लेख-विशेष

अंग्रेजी का यह मुहावरा राज्य सभा में क्यों कहा गया, जिसका मतलब है- आखिरी कतरे ने ऊंट की कमर तोड़ दी

इंग्लिश का मुहावरा है- ‘The last straw which broke the camel’s back’. मंगलवार, तारीख 22 सितंबर 2020, राज्य सभा में एक दिन पहले कृषि विधेयकों को लेकर हुए जबरदस्त हंगामे के ठीक बाद का दिन. कार्यवाही शुरू होने पर पक्ष-विपक्ष सभी ने एक दिन पहले हुए हंगामे को अपने-अपने तरीके से अवांछित बताया. बावजूद इसके सदन में दोबारा ध्वनिमत का इस्तेमाल हुआ और विपक्ष के आठ सांसदों को अमर्यादित व्यवहार के आरोप में सत्र की बकाया कार्यवाही के लिए निलंबित कर दिया. इस मुद्दे पर राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद को बोलने का मौका मिला.

‘टाइम की कमी ही हमारी सौतन बन गई’

नेता प्रतिपक्ष का भाषण शुरू होने के तुरंत बाद सभापति ने उन्हें संक्षिप्त में बात रखने की हिदायत दे दी. इस पर गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘सर, इस सदन में यह टाइम की कमी ही हमारी सौतन बन गई है. इसी के कारण सब झगड़े हो गए.’ उन्होंने आगे कहा, ‘हम चार घंटे की जगह पर दस घंटे बैठें, एक महीने की जगह दो महीने बैठ जाएं, लेकिन संसद में आने का जो लक्ष्य है, वह पूरा होना चाहिए. वह लक्ष्य दो मिनट में पूरा नहीं होता है…ऐसा लगता है कि हमारा सारा टाइम यहां नोक-झोंक में लग जाता है. एक-एक मिनट के लिए हम ऐसे लड़ते हैं कि जैसे बॉर्डर पर लड़ रहे हों.’ गुलाम नबी आजाद ने यह भी कहा कि छोटी-बड़ी सभी पार्टियों के सांसदों को समय की सीमा से मुक्त किया जाना चाहिए, इससे टकराव पर खर्च होने वाला वक्त बचेगा. राज्य सभा के नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा, ‘वैसे ही पब्लिक में पॉलिटिकल लीडर्स का स्टॉक (पूंजी/जगह) बहुत कम है, खत्म हो गया है और उस स्टॉक को हम यहां टाइम के झमेले में लड़कर खुद ज़ीरो बना देते हैं…..सभी सांसदों को समय में न बांधा जाए, एक समुंदर को हम एक कुएं में बंद करने की कोशिश न करें.’

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 इंग्लिश का मुहावरा सुनाया

सांसद गुलाम नबी आजाद ने एक दिन पहले राज्य सभा में कृषि विधेयकों पर हुए हंगामे के लिए टाइम की कमी को मुख्य वजह बताया. उन्होंने कहा, ‘सर, इंग्लिश का मुहावरा है-The last straw which broke the camel’s back’. I think, day before yesterday was the last straw which broke the camel’s back.’ [आखिरी तिनके ने ऊंट की कमर तोड़ डाली. मैं सोचता हूं कि कल का दिन वही आखिरी तिनका था, जिसने ऊंट की कमर तोड़ दी.] उन्होंने आगे कहा, ‘इसके पीछे एक तो टाइम का सिस्टम है. कोई एक मिनट मिलने से नाराज है कि मैं बोल नहीं पाया. आज स्टैंडिंग कमेटीज को बिल नहीं जाते हैं, आज सेलेक्ट कमेटीज के पास बिल नहीं जाते हैं. यह उसके पीछे की एक बहुत बड़ी वजह है. सभी बिल पास कराने की कोशिश की जाती है…जो एमपीज (सांसद) बोलना चाहते हैं वो बोल नहीं पाते…सर, यह झगड़ा क्यों हुआ? नहीं होना चाहिए था। मैं इसे एप्रूव नहीं करता कि कोई माइक तोड़े या टेबल पर चढ़े, कोई भी एप्रूव नहीं करता है. लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि the last straw which broke the camel’s back; वह बड़ा जमा हो गया था, इसलिए जब वह बाहर निकला तो बहुत बड़ा तूफान बन गया.’

 इंग्लिश का मुहावरा क्या कहता है?

इस कहावत का मतलब है कि नापसंद आने वाली सिलसिलेवार घटनाओं में वह आखिरी घटना, जिसके बाद आपको महसूस हुआ कि अब और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा. लगभग सभी शब्दकोशों में इस कहावत का यही अर्थ मिलता है. हालांकि, इस कहावत में कई जगह बदलाव भी मिलता है. जैसे तिनके की जगह पंख या पंखुड़ी और ऊंट की जगह घोड़े को रखकर भी इसे कहा जाता है. इस कहावत को शेरो-शायरी और कविताओं में ‘हद हो गई है’ के अंदाज में बेतरह इस्तेमाल किया गया है. जैसे परवीर शाकिर लिखती हैं, ‘कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए, पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए.’ या निदा फाजली ने लिखा है, ‘बिजली का क़ुमक़ुमा न हो काला धुआं तो हो, ये भी अगर नहीं हो तो बुझ जाना चाहिए.’ एक और शायर अनीस देहलवी लिखते हैं, ‘दीवार बन के वक़्त अगर रास्ता न दे, झोंका हवा का बन के गुज़र जाना चाहिए.’ खैर, 21 सितंबर को राज्य सभा में हंगामे को गुलाम नबी आजाद ने अपरोक्ष तरीके से सदस्यों को बात रखने का उचित मौका न मिलने का नतीजा बताया.

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मत विभाजन पर अरुण जेटली ने क्या दलील दी थी

नेता प्रतिपक्ष ने अपने भाषण में संसद के विधेयकों को पारित कराने में जल्दबाजी का भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि सांसदों की आपत्तियों को अनसुना करके, वोटिंग की मांग को खारिज करके विधेयक पारित कराए गए जो नियमों और स्थापित परंपराओं के खिलाफ हैं. गुलाम नबी आजाद ने आगे कहा, ‘यहां अरुण जेटली जी द्वारा वर्ष 2016 में कही गई बात को क्वोट करना चाहता हूं. उन्होंने कहा था, ‘That the Government becomes illegitimate if the Speaker refuses the division of vote.’ [अगर सदन के अध्यक्ष मत विभाजन की बात को खारिज करते हैं तो सरकार अवैध बन जाती है.] उन्होंने उत्तराखंड मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दी गई दलील का भी हवाला दिया, जिसमें विधानसभा में मत विभाजन न होने को आधार बनाया गया था. हालांकि, दिवंगत नेता अरुण जेटली का नाम लेने पर सभापति और सत्ता पक्ष के सांसदों ने आपत्ति की. इस पर आनंद शर्मा ने यह कहते हुए बचाव किया कि उनका नाम महात्मा गांधी और नेहरू व दूसरे नेताओं की तरह पूरे आदर के साथ लिया जा रहा है.

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सभापति के निर्देश पर अपनी बात पूरी करते हुए गुलाम नबी आजाद ने नेता प्रतिपक्ष पर समय सीमा लगाने को गलत बताया. उन्होंने कहा, ‘(नेता प्रतिपक्ष के रूप में)यहां बोलने के लिए अरुण जेटली जी 10 दफा खड़े होते थे, सुषमा स्वराज जी 20 दफा खड़ी होती थीं. तब उन पर न तो बोलने की सीमा थी, न समय की. लेकिन अब हम भी सीमा में बंध गए और हमारा एलओपी न होने के बराबर हो गया। ये तमाम चीजें लोकतंत्र के फेवर (पक्ष) में नहीं हैं.’

‘वन नेशन-वन पार्टी की तरफ मत जाइएगा’

नेता प्रतिपक्ष के भाषण में केंद्र सरकार के ‘One Nation-One Market’ विज्ञापन का भी जिक्र रहा. उन्होंने कहा, ‘One Nation-One Market, हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है. आपने पहले भी कहा है, ‘One Nation-One Tax’, ‘One Nation-One Ration Card.’ भगवान के लिए, खुदा के लिए ‘one nation-one party’ की तरफ मत जाइएगा.’ सरकार का ‘One Nation-One Market’ विज्ञापन के जरिए नए कृषि कानूनों से किसानों को होने वाले फायदों को बताया गया था. हालांकि, इन्हीं कानूनों को लेकर सदन के भीतर विवाद हुआ और आज भी इनके खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है.

संसद के सदनों में पक्ष-विपक्ष के बीच तीखी बयानबाजियों और कार्यवाहियों में व्यवधान को मीडिया का एक तबका हो-हल्ला और अनुत्पादक कृत्य के तौर पर पेश करता है. लेकिन सैद्धांतिक रूप से ऐसा नहीं है. यह सदन के भीतर जनप्रतिनिधियों की सक्रियता, उनकी दूरदर्शिता और जनता के मुद्दों से सरोकारों का भी सबूत होते हैं.

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ऋषि कुमार सिंह

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