क्या आप न्यूज चैनल देखते या अखबार पढ़ते हैं? कोई बात नहीं, लेकिन आप वॉट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर तो जरूर आते-जाते होंगे? जरा सोचकर एक बात बताइए. आपने यह खबर कब सुनी थी कि पीएम मोदी आज 100वीं किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना करेंगे या पीएम ने आज 100वीं किसान रेल को रवाना किया? इसे सुनकर आपके दिमाग में क्या आया था, यही न कि 100वीं किसान रेल चालू हो गई है.
आप परेशान न हों, प्रधानमंत्री मोदी ने 28 दिसंबर 2020 को एक किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना किया था. इस मौके पर सरकार ने भव्य जलसा किया था. इसका सरकारी और गैर सरकारी मीडिया के बड़े हिस्से ने पूरी ताकत से विज्ञापन किया था. कुल मिलाकर माहौल ऐसा बना था कि लगे जैसे सरकार ने 100वीं किसान रेल चालू करने में सफलता हासिल कर ली है. लेकिन इसकी हकीकत अब खुद केंद्र सरकार ने राज्य सभा में पूछे गए एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में बताई है.
किसान रेल क्या है
कृषि उत्पादों जैसे दूध से लेकर साग-सब्जी और फल अगर समय पर बाजार न पहुंचे और कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था न हो तो अक्सर खराब हो जाते हैं. इसलिए किसान हो या व्यापारी इन उत्पादों को दूर तक नहीं भेज पाते हैं. ऐसे में दूसरी जगहों पर अच्छी कीमत होने के बावजूद उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता है. इस समस्या को दूर करने के लिए भारतीय रेलवे रेफ्रीजेरेटेड डिब्बों वाली ट्रेनें शुरू की हैं, जिन्हें किसान रेल नाम दिया गया है. इस किस्म की पहली रेल बीते साल 7 अगस्त 2020 में महाराष्ट्र के देवली से बिहार के दानापुर के बीच चलाई गई थी, जो अब मुजफ्फरपुर तक चलती है.
सांसद छाया वर्मा ने पूछा था सवाल
छत्तीसगढ़ से राज्य सभा सांसद छाया वर्मा ने सरकार से पूछा कि (1) देश में किसानों की औसत आय कितनी है? (2) सरकार ने किसानों की औसत वार्षिक आय को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए हैं? (3) बीते पांच वर्षों में कृषि लागत को घटाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं, अगर जवाब हां है तो इससे लागत कितनी घटी है? (4) क्या डीजल, यूरिया और अन्य उर्वरकों के उपयोग जैसे कृषि इनपुट के कारण कृषि की लागत बढ़ती है और किसानों की आय घटती है? (5) क्या सरकार किसानों को सिंचाई के लिए डीजल, यूरिया और अन्य उवरक जैसी आवश्यक वस्तुओं को नियंत्रित दर मुहैया कराने पर विचार कर रही है?
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिया जवाब
राज्य सभा में सांसद छाया वर्मा के इन सवालों का केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाब दिया. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office) (NSO) के जुलाई 2012-जून 2013 के कृषि परिवारों की स्थिति आकलन सर्वे (Situation Assessment Survey of Agricultural Households) के मुताबिक किसानों की वार्षिक आय 77,112 रुपये है. केंद्रीय मंत्री ने खेती की लागत घटाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की भी जानकारी दी.
इसी क्रम में उन्होंने बताया कि ‘पहली किसान रेल जुलाई 2020 (वास्तव में 7 अगस्त 2020 को) में शुरू की गई थी. वर्तमान में भारतीय रेल द्वारा 10 किसान रेलों का संचालन किया जा रहा है.’ अब दिसंबर में प्रसारित खबरों पर गौर करिए, जिनमें दावा किया गया था कि पीएम मोदी ने आज 100वीं किसान रेल को झंडी दिखाई है. अब सवाल उठता है कि बाकी की 90 किसान रेल कहां गईं, अगर 90 किसान रेल नहीं चलीं तो मीडिया ने 100वीं किसान रेल चलाने की खबर को बार-बार क्यों बताया?
100वीं किसान रेल की बात कैसे आई
28 दिसंबर, 2020 को भारतीय रेलवे ने अपने ट्विटर हैंडल से एक पोस्टर जारी किया. इसमें साफ तौर पर लिखा था कि पीएम मोदी 28 दिसंबर को शाम 4.30 बजे 100वीं किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना करेंगे. (खबर के अंत में पोस्टर को देखें) लेकिन इससे ठीक एक दिन पहले पीएमओ इंडिया के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया था और उसमें भी दोहराया गया था कि पीएम मोदी 100वीं किसान रेल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए झंडी दिखाकर रवाना करेंगे. (खबर के अंत में पोस्टर को देखें) इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम के एक दिन बाद मायगॉवइंडिया (mygovindia) के ट्विटर हैंडल से भी कहा गया कि 28 दिसंबर को 100वीं किसान रेल रवाना की गई है.
इन सबके बीच 28 दिसंबर को पीआईबी यानी प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की ओर जारी प्रेस रिलीज भी कहती है कि पीएम ने 100वीं किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना किया है. इसमें तो यह भी कहा गया कि कोरोना महामारी के बीच चार महीनों में 100 किसान रेलों को शुरू किया गया है. जाहिर है जब सूचना प्रसारित करने के सभी सरकारी स्रोतों से 100वीं किसान रेल चलाने की बात कही जा रही थी, तब हांका लगाने वालों की तरह व्यवहार करने वाला भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा उसे प्रसारित करने में कोई कसर क्यों छोड़ता? इसीलिए तमाम न्यूज चैनलों और वेबसाइट्स में 100वीं किसान रेल को रवाना किए जाने की खबरें अलग-अलग अंदाज में तैरती रहीं.
किसान रेल का 100वां फेरा बना 100वीं किसान रेल
यह सच है कि पीएम मोदी ने एक किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना किया था. लेकिन यह 100वीं किसान रेल नहीं थी, बल्कि किसान रेल का 100वां फेरा था. यानी जो किसान रेल चल रही थीं, उसका 100वां फेरा था, जिसे एक भव्य कार्यक्रम में बदला गया था. इसकी जानकारी फाइनेंशियल एक्सप्रेस और हिंदुस्तान टाइम्स की खबरों से मिलती है. इस मामले में द हिंदू जैसे अखबार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह 100वीं किसान रेल है या किसान रेल का 100वां फेरा, जिसे पीएम ने झंडी दिखाकर रवाना किया है. वास्तव में, सरकार ने सिर्फ 10 किसान रेल चलाई हैं, जैसा कि राज्य सभा में खुद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने जवाब में जानकारी दी है.
100वीं किसान रेल का जश्न क्यों मनाया गया
अगर आपको याद हो तो नवंबर में कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन खड़ा हो गया था, जिसे दिसंबर में एक महीना बीत चुका था. किसानों के साथ बातचीत बेनतीजा हो रही थी. किसान विरोधी होने के आरोप लगने से सरकार दबाव में थी. इसलिए सरकार किसानों के लिए उठाए गए कदमों को गिना रही थी, ताकि खुद को किसान हितैषी साबित कर सके. इसी क्रम में किसान रेल के 100वें फेरे को 100वीं किसान रेल में और प्रधानमंत्री को शामिल करके इसे भव्य कार्यक्रम में बदल दिया गया था.
लेकिन मीडिया, जिसके कंधे पर सूचना को प्रसारित करने से पहले उसे जांचने की जिम्मेदारी है, उसने क्या किया? किसी ने यह पूछने या स्पष्ट करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाई कि अगस्त में पहली और दिसंबर में 100वीं किसान रेल चली तो बीच में 25वीं किसान रेल, 50वीं किसान रेल या 75वीं किसान रेल चलने पर सरकार ने कोई कार्यक्रम क्यों नहीं किया? कारण कि इस सरकार में शायद ही कोई बात हो, जिसे इवेंट में न बदला जाता हो? इसे लापरवाही मानें या सत्ता से गठजोड़ का नतीजा कहें, लेकिन यह पूरी तरह से जनता को गुमराह करने वाली बात है. वैसे एक हिंदी न्यूज चैनल की वेबसाइट ने तो यहां तक लिख डाला कि पांच महीने में ही 100वीं किसान रेल चल गई?
अंत में सवाल है कि सरकार ने किसान आंदोलन के दबाव से निपटने के लिए एक झूठ या अर्द्धसत्य गढ़ा और लगभग-लगभग पूरा मीडिया उसी झूठ या अर्द्धसत्य को फैलाने में जुट गया? अगर भारत के नीति शास्त्रों और न्याय की किताबों में झूठ को अब तक गलत ही माना जा रहा है तो फिर सरकार को झूठ बोलने और मीडिया को उस झूठी जानकारी को फैलाने की छूट कैसे दी जा सकती है? वैसे यह भी एक तल्ख सच्चाई है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, सभी सूचनाओं को इसी भ्रम के साथ प्रचारित कर रही हैं. बीते साल उत्तर प्रदेश की सरकार ने गन्ना किसानों को एक लाख करोड़ रुपये भुगतान करने पर एक कार्यक्रम कर डाला, जो तीन साल में भुगतान की गई कुल राशि थी.
यह उदाहरण है कि कैसे भारतीय मीडिया का एक बड़ा और प्रभावशाली हिस्सा सरकार के माउथपीस की तरह काम कर रहा है, आंख मूंदकर सरकार की चालबाजियों को प्रसारित कर रहा है. अब ऐसे में भारत में प्रेस की साख या विश्वसनीयता पर अगर कोई सवाल उठाए तो हमें, आपको या सरकार को बुरा क्यों लगना चाहिए?