है कि अगर सदन में एक भी सदस्य को ध्वनिमत से विधेयक पारित करने पर आपत्ति है तो अगले चरण की प्रक्रिया को अपनाना जरूरी है, जो अंत में ऑटोमेटिक वोटिंग मशीन या बैलेट से वोटिंग तक जाती है. यानी ध्वनिमत से सदन में कोई विधेयक तभी पारित हो सकता है, जब उस पर सदन में निर्विवाद रूप से सर्वसहमति हो.
अब राज्य सभा टीवी की उस दिन की टाइमलाइन पर नजर डालते हैं-
1.00 बजे: उपसभापति ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को दोनों विधेयकों पर चर्चा का जवाब देने के लिए कहा. संसदीय कार्यमंत्री प्रल्हाद जोशी ने कार्यवाही का समय बढ़ाने का प्रस्ताव रखा. उपसभापति ने पूछा कि क्या सदन इन विधेयकों को पारित करने तक बैठने के लिए तैयार है. इस पर कांग्रेस के सांसद आनंद शर्मा और जयराम रमेश ने सदन की कार्यवाही को सोमवार तक बढ़ाने की मांग की. तिरुचि सिवा ने उपसभापति से इस पर सदन की राय लेने के लिए कहा. इस पर उपसभापति ने कहा कि सदन में आम सहमति है और तोमर से जवाब देने के लिए कह दिया. इसके बाद सदस्य वेल (पीठासीन अधिकारी के कुर्सी के सामने वाली जगह) में आ गए.
1.03 बजे: राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर सदन का समय बढ़ाना है तो इसे आम सहमति से बढ़ाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि ज्यादातर दलों की राय है कि आज समय नहीं बढ़ाया जाना चाहिए और मंत्री कल अपना जवाब दे सकते हैं.
1.07 बजे: विपक्षी सांसदों की नारेबाजी के बीच उपसभापति विधेयकों के पास होने से पहले के जरूरी विधायी प्रस्तावों को निपटाने लगते हैं. सीपीएम के केके रागेश का नाम बुलाते हैं, जिन्होंने एक विधायी प्रस्ताव रखा था. उपसभापति वेल में मौजूद एक सदस्य (जिनकी पहचान नहीं हो पा रही है) को अपनी सीट पर वापस जाने के लिए कहते हैं. केके रागेश संसद की गैलरी में बैठे थे. (सोशल डिस्टेंसिंग की शर्तों के तहत सदस्यों को गैलरी में भी बैठाया गया था.)
1.08 बजे: रागेश का विधायी प्रस्ताव ध्वनिमत में खारिज हो जाता है. उसके बाद उपसभापति केके रागेश के उस प्रस्ताव को लेते हैं, जिसमें कृषि विधेयकों को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की गई थी. यह प्रस्ताव भी ध्वनिमत में खारिज हो जाता है.
1.09 बजे: उपसभापति ने तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन के कृषि विधेयकों को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग करने वाला विधायी प्रस्ताव लिया. यह प्रस्ताव भी ध्वनिमत में खारिज हो गया. इसमें मत विभाजन के लिए मांग की आवाज को साफ-साफ सुना जा सकता है. इसके बाद ऑडियो कुछ सेकेंड के लिए बंद हो जाता है. फिर उपसभापति अपनी सीट के सामने खड़े संसद सदस्यों से कहते हैं कि मत विभाजन की मांग अपनी सीट पर जाकर करनी चाहिए.
1.10 बजे: इसके बाद उपसभापति डीएमके सदस्य तिरुची सिवा के विधायी प्रस्ताव को लेते हैं. इसमें भी विधेयकों को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग होती है. यह प्रस्ताव भी ध्वनिमत में खारिज हो जाता है. फुटेज में बिल्कुल साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि सांसद सिवा अपनी सीट पर रहते हुए एक हाथ उठाकर मत विभाजन की मांग कर रहे हैं. डेरेक ओ ब्रायन चेयरमैन की सीट की तरफ रूल बुक लेकर दौड़ते हैं और तेज आवाज में बोलते हैं, ‘आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, नियम क्या है?’ इस अफरा-तफरी के बीच सांसद सिवा अपनी सीट पर मौजूद दिखाई देते हैं.
1.11 बजे: उपसभापति ने विधेयकों पर क्लॉज दर क्लॉज पर विचार करना शुरू किया. इसमें केके रागेश के संशोधन प्रस्ताव को लिया गया. फुटेज से पता चलता है कि रागेश अपनी सीट पर थे और मत विभाजन की मांग कर रहे थे. लेकिन उनका प्रस्ताव भी ध्वनिमत में खारिज हो जाता है.
1.12 बजे: राज्य सभा टीवी की फुटेज से पता चलता है कि रागेश और शिवा अपनी-अपनी सीट पर पेपर फाड़ते हैं.
1.13 बजे: एक सदस्य ने उपसभापति के सामने लगे माइक्रोफोन को उखाड़ने लगता है. सदस्य की पहचान नहीं हो पाई.
1.14 बजे: राज्य सभा टीवी की फुटेज के मुताबिक, आडियो ऑफ हो जाता है. आगे भी ऑफ ही रहता है.
1.26 बजे: सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी जाती है.
अखबार से बातचीत में टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि उन्होंने अपनी सीट पर रहते हुए ही मत विभाजन की मांग थी. उन्होंने कहा, ‘हमारे बीच, सिवा और मैं 30 सालों का संसद का अनुभव रखते हैं. हम जानते थे कि हमने प्रस्ताव पेश किये हैं. हमने अपने हेडसेट भी ऑन रखे थे. हम अपनी सीट पर थे. मत विभाजन की हमारी मांग को कई बार जान-बूझ कर नजरअंदाज किया गया. वीडियो और ऑडियो सबूत गवाही दे रहे हैं. संसद के कम से कम चार नियमों को तोड़ा गया.’
वहीं, केके रागेश ने कहा, ‘मैं वेल में तब गया, जब चेयरमैन ने समय बढ़ा दिया. लेकिन जब मंत्री ने अपना भाषण खत्म किया और उपसभापति ने विधायी प्रस्तावों पर विचार करने की प्रक्रिया शुरू की तो मैं तुरंत ऊपर अपनी सीट पर पहुंच गया. जब विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजे जाने वाले प्रस्ताव को लिया गया तो उस समय मैं अपनी सीट पर था. मैं चिल्लाकर मत विभाजन कहा. लेकिन उपसभापति ने मेरी तरफ देखा तक नहीं. ओ ब्रायन और सिवा के प्रस्ताव के बाद जब उपसभापति ने मेरे संशोधन प्रस्ताव को लिया तो मेरा माइक्रोफोन ऑन हो गया. डिप्टी चेयरमैन ने मेरी तरफ देखा. जब पीठासीन अधिकारी आपकी तरफ देखता है, तभी कैमरा आप पर फोकस करता है. मैं दोबारा विभाजन के लिए चिल्लाया. उन्होंने ध्वनिमत लिया और मेरे संशोधन को खारिज कर दिया.’
विपक्ष द्वारा विधेयकों को सोमवार तक बढ़ाने की वजह पूछे जाने पर सांसद रागेश ने बताया, ‘क्योंकि राज्य सभा के आधे सदस्य लोकसभा में बैठे थे. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग संभव नहीं थी. केवल पेपर बैलेट से ही वोटिंग हो सकती थी. एक बार वोटिंग के लिए 30 मिनट लगता है. इसीलिए हमने कार्यवाही को सोमवार को भी जारी रखने की मांग की, क्योंकि लोकसभा की सिटिंग 3 बजे से शुरू होने वाली थी.’
सांसद तिरुचि सिवा ने भी कहा कि उन्होंने अपनी सीट पर रहते हुए विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के अपने प्रस्ताव पर मत विभाजन की मांग उठाई थी, लेकिन उपसभापति ने उनकी तरफ नहीं देखा.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उन्होंने उपसभापति को इससे जुड़े सवाल भेजे थे, लेकिन उन्होंने किसी का कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि, सचिवालय के सूत्रों ने बताया कि सीट के सामने पोडियम के पास मौजूद सदस्यों ने उनका ध्यान भटका दिया था और वे यह देखने की कोशिश में लगे थे कि कहीं सदस्य उनके पेपर न छीन ले जाएं.
फिलहाल, रविवार (20 सितंबर) को राज्य सभा में जो कुछ भी हुआ, उस पर संसदीय प्रक्रियाओं और परंपराओं को समझने वालों ने खासी निराशा जताई है. इस बीच संसद से विवादित तरीके से पारित दोनों विधेयकों समेत तीनों कृषि विधेयक (रविवार, 27 सितंबर 2020) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर से कानून बन चुके हैं. हालांकि, किसान और विपक्ष अभी भी इन कानूनों का विरोध जारी रखने की बात कर रहे हैं.